उत्तर प्रदेश की दस विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने सिपहसालार उतार दिए हैं. सपा ने सूबे की दस में से छह सीट पर बुधवार को उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है. उपचुनाव की पहली सूची में सपा ने सियासी परिवारों से बेटे-बेटियों, पत्नी और भाई को मौका देने के साथ जाति की बिसात बिछाने की कवायद की है. तीन पिछड़े, दो मुस्लिम और एक दलित को टिकट देकर सपा ने पीडीए फॉर्मूले को बरकरार रखा तो साथ ही सीट के सियासी और जातीय मिजाज को भी देखकर दांव चला है ताकि जीत की गारंटी तय हो सके?
समाजवादी पार्टी ने करहल सीट से तेजप्रताप यादव, मिल्कीपुर सीट से अजीत प्रसाद, कटहरी सीट से शोभावती वर्मा, फूलपुर सीट से मुस्तफा सिद्दीकी, मझवां सीट से ज्योति बिंद और सीसामऊ सीट से नसीम सोलंकी को उम्मीदवार बनाया है. मीरापुर, कुंदरकी, खैर और गाजियाबाद सदर सीट पर सपा ने उम्मीदवार घोषित नहीं किए. सपा ने जिन छह सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, उनमें से फूलपुर और मझवां सीट छोड़कर बाकी चार सीट पर 2022 में जीतने में कामयाब रही थी. इसीलिए सपा ने उपचुनाव में भी अपना दबदबा बनाए रखने के लिए परिवारवाद से किनारा नहीं किया और जीत के आधार को देखते हुए दांव खेला है.
करहल सीट पर सपा का यादव दांव
मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा सीट से सपा प्रमुख अखिलेश यादव 2022 में विधायक चुने गए थे. 2024 में कन्नौज से लोकसभा सांसद चुने जाने के बाद ये सीट खाली हुई है. करहल सीट पर यादव वोटों के सियासी समीकरण को देखते हुए अखिलेश ने अपने भतीजे पूर्व सांसद तेज प्रताप यादव को उतारा है. मैनपुरी लोकसभा सीट से डिंपल यादव सांसद चुनी गई हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में करहल सीट से सपा को करीब 1.34 लाख वोट मिले थे. करहल सीट पर जातिगत समीकरण देखें तो यादव वोटर सवा लाख के करीब हैं. इसके बाद शाक्य, बघेल और ठाकुर मतदाता हैं, लेकिन तीनों वोट लगभग बराबर हैं.
करहल सीट का सियासी समीकरण
2002 में सिर्फ एक बार बीजेपी यह सीट जीती है और ज्यादातर सपा का कब्जा रहा है. यादव विधायक ही चुने जाते रहे हैं, जिसके चलते अखिलेश ने तेज प्रताप के रूप में यादव प्रत्याशी उतारकर करहल के सियासी समीकरण को साधने का दांव चला है. यादव वोटों के सहारे सपा यह सीट जीतती रही है और उपचुनाव में यही दांव खेला है. बीजेपी और बसपा ने अभी तक करहल सीट पर अपने पत्ते नहीं खोले हैं. 2022 के चुनाव में केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को उतारा था, लेकिन वह जीत नहीं सके. सपा यह सीट बचाए रखने के लिए मैनपुरी से पूर्व सांसद तेज प्रताप यादव को उतारा है, जो अखिलेश यादव के भतीजे हैं और लालू यादव के दामाद हैं.
मिल्कीपुर सीट सपा ने खेला पासी कार्ड
अयोध्या जिले की मिल्कीपुर सीट पर सपा ने अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को उतारा है. अवधेश प्रसाद सांसद बनने से पहले इस सीट से दो बार विधायक रह चुके हैं. फैजाबाद लोकसभा सीट के तहत ही मिल्कीपुर सीट आती हैं, 2024 के लोकसभा चुनाव में मिल्कीपुर सीट पर सपा को 95612 वोट मिले थे. मिल्कीपुर में पिछले तीन विधानसभा चुनाव में दो बार सपा और एक बार 2017 में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. इसीलिए सपा ने मिल्कीपुर सीट पर अवधेश प्रसाद के बेटे को उतारा है ताकि जीत को बरकरार रखा जा सके, लेकिन बसपा ने इस सीट पर राम गोपाल को उतार रखा है.
