दिल्ली: अगर आप सोचते हैं कि बड़े शहरों की बजाय गंगा किनारे मैदानों में रहने वाले लोग वायु प्रदूषण से मुक्त हैं और लंबा जीवन जीते हैं। तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। गुरुवार को शिकागो यूनिवर्सिटी की शोध संस्था की तरफ से जारी रिपोर्ट ने हैरान करने वाला खुलासा किया है। मीडिया में चल रही एक खबर के मुताबिक यह रिपोर्ट ‘वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक’ (एक्यूएलआई) नाम से जारी की गई है। इसमें कहा गया है कि उत्तरी भारत, खासतौर पर गंगा के मैदानी इलाकों में बसे 48 करोड़ से अधिक लोगों का जीवनकाल वायु प्रदूषण के चलते सात वर्ष कम हो रहा है।
3.7 वर्ष की कम हुई लोगों की उम्र!
शिकागो विश्वविद्यालय, अमेरिका की शोध संस्था ‘एपिक’ का ‘वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक’ का नया विश्लेषण बताता है कि भारत के उत्तरी क्षेत्र यानी गंगा के मैदानी इलाकों में रह रहे लोगों की ‘जीवन प्रत्याशा’ करीब सात वर्ष कम होती जा रही है। इन जगहों के वायुमंडल में ‘प्रदूषित सूक्ष्म तत्वों और धूलकणों से होने वाला वायु प्रदूषण’ यानी पार्टिकुलेट पॉल्यूशन विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय दिशानिर्देशों को हासिल करने में विफल रहा है। शोध अध्ययनों के अनुसार इसकी वजह है कि वर्ष 1998 से 2016 में गंगा के मैदानी इलाकों में वायु प्रदूषण 72 प्रतिशत तक बढ़ गया है। यहां भारत की 40 प्रतिशत से अधिक आबादी रहती है।
वर्ष 1998 में लोगों के जीवन पर वायु प्रदूषण का प्रभाव आज के मुकाबले आधा होता, अगर वहां प्रदूषण की सघनता विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानकों के सापेक्ष रहती। उस स्थिति में गंगा के आसपास बसे लोगों का जीवन काल आज के मुकाबले आधा यानी 3.7 वर्ष की कमी हुई होती। लेकिन वायु प्रदूषण में 72 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी ने यहां के लोगों का जीवनकाल 7.1 वर्ष कम कर दिया है।
पार्टिकुलेट पॉल्यूशन प्रभावित कर रहा जीवन
शिकागो विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के मिल्टन फ्राइडमैन प्रतिष्ठित सेवा प्रोफेसर और एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ माइकल ग्रीनस्टोन ने ‘एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स’ के बारे में कहा कि इसकी मदद से करोड़ों लोग यह जानने-समझने में समर्थ हो पाएंगे कि कैसे पार्टिकुलेट पॉल्यूशन उनके जीवन को प्रभावित कर रहा है। सबसे जरूरी यह है कि लोग इस बात का पता लगा सकेंगे कि कैसे वायु प्रदूषण से संबंधित नीतियां जीवन प्रत्याशा को बढ़ाने में कारगर साबित हो सकती हैं।
दरअसल वायु प्रदूषण पूरे भारत में एक बड़ी चुनौती है, लेकिन उत्तरी भारत के गंगा के मैदानी इलाके, जहां बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, दिल्ली और पश्चिम बंगाल जैसे प्रमुख राज्य और केंद्र शासित प्रदेश आते हैं, में यह स्पष्ट रूप से अलग दिखता है।
सरकार के हाथों में है जीवन रेखा!
अगर भारत अपने ‘राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम’ के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल रहा और वायु प्रदूषण स्तर में करीब 25 प्रतिशत की कमी को बरकरार रखने में कामयाब रहा तो आम भारतीयों की जीवन प्रत्याशा औसतन 1.3 वर्ष बढ़ जाएगी। वहीं उत्तरी भारत के गंगा के मैदानी इलाकों में निवास कर रहे लोगों को अपने जीवनकाल में करीब दो वर्ष के समय का फायदा होगा।
संसद में वायु प्रदूषण पर निजी विधेयक लाएंगे सांसद गोगोई
सांसद गौरव गोगोई ने कहा कि ‘अव्वल दर्जे की रिसर्च यह संकेत करती है कि वायु प्रदूषण में कमी और जीवनकाल में वृद्धि के बीच स्पष्ट संबंध है। स्वच्छ वायु की मांग के लिए नागरिकों के बीच जागरूकता बेहद महत्वपूर्ण है। एक्यूएलआई सही दिशा में रखा गया एक कदम है। गोगोई का कहना है कि मैं 1981 के वायु अधिनियम में संशोधन के लिए संसद में एक निजी विधेयक प्रस्तावित कर रहा हूं, जो बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण पैदा हो रहे स्वास्थ्य संबंधी दुष्प्रभावों को रेखांकित करता है।