चीन (China) जहां अक्साई चिन (Aksai Chin) में एक नया हाईवे (New Highway) का निर्माण कार्य शुरू करने वाला है तो वहीं पिछले पांच साल में भारत (India) एलएसी (LAC) के करीब 2088 किलोमीटर लंबी सड़कें (Road) बना पाया है. इस बावत सोमवार को रक्षा मंत्रालय (Defence Ministry) ने एक लिखित सवाल के जवाब में संसद को ये जानकारी दी. राज्य सभा में सांसद सरोज पांडे (Saroj Pandey) के सवाल पर रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट (Ajay Bhatt) ने लिखित जानकारी देते हुए बताया कि पिछले पांच सालों में बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन यानि बीआरओ ने चीन सीमा पर कुल 2088.57 किलोमीटर लंबी सड़कों का निर्माण किया है.
इन सड़कों के निर्माण में 15477.06 करोड़ का खर्च आया है. रक्षा राज्यमंत्री ने ये भी बताया कि चीन सीमा से सटी लाइन ऑफ कंट्रोल पर बनी ये सभी सड़कें ऑल-वेदर हैं यानि 12 महीने इनपर आवाजाही हो सकती है. पिछले सप्ताह ही चीन ने इस बात की घोषणा की थी कि तिब्बत से लेकर शिन्यचियांग एक नया एक्सप्रेस-वे हाईवे (जी-695) बनाने जा रहा है जो भारत के अक्साई-चिन से होकर गुजरेगा.
1962 से अक्साई चिन चीन का अवैध कब्जा
1962 के युद्ध के बाद से ही चीन ने गैर-कानूनी तरीके से अक्साई-चिन पर कब्जा किया हुआ है. ये दूसरा हाईवे है जो चीन वाया अक्साई चीन तिब्बत से शिन्चियांग के बीच बनाने जा रहा है. इससे पहले 1957 में भी चीन ने ऐसा एक हाईवे (G-219) बनाया था अक्साई-चिन से होकर गुजरता था और जो 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध का एक बड़ा कारण बना था. सोमवार को भारत-चीन सीमा पर सड़कों की जानकारी के अलावा रक्षा राज्यमंत्री ने संसद को ये भी बताया कि पिछले पांच सालों में बीआरओ ने पाकिस्तान सीमा पर 1336.09 किलोमीटर (कुल खर्चा 4242 करोड़), म्यांमार सीमा पर 151.15 किलोमीटर (कुल लागत 882.52 करोड़) और बांग्लादेश बॉर्डर पर 19.25 किलोमीटर (कुल खर्च 165.45 करोड़) का निर्माण किया है.
हथियार उत्पादक इकाइयां
एक लिखित सवाल के जवाब में रक्षा राज्यमंत्री (Defence State Minister) ने ये भी जानकारी दी कि रक्षा क्षेत्र में “मेक इन इंडिया” (Make In India) को बढ़ावा देने के लिए सरकार (Government) ने 358 निजी कंपनियों (Private Companies) को 584 रक्षा लाइसेंस (Defence licence) जारी किए हैं. इनमें हथियारों (Arms) के निर्माण हेतु 107 लाइसेंस जारी किए हैं. अजय भट्ट (Ajay Bhatt) ने ये भी बताया कि इसके अलावा 16 सार्वजनिक क्षेत्र की रक्षा कंपनियां पहले से हैं जो सशस्त्र बलों के लिए विभिन्न मिलिट्री-प्लेटफार्म और उपकरणों का निर्माण करती हैं.