मिल्कीपुर में जातीय समीकरण
जातीय समीकरण के लिहाज से देखें तो मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर अनुसूचित जाति के मतदाता सबसे ज्यादा हैं, जिसके चलते यह सीट दलितों के लिए आरक्षित है. दलित समुदाय में पासी जाति का वोट यहां पर बड़ी संख्या में है, उसके बाद कोरी जाति के मतदाता हैं. सामान्य वर्ग में ब्राह्मण और ठाकुर वोटर हैं. ओबीसी वर्ग में निषाद, कुर्मी और मौर्य वोटर हैं. मुस्लिम और यादव मतदाता यहां पर 50-50 हजार के करीब हैं. यादव, पासी और मुस्लिम समीकरण के सहारे सपा मिल्कीपुर सीट को अपने पास बरकरार रखने की स्ट्रेटेजी अपनाई है.
कटेहरी सीट पर कुर्मी पर जताया भरोसा
कटेहरी विधानसभा सीट से विधायक रहे लालजी वर्मा के अंबेडकरनगर लोकसभा सांसद चुने जाने के चलते यह सीट खाली हुई है. इसीलिए सपा ने लालजी वर्मा की पत्नी शोभावती वर्मा को प्रत्याशी बनाया है. यह सीट बसपा की परंपरागत सीट रही है, लेकिन लालजी वर्मा के पाला बदलने के बाद समीकरण बदल गए हैं. बीजेपी ने यह सीट सिर्फ 1992 में एक बार जीती थी. 2024 के लोकसभा चुनाव में लालजी वर्मा को कटेहरी विधानसभा पर 1.07 लाख वोट मिले थे जबकि बीजेपी के प्रत्याशी रितेश पांडेय को 90 हजार वोट मिल सके थे. इस तरह सपा का पलड़ा भारी रहा था.
क्या है पार्टियों की रणनीति?
जातीय समीकरण के लिहाज से देखें तो कटेहरी सीट पर दलित और कुर्मी वोटर्स सबसे अहम हैं. इसके बाद मुस्लिम, ब्राह्मण और निषाद समाज के मतदाता हैं. ऐसे ही यादव-ठाकुर, निषाद और राजभर वोटर भी निर्णायक भूमिका में है. सपा ने कुर्मी कैंडिडेट के तौर पर शोभावती वर्मा को उतारा है, लेकिन बसपा ने भी अमित वर्मा के रूप में कुर्मी दांव चला है. बसपा की स्ट्रेटेजी कुर्मी-दलित समीकरण की है तो सपा की रणनीति कुर्मी-मुस्लिम-यादव समीकरण के सहारे जीत दर्ज करने की है.
मझवां सीट पर मल्लाह पर खेला दांव
मिर्जापुर जिले की मझवां विधानसभा सीट से विधायक विनोद कुमार बिंद के भदोही से सांसद चुने जाने के चलते यह सीट खाली हुई है. सपा ने इस सीट पर पूर्व सांसद रमेश बिंद की बेटी डॉ. ज्योति बिंद को प्रत्याशी बनाया है, जो मल्लाह समुदाय से आती हैं. सपा इस सीट पर कभी जीत नहीं सकी है जबकि बसपा पांच बार जीतने में सफल रही. जातिगत समीकरण के लिहाज से देखे तो बिंद यानी मल्लाह वोटर 70 हजार के करीब हैं. इसके बाद दलित और ब्राह्मण 60-60 हजार हैं. कुशवाहा 30 हजार, पाल 22 हजार, राजपूत 20 हजार, मुस्लिम 22 हजार, पटेल 16 हजार हैं. इसीलिए सपा के सामने बिंद प्रत्याशी के तौर पर ज्योति बिंद का दांव खेलकर खाता खोलने की चुनौती है.
फूलपुर-सीसामऊ सीट पर मुस्लिम कार्ड
सपा ने फूलपुर और सीसामऊ सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं. फूलपुर सीट से विधायक रहे प्रवीण पटेल के लोकसभा सांसद चुने जाने के बाद यह सीट खाली हुई है. इस सीट पर बीजेपी लगातार दो बार से जीत रही है. फूलपुर सियासी समीकरण देखें तो सबसे ज्यादा दलित समाज के वोटर हैं, उनकी आबादी 22 फीसदी है. इसके बाद 20 फीसदी यादव मतदाता हैं तो 20 फीसदी ही मुस्लिम वोटर हैं. यहां सवर्ण वोटर्स 10 से 12 फीसदी के बीच हैं. सपा ने 2012 में फूलपुर सीट से विधायक रहे मुस्तफा सिद्दीकी को उपचुनाव में उतारा है. इस तरह सपा की रणनीति यादव और मुस्लिम समीकरण बनाने की है.