कोरोना संकट के दौरा देश भर में लागू लॉकडाउन के दौरान होम और कार लोन की किस्तों पर छूट का लाभ प्राप्त करने वाले लोगों को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। लोन मोरेटोरियम अवधि मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि पूरे ब्याज की छूट संभव नहीं है क्योंकि इससे जमाकर्ताओं पर प्रभाव पड़ता है। कोर्ट ने मोरेटोरिम की अवधि बढ़ाने से इनकार कर दिया लेकिन कहा कि मोरिटोरिम के दौरान अवधि के लिए कोई चक्रवृद्धि ब्याज नहीं लिया जाएगा।
कोर्ट ने साथ ही कहा कि आर्थिक नीति निर्णयों पर न्यायिक समीक्षा का सीमित दायरा है। कोर्ट व्यापार और वाणिज्य के शैक्षणिक मामलों पर बहस नहीं करेगा। बेहतर नीति के आधार पर नीति को रद्द नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि सरकार, आरबीआई विशेषज्ञ की राय के आधार पर आर्थिक नीति तय करती है।
क्या है मामला
उल्लेखनीय है कि कोरोना काल में वायरस के असर को कम करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने कर्ज देने वाली संस्थाओं को लोन के भुगतान पर मोराटोरियम की सुविधा देने के लिए कहा था। ये सुविधा पहले 1 मार्च 2020 से 31 मई 2020 के बीच दिए गए लोन पर दी जा रही थी, जिसे बाद में 31 अगस्त 2020 तक बढ़ा दिया गया। बाद में रिजर्व बैंक ने बाकी सभी बैंकों को एक बार लोन रीस्ट्रक्चर करने की इजाजत दी, वो भी उस कर्ज को बिना एनपीए में डाले, जिससे कंपनियों और इंडिविजुअल्स को कोरोना महामारी के दौरान वित्तीय परेशानियों से लड़ने में मदद मिल सके। इस लोन रीस्ट्रक्चरिंग के लिए सिर्फ वही कंपनियां या इंडिविजुअल योग्य थे, जिनके खाते 1 मार्च 2020 तक 30 दिन से अधिक डिफॉल्ट स्टेटस में नहीं रहे हों।
1 मार्च से 31 अगस्त तक मोराटोरियम
25 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा की गई थी। लोन मोराटोरियम घोषणा 1 मार्च से 31 अगस्त तक लागू किया गया था। इस दौरान कर्जदारों को ईएमआई चुकाने से राहत दी गई। बाद में मोराटोरियम पीरियड के दौरान ब्याज पर ब्याज का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और सरकार ने कहा कि कर्जदारों को ब्याज पर ब्याज नहीं भरना होगा।