दिल्ली में नवजात शिशु को लेकर परिजन एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भटकते रहे, लेकिन कहीं वेंटिलेटर नहीं मिला और बच्चे की मौत हो गई. विमल कुमार मंडल एक प्राइवेट नौकरी करते हैं. द्वारका के दादा देव हॉस्पिटल में विमल की पत्नी किरण देवी की डिलीवरी सात महीने में ही हो गई. बच्चा बहुत कमजोर था. विमल कुमार ने बताया कि बच्चा बहुत कमजोर था. छह दिन तक बच्चा उसी अस्पताल में एडमिट रहा, लेकिन उसमें कोई सुधार नहीं हुआ तो अस्पताल ने बोल दिया कि कहीं और ले जाओ.
विमल कुमार मंडल ने बताया कि हम 15 अक्टूबर को सुबह 10 बजे सबसे पहले सफदरजंग अस्पताल में आए तो यहां उसे एडमिट ही नहीं किया गया. किसी ने हमसे बात ही नहीं की. मेरे बच्चे की सांस ठीक से नहीं चल रही थी. उसे वेंटिलेटर मिल जाता तो वो ठीक हो जाता. सफदरजंग अस्पताल में जब उसे किसी ने नहीं देखा तो हम राम मनोहर लोहिया लेकर भागे, लेकिन वहां भी पता चला कि वेंटिलेटर वाले बेड नहीं हैं.
वेंटिलेटर न मिलने से बच्ची की हुई मौत
फिर हम कलावती हॉस्पिटल, चाचा नेहरू हॉस्पिटल सब जगह गए, लेकिन कहीं वेंटिलेटर नहीं मिला. फिर थककर शाम को फिर सफदरजंग अस्पताल में आ गए और यहां इमरजेंसी में सबके हाथ जोड़ने लगे कि मेरे बच्चे को बचा लो तो एक डॉक्टर ने बच्चे को देखा, उसे दवाएं दीं, लेकिन उसकी तबीयत में सुधार नहीं हुआ. मैंने कहा कि वेंटिलेटर वाला बेड दे दीजिए तो ठीक हो जाएगा तो डॉक्टर बोले, “जाओ, अस्पताल में पता कर आओ’. मैं गया, सबसे पूछा, लेकिन वेंटिलेटर नहीं मिला और रात में उसकी मौत हो गई.
बच्ची की मौत, मां सफदरजंग हॉस्पिटल में एडमिट
विमल कुमार मंडल ने कहा कि इतने बड़े-बड़े अस्पताल हैं, लेकिन कहीं मेरे छह दिन के बच्चे को वेंटिलेटर नहीं मिला. वो मेरा पहला बच्चा था. मेरी पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल है, वो सफदरजंग हॉस्पिटल में एडमिट है.