विधायकों-सांसदों को अयोग्य घोषित किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- स्पीकर नहीं ट्रिब्यूनल के हाथ हो फैसला

दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि किसी भी सांसद या विधायक की सदस्यता रद्द करने में स्पीकर के पॉवर पर विचार करने की जरूरत है क्योंकि स्पीकर निष्पक्ष नहीं हो सकता. सर्वोच्च न्यायालय ने संसद से कहा है की इस पर विचार कर कानून बनाया जाए. अदालत ने सुझाव दिया है कि किसी रिटायर्ड जजों की कमिटी को सदस्यता रद्द करने या बरकार रखने का अधिकार दिया जाए. ये कमिटी या कोई ट्रिब्यूनल हर जगह सालों भर काम करे जहां सदस्यता से जुड़े मसले तय किए जाएं.

मौजूदा कानून के मुताबिक स्पीकर कोंट अधिकार होता है कि किसी भी सांसद या विधायक की सदस्यता रद्द करे या उस बहाल रखे. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि स्पीकर किसी ना किसी राजनीतिक दल का होता है इसलिए वह निष्पक्ष फैसले नहीं के सकता.

मणिपुर के मामले की सुनवाई कर रही थी सुप्रीम कोर्ट
आम तौर पर जब दल बदल या सरकार को समर्थन देने या वापस लेने का मामला होता है तो उस सदस्य कि सदस्यता पर सवाल खड़े किए जाते है है. ऐसे में स्पीकर को अधिकार होता है कि वह सदस्य कि सदस्यता रद्द करे, बरकरार रखे, या कोई फैसला ही ना ले. ऐसी स्थिति में मामला फिर हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट पहुंचता है. अदालत स्पीकर को कोई फैसला लेने के लिए बाध्य नहीं कर सकता.

इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संसद को इसका समाधान ढूंढना चाहिए. मौजूदा मसला मणिपुर से जुड़ा है. दो विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर प्रदेश में मंत्री श्यामकुमर की सदस्यता रद्द करने की मांग की. श्यामकुमार पहले कांग्रेस में थे और बाद में बीजेपी में शामिल हो कर मंत्री बन गए. लेकिन मणिपुर के स्पीकर इस पर कोई फैसला ही नहीं ले रहे. मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर के स्पीकर से चार हफ्तों में फैसला लेने को कहा है.

Related posts

Leave a Comment