अयोध्या विवाद पर दुसरे दिन निर्मोही अखाड़ा ने शीर्ष अदालत में अपना पक्ष रखा

अयोध्या मामले मामले की सुप्रीम कोर्ट में आज भी सुनवाई जारी रही। सुनवाई के दौरान निर्मोही अखाड़ा का पक्ष सुनते हुए 5 जजों की बेंच में शामिल जस्टिस ए एस बोबडे ने बड़ा ही रोचक सवाल पूछ लिया। उन्होंने पूछा कि क्या जिस तरह राम का केस सुप्रीम कोर्ट में आया है कहीं और किसी गॉड का केस आया है? क्या जीसस बेथलम में पैदा हुए इस पर किसी कोर्ट में सवाल उठा था? तब रामलला के वकील परासरण ने कहा कि लोग ऐसा मानते हैं और उनका विश्वास है कि राम वहां विराजमान हैं और ये अपने आप में ठोस सबूत है कि वह राम की जन्मस्थली है। बता दें कि अयोध्या केस के दूसरे दिन की सुनवाई आज पूरी हो गई है। 

इससे पहले रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में एक प्रमुख पक्षकार निर्मोही अखाड़े का पक्ष सुनते हुए जस्टिस बोबडे ने पूछा कि क्या निर्मोही अखाड़े को सेक्शन 145 सीआरपीसी के तहत रामजन्मभूमि पर दिसंबर 1949 के सरकार के अधिग्रहण के आदेश को चुनौती देने का अधिकार है क्योंकि उन्होंने इस आदेश को 6 साल का लिमिटेशन पीरियड समाप्त होने के बाद 1959 में चुनौती दी।

दरअसल, निर्मोही अखाड़े ने मंगलवार को अपनी दलील में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को 2.77 एकड़ की संपूर्ण विवादित जमीन पर उसके नियंत्रण और प्रबंधन की अनुमति देनी चाहिए क्योंकि मुसलमानों को वहां 1934 से ही प्रवेश की अनुमति नहीं है। 

फिर सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े से अयोध्या की विवादित जमीन पर उसके अधिकार के दस्तावेजी सबूत मांगे। कोर्ट ने कहा, ‘क्या आपके पास अटैचमेंट से पहले रामजन्मभूमि पर अपने अधिकार को लेकर मौखिक या दस्तावेजी सबूत, रेवेन्यू रिकॉर्ड्स हैं?’ अखाड़ा ने जवाब में कहा कि 1982 में एक डकैती हुई थी जिसमें सारे रिकॉर्ड्स चले गए। 

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच के सामने वरिष्ठ वकील सुशील जैन निर्मोही अखाड़ा की तरफ से दलील रख रहे हैं। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एस ए नजीर वाली संवैधानिक पीठ ने बीते शुक्रवार को अयोध्या विवाद के विभिन्न पक्षकारों के बीच मध्यस्थता के लिए गठित तीन सदस्यों वाली समिति की रिपोर्ट पर विचार किया।

पीठ ने माना कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एफएमआई कलिफुल्ला की अगुआई वाली यह समिति चार महीनों की कोशिश के बाद भी किसी प्रभावी नतीजे पर पहुंचने में नाकामयाब रही। इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने 6 अगस्त से तब रोजाना सुनवाई का फैसला किया जब तक कि इस मामले में आखिरी फैसला नहीं हो जाता है। 

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