बिहार में बागेश्वर बाबा के सहारे कैसे बीजेपी साध रही है राजनीति?

बाबा बागेश्वर के पटना पहुंचने के बाद से ही भारतीय जनता पार्टी ने इस मौके को भुनाना शुरू कर दिया है. बीजेपी को दरअसल राजनीति करने का मौका इसलिए भी मिल गया क्योंकि राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजप्रताप यादव समेत सुरेन्द्र यादव और शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव ने बाबा बागेश्वर की यात्रा का विरोध करना प्रारंभ कर दिया था. जाहिर है बीजेपी के मंत्री और नेता ने बाबा की सभा में पहुंचकर बाबा की सभा को सियासी रंग दे दिया. वहीं विपक्षी पार्टियों की गैरहाजिरी को मुद्दा बनाकर लालू और नीतीश को घेरने प्रयास तेज कर दिया है.

जनता दल यूनाइटेड के सर्वोपरि नेता नीतीश कुमार ने हिंदू राष्ट्र बनाने को लेकर बाबा का नाम लिए बगैर चुप्पी तोड़ी है. बीजेपी को आड़े हाथों लेते हुए इशारों में नीतीश कुमार ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी (बीजेपी) की क्या भूमिका थी ये सबको पता है. इसलिए बाबा साहब अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान को बदलना किसी के बूते की बात नहीं है. जेडीयू इस मसले पर संविधान निर्माता का हवाला दे रही है.

जाहिर है बीजेपी संविधान निर्माता अंबेडकर के खिलाफ शब्दों के चयन में डिफेंसिव रहेगी, ये जेडीयू जानती है. इसलिए बीजेपी से अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान में फेरदबदल की बात पूछ कर बीजेपी को घेरने में जुट गई है. बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, अश्विनी चौबे, पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और सांसद मनोज तिवारी सहित रामकृपाल यादव ने बाबा की सभा में पहुंचकर आरती की, लेकिन इस कवायद में बिहार की सियासत की आंच और भी तेज कर दी है. इस मौके पर बिहार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी भी आगे बढ़कर हिस्सा लेते नजर आए हैं.

बीजेपी महागठबंधन के नेताओं द्वारा बाबा बागेश्वर की सभा से दूरी बनाए रखने के लिए तेजस्वी यादव समेत लालू प्रसाद और नीतीश कुमार पर कड़े प्रहार बीजेपी के तमामे नेताओं ने किए हैं. जाहिर है रोजा-इफ्तार में सम्मिलित होने को लेकर पूछे गए सवाल से बीजेपी ने महागठबंधन को घेरने का प्रयास किया है और इसलिए बाबा की धर्मसभा को लेकर सियासत तेज होती दिखी है.

हिंदुत्व की राजनीति को हवा क्यों दे रही है बीजेपी?
बीजेपी के लिए असली अग्नि परीक्षा आने वाले लोकसभा चुनाव में होनी है. बीजेपी पिछले लोकसभा चुनाव में जेडीयू के साथ मिलकर 40 में से 39 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी. ऐसे में साल 2022 में जेडीयू के अलग होने के बाद बीजेपी के लिए वो परफॉर्मेंस दोहरा पाना आसान नहीं है. बीजेपी एक तरफ चिराग पासवान, उपेन्द्र कुशवाहा, मुकेश साहनी और जीतनराम मांझी को साथ लाकर अपने कुनबे को मजबूत करने के प्रयास में जुटी है. वहीं बिहार सरकार द्वारा जातिय जनगणना का जवाब देने के प्रयास में हिंदुत्व ही वो विकल्प शेष नजर आ रहा है जिसके जरिए बीजेपी जातिगत राजनीति का तोड़ ढ़ूढ़ने के प्रयास में जुटी है.

जाहिर है बाबा बागेश्वर की सभा में अपेक्षा से तीन से चार गुणा ज्यादा भीड़ ने बीजेपी को हिंदुत्व की राजनीति तेज करने का एक अलग प्लेटफॉर्म प्रदान कर दिया है. इसलिए गिरिराज सिंह समेत प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी महागठबंधन सरकार को लचर व्यवस्था और धर्मसभा में गैरहाजिरी के लिए हिंदुत्व विरोधी करार देकर राजनीति साधने में जुट गए हैं.

