अफगानिस्तान में इतिहास की सुई एक बार फिर 20 साल पहले की स्थिति में पहुंच गई है. करीब दो दशक बाद एक बार फिर काबुल के किले पर तालिबानी परचम लहरा रहा है. बीते लंबे वक्त से लड़खड़ाते हुए चल रही अफगानिस्तानी सरकार तालिबानियों के सामने महज कुछ ही दिनों के भीतर धराशायी हो गई. इस्लामिक अमीरात बनाने का नारा लेकर चले तालिबानी लड़ाकों ने देश के लगभग हर महत्वपूर्ण इलाकों पर कब्जा जमा लिया है.
मौजूदा हालत देखकर लगभग साफ हो गया है कि अफगानिस्तान में अब एक बार फिर तालिबान का राज होने जा रहा है. ऐसे में हमारे लिए यह जानना बहूत जरूरी है कि आखिर कौन है तालीबानी और कैसे इसकी शुरूआत हुई है.
जानें कौन है तालिबान-
जब 80 दशक के आखिरी पलों में सोवियत संघ अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला रहा था, तब मुजाहिदीनों के अलग उसी 90 के दशक की शुरुआत में तालिबान का उभार हुआ. और लड़ना उनकी फितरत थी और फिर 1996 में अफगानिस्तान पर कब्जा जमा लिया.
पश्तो, अरबी और फारसी जुबान में छात्रों को तालिब कहा जाता है. इसी मूल शब्द से तालिबान बना है.माना जाता है कि पश्तो आंदोलन पहले धार्मिक मदरसों में उभरा. जिसे सऊदी अरब ने आर्थिक मदद मुहैया कराई थी. अरब में वहाबी इस्लाम का बोलबाला है, इस आंदोलन में सुन्नी इस्लाम की कट्टर मान्यताओं का प्रचार किया जाता था, लेकिन ये वहाबी या सलफी इस्लाम से जरा अलग है. ये इमाम अबु हनीफा के मसलक (संप्रदाय) के मानने वाले हैं मुसलमान हैं.
अमेरिका और सऊदी अरब के सहयोग से ये आंदोलन फलना फूलना शुरू हुआ और इसी दौरान दक्षिण पश्चिम अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभाव तेजी से बढ़ा.
मामला ये है कि अफगानिस्तान की जमीन कभी सोवियत संघ के हाथ में थी और 1989 में मुजाहिदीन ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया. इन्ही मुजाहिदीन के एक गुट का कमांडर बना पश्तून आदिवासी समुदाय का सदस्य मुल्ला मोहम्मद उमर. उमर ने आगे चलकर तालिबान की स्थापना की.
हेरात पर कब्जा
तालिबान लगातार ताकतवर होते जा रहे थे और इसी के नतीजे में सितंबर 1995 में उन्होंने ईरान की सीमा से लगे हेरात प्रांत पर कब्ज़ा किया. इसके ठीक एक साल बाद तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया. तालिबान ने उस वक्त अफगानिस्तान के राष्ट्रपति रहे बुरहानुद्दीन रब्बानी को सत्ता से हटा दिया. रब्बानी सोवियत सैनिकों के अतिक्रमण का विरोध करने वाले अफगान मुजाहिदीन के संस्थापक सदस्यों में थे.
1998 तक करीब 90 फीसदी अफगानिस्तान पर तालिबान का नियंत्रण हो गया. इसी दौरान तालिबान ने सज़ा देने के इस्लामिक तौर तरीकों को लागू किया. जिसमें हत्या और व्याभिचार के दोषियों को सार्वजनिक तौर पर फांसी देना और चोरी के मामले में दोषियों के अंग भंग करने जैसी सजाएं शामिल थीं. पुरुषों के लिए दाढ़ी और महिलाओं के लिए पूरे शरीर को ढकने वाली बुर्क़े का इस्तेमाल ज़रूरी कर दिया गया.सतालिबान ने टेलीविजन, संगीत और सिनेमा पर पाबंदी लगा दी और 10 साल और उससे अधिक उम्र की लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक लगा दी.
2002 में अंत
साल 2001 में तालिबान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोध के बाद भी बामियान में बुद्ध की प्रतिमा को नष्ट कर दिया. अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकी हमले के बाद तालिबान दुनिया की नजरों में आया. अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन 11 सितंबर, 2001 के अमेरिका में आतंकी हमले की योजना बना रहा था, तब तालिबान ने उसे पनाह दे रखी थी. हमले के अमेरिका ने तालिबान से लादेन को सौंपने के लिए कहा था, लेकिन तालिबान ने साफ इन्कार कर दिया. इसके बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान में घुसकर मुल्ला उमर की सरकार को गिरा दिया. इस संगठन में करीब 85 हजार लड़ाके शामिल हैं.