हरियाणा में कांग्रेस विधानसभा चुनाव से पहले ऊहापोह की स्थिति में है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बदलने को लेकर हाईकमान से आग्रह कर रहा हुड्डा गुट अब आर-पार की लड़ाई के मूड में दिख रहा है।
आज होने वाली कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में अगर नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर सहमति के साथ ही हरियाणा में नेतृत्व परिवर्तन पर मुहर नहीं लगी तो पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपनी राह अलग चुन सकते हैं।
चूंकि, लोकसभा चुनाव में करारी हार से पहले ही हुड्डा गुट ने हाईकमान पर प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर दबाव बना दिया था लेकिन कोई तब्दीली न होने और करारी हार के बाद कार्यकर्ताओं का हुड्डा पर अलग रास्ते जाने का दबाव है। प्रदेश में दो महीने बाद चुनाव है। हुड्डा गुट चाहता है कि विधानसभा चुनाव भूपेंद्र हुड्डा के नेतृत्व में लड़ा जाए।
लोकसभा चुनाव में करारी हार का ठीकरा हुड्डा गुट प्रदेश में कमजोर संगठन पर फोड़ चुका है। राष्ट्रीय नेतृत्व खुद राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद कोई भी निर्णय लेने की स्थिति में नहीं था, इसलिए अब निगाहें कांग्रेस कार्यसमिति की शनिवार की बैठक पर टिकी हैं। इसमें अगर मनमाफिक निर्णय न हुआ तो पूर्व सीएम 18 अगस्त की रैली में अपने अलग चलने का एलान कर सकते हैं।
विघटन के बाद इनेलो प्रदेश में लगभग खत्म हो चुकी है। जबकि कांग्रेस में अशोक तंवर पांच साल से ज्यादा के कार्यकाल में पार्टी को धरातल पर खड़ा नहीं कर पाए हैं।
पूर्व सीएम से जुड़े विधायक, पूर्व विधायक और पूर्व सांसद इन्हीं दलीलों का हवाला देते हुए हाई कमान से हुड्डा को कमान देने की पैरवी कर रहे हैं ताकि कांग्रेस को हरियाणा की सत्ता में लाया जा सके। भूपेंद्र हुड्डा व दीपेंद्र हुड्डा अनुच्छेद-370 हटाए जाने पर पार्टी स्टैंड से अपना अलग रुख क्लीयर कर चुके हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हुड्डा पर कार्यकर्ताओं का सख्त निर्णय लेने के लिए काफी दबाव है।