कर्नाटक में मिली हार के बाद आक्रामक रणनीति क्यों अपना रही है BJP?
सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मुले के अलावा हिंदुत्व की धार को मजबूत करना बीजेपी की राजनीति का हिस्सा रहा है. उपेन्द्र कुशवाहा को जेड प्लस की सुरक्षा देने के अलावा चिराग पासवान, मुकेश साहनी और जीतनराम मांझी को अपने साथ लाने के प्रयास में बीजेपी जुटी हुई है. बीजेपी हिंदुत्व की धार को तेज कर पिछले रिकॉर्ड के आस-पास हर हाल में पहुंचना चाहती है. बीजेपी जानती है कि बीजेपी का कड़ा इम्तिहान साल 2024 के लोकसभा चुनाव में होना है. इसलिए बीजेपी बाबा बागेश्वर की धर्मसभा के जरिए हिंदुत्व की राजनीति को हवा देने के प्रयास में जुट गई है.

बिहार में सात पार्टियों का गठबंधन सामाजिक समीकरण के हिसाब से भी बीजेपी के सामने कड़ी चुनौती पेश करने का दम रखता है और इसका करारा जवाब सोशल इंजीनियरिंग के अलावा हिंदुत्व के सहारे ही दिया जा सकता है. इसलिए बीजेपी अपने कोर वोटर्स को साधने के प्रयास के अलावा बाबा बागेश्वर की सभा को भुनाने में जुट गई है.

अर्जी और पर्ची के खेल में महागठबंधन ने बदली रणनीति?
बाबा की सभा में उमड़ी भारी भीड़ में भक्तों के लिए पर्ची निकालकर बाबा ने गहरी पैठ बना ली है. बाबा ने इसलिए हिंदू राष्ट्र की मुहिम की शुरुआत करने का आह्वान बिहार से ही करने का ऐलान कर दिया है. जाहिर है हिंदू राष्ट्र और हिंदुत्व बीजेपी को सूट करता है. इसलिए बीजेपी इस अवसर को भुनाने में जुटी हुई है. लेकिन महागठबंधन के नेताओं के इस सभा में आने के न्योते के बावजूद नहीं आना बीजेपी के हाथों सियासी मुद्दा थमा गया है.

वहीं लालू प्रसाद इस बीच मजार पर चादर चढ़ाकर ठोस संदेश देने में पीछे नहीं हटे हैं. मुसलमानों की 16 फीसदी आबादी में सेंधमारी ओवैसी की पार्टी नहीं कर सके इसका संदेश लालू प्रसाद ने मजार पर चादर चढ़ाकर दे दिया है. वहीं महागठबंधन के नेताओं ने बाबा के खिलाफ सधे शब्दों में बयान देकर बीजेपी की रणनीति को खारिज करने का भरपूर प्रयास किया है. तेजप्रताप के सुर पहले की तुलना में बदले हुए हैं और प्रेस द्वारा पूछे जाने पर देवराहा बाबा का नाम लेकर उन्होंने इस मसले को डाइवर्ट करने की भरपूर कोशिश की है.

महागठबंधन की सरकार बाबा की विदाई तक किसी भी कंट्रोवर्सी से बचने के लिए नपे तुले शब्दों में बात कर रही है. वहीं बीजेपी रोजाना प्रेस कॉन्फ्रेंस कर महागठबंधन के नेताओं की गैरहाजिरी पर सवाल उठा रही है. बाबा ने इस सबके बीच हिंदू राष्ट्र का मुद्दा उठाकर राजनीति को गरमा दिया है, जिसे बीजेपी हर हाल में भुनाने की कोशिश में है. हाल के दिनों में जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा मटन भोज को लेकर भी बीजेपी जेडीयू को झटका और हलाल वाली मीट के नाम पर घेर रही है. ऐसे में हिंदुत्व की राजनीति को तेज हवा देकर बीजेपी सियासी पड़ाव में कहां तक पहुंच पाती है, ये लोकसभा चुनाव का परिणाम ही तय करेगा.

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