भाई भतीजा वाद को लेकर बीजेपी बैकफुट पर आ गयी है. कहने को तो बीजेपी में कहावत है कि बेटे या सगे सम्बन्धियों को विधानसभा की टिकट नहीं दी जाएगी. लेकिन कुछ ऐसे उदाहरण भी है जहां बीजेपी का सिद्धांत बेमानी हो जाता है. बीते लोकसभा चुनाव के दौरान अभिनेता सन्नी देओल और अभिनेत्री हेमा मालिनी सभी को याद होगा. दोनों ही रिश्ते में माँ-बेटा है. सन्नी देओल को पंजाब के गुरदासपुर से लोकसभा का टिकट मिला तो वही हेमा मालिनी को मथुरा से लड़ाया गया. नतीजे साफ़ निकले दोनों ही जीतकर आज लोकसभा में पहुँचे है.
वही दूसरी ओर बात करे बीजेपी की कद्दावर नेता और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की तो उनके पुत्र पंकज सिंह भी आज उत्तर प्रदेश में नॉएडा से विधायक है. इतना ही नहीं राजनाथ सिंह के बेटे को अभी हाल फिलहाल में उत्तर प्रदेश में मंत्री तक बना दिया गया है.
अब बात करते है मेनका गाँधी ओर वरुण गाँधी की. आपको बता दे कि दोनों ही बीजेपी से सांसद है ओर दोनों रिश्ते में माँ-बेटे है. मेनका गाँधी को बीजेपी ने सुल्तानपुर से टिकट दिया वही वरुण गाँधी को पीलीभीत से उम्मीदवार बनाया था. दोनों ने बीजेपी की टिकट से बड़ी जीत हासिल की थी.
न जाने ऐसे कई उदाहरण है जिसमे बीजेपी के सिद्धांत झूठे साबित हुए है. फिर अब हरियाणा के विधानसभा चुनाव की बात करे तो अब बीजेपी को अपने सिद्धांत याद आ रहे है. सवाल यह उठता है कि जब लोकसभा का चुनाव हो या फिर किसी बड़े दिग्गज नेता का बेटा सामने नज़र आये तब बीजेपी भूल जाती है कि उसके कुछ अपने भी सिद्धांत है. उनके लिए पार्टी में अंदर या बाहर कोई विरोध नहीं हुआ. आसानी से बीजेपी ने सभी को टिकट दे दी. लेकिन जब बात उनसे छोटे कद के नेता के बेटे या बेटी की हो तो फिर से बीजेपी को अपने सिद्धांत का भूत सामने नज़र आने लगता है. पार्टी में इतना भेदभाव क्यों हो रहा है?