‘नरबलि’ सी कुप्रथा सदियों पहले जब शुरू हुई थी, तब का समाज और कानून उस जमाने के रहे होंगे. आज जब वैज्ञानिक युग में सब कुछ बढ़कर काफी आगे आ चुका है, तब हमें बदला हुआ नजर भी आना चाहिए. विशेषकर इस कुप्रथा पर पाबंदी को लेकर ऐसा मगर है नहीं. सच इसके एकदम विपरीत है. टीवी9 भारतवर्ष द्वारा शुरू विशेष सीरीज ‘नरबलि अंधी श्रद्धा या शिक्षा पर श्राप’ की इस कड़ी में आज पेश है, नरबलि से जुड़ी एक वो कहानी, जिसमें किसी मासूम के कत्ल की सजा महज 5 साल और 50 हजार रुपया अर्थदंड के रूप में तय की गई.
सवाल यह नहीं है कि कानून और कोर्ट की किसी कमजोरी के चलते ऐसा हुआ होगा. सवाल यह पैदा होता है कि जब कत्ल के किसी आम मामले में उम्रकैद तक की सजा मुकर्रर की जा सकती है, तो फिर पांच साल के मासूम को नरबलि की खातिर कत्ल कर डाले जाने की सजा महज पांच साल क्यों? जाहिर सी बात है कि मुजरिम को सजा पुलिस द्वारा की गई तफ्तीश के आधार पर कोर्ट द्वारा सुनाई जाती है. जिस घटना का जिक्र हम यहां कर रहे हैं, वो भी किसी मासूम के कत्ल की ही है. फिर सजा में फर्क क्यों?
10 साल पुरी है घटना, 5 साल के मासूम का मिला था क्षत-विक्षत शव
घटना करीब आज से 10 साल पहले उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले के रघवापुर दोआबा नगर कोतवाली क्षेत्र की है. यहां 23 मई 2012 को सुबह के वक्त मनोज चौरसिया का पांच साल का बेटा जतिन कुमार रहस्यमय हालातों में गायब हो गया था. तलाशने के बाद भी सुराग नहीं लगा, तो परिजनों ने स्थानीय थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट करवा दी. इसके तीन दिन बाद ही बच्चे की क्षत-विक्षत लाश गांव के बाहर झाड़ियों से बरामद हो गई. लाश मिलने के बाद पिता के बयान पर पुलिस ने पहले दर्ज, गुमशुदगी की रिपोर्ट को ही अपहरण व हत्या की धाराओं में दर्ज कर दिया.
दुर्गति के पीछे ये तीन वजहें?
शव को इस कदर क्षत-विक्षत किया गया था, जैसे कि मानों हत्यारे ने बार-बार उसकी दुर्गति की हो. मौके पर पहुंची पुलिस को शव की हुई दुर्गति देखकर तीन बातों की आशंका हुई. पहली तो यह कि पांच साल के मासूम बच्चे को कत्ल किसी रंजिश के चलते किया गया होगा. अमूमन रंजिश को लेकर की गई हत्याओं के मामलों में ही, शव को चीर-फाड़ के उसकी दुर्गति की जाती है. ताकि हत्यारा दुश्मनी के चलते मन में मौजूद अपना क्षोभ या भड़ास इस बहाने से पूरी तरह से बाहर निकाल सके. दूसरे, हत्यारे या हत्यारा शव की दुर्गति तब करते हैं जब उसकी पहचान मिटानी हो. तीसरे कारण में शव की दुर्गति किए जाने की प्रबल आशंकाएं तब पनपती हैं जब, शव का इस्तेमाल किसी तांत्रिक क्रिया या कहिए नरबलि के लिए किया गया हो. क्योंकि तांत्रिक क्रियाओं में किसी भी शव से कुछ विशेष अंगों को निकाल कर उनका इस्तेमाल किया जाता है.
कड़ी से कड़ी जोड़कर आरोपी को दबोचा
इन तीनों ही आशंकाओं पर पुलिस ने जब माथापच्ची कर ली. परिवार और गांव वालों से भी काफी कुछ पूछताछ कर ली. इस उम्मीद में कि शायद पांच साल के मासूम जतिन कुमार के कत्ल की वजह से परदा उठ सके. इसी पूछताछ के दौरान पुलिस को कुछ ऐसी बातें पता चलीं, जिन्होंने उसकी तफ्तीश का रुख रघुवापुर के पास ही स्थित दूसरे गांव तेजवापुर की ओर मोड़ दिया. वहां पुलिस ने कड़ी से कड़ी जोड़कर धर्मराज उर्फ मन्ना को हिरासत में ले लिया. हालांकि, उसकी गिरफ्तारी का शुरुआती दौर में उसके गांव वालों ने विरोध किया था. यह कहते हुए कि पुलिस आरोपी को जबरिया ही कत्ल के आरोप में फंसा रही है. उसके बाद भी चूंकि गवाह और सबूत संदिग्ध धर्मराज उर्फ मन्ना के खिलाफ थे. लिहाजा, पुलिस ने उसे ही कातिल के बतौर गिरफ्तार करके जेल भेज दिया.
नरबिल के हत्यारे को 5 साल जेल और 50 हजार रुपए सिर्फ अर्थदंड ?
बाद में मुकदमे का जब कोर्ट में ट्रायल शुरू हुआ, तो आरोपी के खिलाफ दाखिल चार्जशीट के आधार पर हत्यारे पर आरोप भी निर्धारित कर दिए गए. कोर्ट ने आरोपी से जब पुलिस द्वारा उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों के बारे में पूछा तो, उसने उन सभी आरोपों को मानने से इनकार कर दिया. लिहाजा, कोर्ट में करीब पांच साल चले मुकदमे के बाद आरोपी को मासूम के कत्ल (नरबलि) का मुजरिम करार दिया. साथ ही सजा के बतौर मुजरिम धर्मराज उर्फ मन्ना को पांच साल बाद जुलाई 2017 में पांच साल जेल की सजा और पचास हजार रुपए अर्थदंड सुनाया गया. यह सजा तत्कालीन जिला जल दिलीप सिंह यादव द्वारा सुनाई गई थी. अदालत में मौजूद बच्चे के पिता की आंखों में से आंसू निकल आए और उसके मुंह से बस इतना ही निकला कि मेरे जिगर के टुकड़े (बच्चे) का कत्ल कर डालने वाले को आरोपी को उम्रकैद की भी सजा न हो सकी. अब मैं जीवन की अंतिम सांस तक बेटे के कातिल को उम्रकैद की सजा कराने के लिए ही लड़ता रहूंगा.”