नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) के आदेश को रद्द करते हुए पश्चिम बंगाल में त्योहारों के दौरान ग्रीन पटाखों (Green Crackers) के इस्तेमाल को इजाजत दे दी है. मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार ये सुनिश्चित करे कि जब पटाखे राज्य में लाए जाएं तभी उनको वैरीफाई किया जाए. पटाखों पर पूरी तरह बैन नहीं लगाया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि ग्रीन पटाखों की पहचान के लिए मैकेनिज्म पहले से मौजूद है, राज्य ये सुनिश्चित करें कि ये मैकेनिज्म मजबूत होना चाहिए.
जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि पटाखों का मामला कोई नया नहीं है. 2018 में पहला आदेश आया था, इसके बाद फिर से आदेश आया. लेकिन हम घूमकर स्केवयर वन पर आ गए हैं. याचिकाकर्ताओं ने ऐसा कोई नया मामला नहीं बनाया है. सिर्फ ये कहना कि आदेश को लागू करने में प्रैक्टिकल दिक्कत है, काफी नहीं है. अगर कुछ राज्यों ने इस तरह पटाखों पर बैन लगाया है और अगर कोई इसे चुनौती देता है तो अदालत मामले को सुनेगी. जब सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही इस मामले को तय कर दिया है तो पूरे देश में एक ही नीति होनी चाहिए.
सुनवाई के दौरान जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस अजय रस्तोगी की अवकाशकालीन पीठ के सामने याचिकाकर्ताओं के वकील सिद्धार्थ भटनागर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया. 29 अक्टूबर के जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना के आदेश में सभी पटाखों पर बैन नहीं होने पर भटनागर ने जोर दिया और कहा कि आदेश में ग्रीन पटाखों को बेचने और चलाने की अनुमति दी गई है. तय जगह और तय अवधि में चलाने की अनुमति दी गई है. जस्टिस खानविलकर ने नोट किया कि ये आदेश पश्चिम बंगाल के वकील को भी सुनने के बाद दिया गया था.
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि तेलंगाना हाईकोर्ट ने भी पटाखों पर बैन लगाया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बदल दिया था. दिवाली, छठ पूजा और क्रिसमस के लिए ग्रीन पटाखे और आतिशबाजी बनाने, बेचने और चलाने पर पाबंदी नहीं है. पटाखों पर पाबंदी का आदेश एनजीटी ने दिया था, जिसमें ग्रीन पटाखे को ही सशर्त मंजूरी दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने भी उसे ही गाइड लाइन के साथ जारी किया था. दूसरे याचिकाकर्ता की ओर से मालविका त्रिवेदी ने कहा कि ग्रीन पटाखों को इजाजत दी जाए. जस्टिस खानविलकर ने कहा कि मुख्य समस्या ग्रीन पटाखों के वेरिफिकेशन को लेकर है.
सुप्रीम कोर्ट में मामले के याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकरनारायण ने अदालत को बताया कि पटाखा निर्माता बैन रासायनों के पटाखों को ग्रीन पटाखों को बेच रहे हैं. सीबीआई ने भी अदालत को ये रिपोर्ट सौंपी है. फर्जी क्यूआर कोड वाले पटाखे बनाए और बेचे जा रहे हैं. डिब्बे पर ग्रीन पटाखे छाप कर बेरियम वाले पटाखे बेचे जा रहे हैं. क्यूआर कोड भी नकली हैं. पाबंदी वाले पटाखे धड़ल्ले से बिक रहे हैं. कोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ाई जा रही है. गोपाल शंकर नारायण की दलील है कि लॉ इनफोर्सिंग एजेंसीज आंख मूंदे बैठी हैं. PESO यानी पेट्रोलियम एंड एक्सप्लोसिव सेफ्टी ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ इंडिया ने तीन सौ किस्म के पटाखों में से सिर्फ चार किस्म के पटाखों को ही मंजूरी दी है. सबसे लोकप्रिय आतिशबाजी रॉकेट को भी PESO ने सेहत के लिए काफी खतरनाक बताते हुए रिजेक्ट कर दिया है.
आनंद ग्रोवर ने पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से कहा कि पटाखे बनाने वालों और उनके उत्पादों का ऑनलाइन वेरिफिकेशन रियल टाइम में हो सकता है. कई एप्लीकेशन हैं जिनकी सहायता से
पुलिस और अन्य एजेंसियां ग्रीन पटाखों और बेरियम जैसे खतरनाक रसायन वाले पटाखों की पहचान और तस्दीक कर सकती है. अवैध पटाखों की बिक्री और स्टॉक रखने के मामले में पश्चिम बंगाल में 31 अक्तूबर तक 7 FIR दर्ज कर 10 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. 2018 और 2019 में भी केस दर्ज हुए और गिरफ्तारी हुई.
बता दें कि कलकत्ता हाईकोर्ट ने 29 अक्तूबर को राज्य में पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर पूरी पाबंदी लागू करने का आदेश दिया था. आदेश में ग्रीन पटाखे भी शामिल हैं. जिसके बाद ग्रीन पटाखों के निर्माताओं ने सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी थी. कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश को दो याचिकाओं के जरिए चुनौती दी गई. एक याचिका गौतम रॉय ने और दूसरी सुदीप भौमिक ने दाखिल की. इनकी दलील है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने सभी तरह के पटाखों के बेचने और प्रयोग पर पूर्ण पाबंदी नहीं लगाई है यानी हरित पटाखों को छूट दी है तो कलकत्ता हाईकोर्ट का आदेश रद्द किया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने बेरियम जैसे खतरनाक रसायनों से बनाए जाने वाले पटाखों और आतिशबाजी पर सख्त पाबंदी लगाई है. ग्रीन पटाखों के लिए छूट है.