नेतागिरी के दांव पेंच सिखाने वाले ट्रेनिंग सेंटर का प्रस्ताव ठंडे बस्ते में!

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की सत्ता संभालने के एक साल बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सूबे में हर जनप्रतिनिधि (विधायक-सांसद) को नेतागिरी के दांव पेंच सिखाने वाला संस्थान (ट्रेनिंग सेंटर) खोलने का फैसला किया था. तब कहा गया था, देश के हर राज्य, मोहल्ले और गांव में राजनीति और नेता तो हैं, पर उन्ंहे राजनीति के दांव पेच सीखने का कोई संस्थान समूचे देश में नहीं है. इस कमी को दूर करने के लिए यूपी में देश का पहला नेतागिरी (राजनीति) सिखाने का ट्रेनिंग सेंटर खोला जाएगा.

इस सोच के तहत ही 10 अक्टूबर 2018 को यूपी कैबिनेट की बैठक में एक ट्रेनिंग सेंटर (प्रशिक्षण केंद्र) खोलने के फैसले पर मुहर लगाई. इसके निर्माण के लिए 50 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया और गाजियाबाद में इसके लिए करीब 51,213 वर्ग मीटर भूमि चिन्हित कर ली गई.

फिर भी सरकार के इस फैसले के कई साल बीतने के बाद भी ट्रेनिंग सेंटर के निर्माण के लिए एक भी ईट नहीं रखी जा सकी. अब तो इसके निर्माण का ऐलान करने वाले सूबे के कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना भी कुछ बोलने को तैयार नहीं है. इसकी वजह है, सरकार ने इस ट्रेनिंग सेंटर के प्रस्ताव को ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया है. जैसा कि जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय केंद्र के निर्माण को ठंडे बस्ते में डाला हुआ है.

योगी सरकार 5 सालों से साधे है मौन
फिलहाल जिस ट्रेनिंग सेंटर के निर्माण को लेकर योगी सरकार पांच सालों से मौन साधे हैं. उसके बारे में 10 अक्तूबर 2018 को तत्कालीन नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना ने कई बड़े दावे किए थे. तब उन्होने कहा था कि हर क्षेत्र में लगातार नए – नए बदलाव हो रहे हैं. नई टेक्नोलॉजी, महंगी गाड़ियां, ज्यादा संसाधन, हर जगह मीडिया की पहुंच, सोशल मीडिया की चौबीसों घंटे जनप्रतिनिधियों पर निगाह रख रही है. जो जनप्रतिनिधियों के लिए चुनौती बनता जा रहा है. उन्हें इन चुनौतियों से निपटने के अपने को सक्षम बनाना होगा. चूकि देश और प्रदेश में अभी तक नेतागीरी का कोई औपचारिक संस्थान नहीं है.

सीख सकेंगे राजनीतिक चुनौती से निपटने के गुर
ये देख सुनकर ही प्रदेश सरकार ने एक ट्रेनिंग सेंटर खोलने का फैसला किया है. इस ट्रेनिंग सेंटर में जनप्रतिनिधियों को लोकतांत्रिक संस्थाओं, संगठनों की अलग- अलग विधियों और परिपाटियों के साथ ही नियम और कानून की जानकारी दी जाएगी. ताकि सूबे का हर जनप्रतिनिधि बारीकियां जाने और हर राजनीतिक चुनौती से निपटने के गुर सीख सके.

तब सुरेश खन्ना ने यह भी बताया था कि गाजियाबाद में 50 करोड़ रुपए की लागत से 51,213 वर्ग मीटर भूमि पर तैयार होने वाले इस सेंटर में ऐसे डिप्लोमा या डिग्री पाठ्यक्रम भी होंगे जो युवाओं को राजनीति में आने के लिए तैयार करेंगे. इस आवासीय ट्रेनिंग सेंटर में जनप्रतिनिधियों के रहने की भी व्यवस्था की जानी थी.

ट्रेनिंग सेंटर की इसलिए है जरूरत
तब इस ट्रेनिंग सेंटर की जरूरत को लेकर सुरेश खन्ना का कहना था, हर जनप्रतिनिधि (विधायक-सांसद) को अपने अधिकारों और कर्तव्यों को जानना बेहद जरूरी है. सदन में कौन सी बात कैसे रखनी है. किस नियम के तहत काम रोको प्रस्ताव आ सकता है, किस नियम के तहत सूचना देनी है, व्यवस्था का प्रश्न किस नियम के तहत उठाना है? अधिकारियों से जनता के समस्याओं का समाधान कैसे करवाना है? यह सब हर जनप्रतिनिधि के लिए सीखना जरूरी है. अभी सदन के वरिष्ठ सदस्य ही नए विधायकों को यह बताते हैं. ट्रेनिंग सेंटर बनने पर यह सब बातें वहां सिखाई और बताई जाएंगी. यही नहीं इस सेंटर में जनप्रतिनिधि को कंप्यूटर और लैपटाप चलाना भी सिखाया जाएगा.

राजनीति में तेजी से बढ़ रही युवाओं की संख्या
पूर्व विधायक और राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष रामाशीष राय जनप्रतिनिधियों के लिए इस तरह का ट्रेनिंग सेंटर बनाए जाने के पक्षधर हैं. उनका कहना है कि अब राजनीति में युवाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही हैं. पहले जहां नेता चुनाव में सालों की मेहनत और राजनीतिक अनुभव के बाद आते थे, वहीं अब सीधे विधायक और सांसद का चुनाव लड़ रहे हैं और जीत कर सदन में पहुंच रहे हैं.

सीखाई जाएंगी राजनीति की बारीकियां
इन युवा जनप्रतिनिधियों को संसदीय अनुभव नहीं होता और ना ही ये संसदीय परंपराओं को जानते हैं ना ही नियम कानूनों को. इसलिए ट्रेनिंग सेंटर ऐसे जनप्रतिनिधियों के लिए बेहद जरूरी साबित होंगे. इन सेंटर में जाकर ही हर जनप्रतिनिधि यह जान पाएगा कि सोशल मीडिया कैसे जनप्रतिनिधि की छवि को चौपट कर सकता है. लेकिन अभी यह सब जानने में समय लगेगा क्योंकि प्रदेश सरकार ने अपनी उक्त योजना को ही ठंडे बस्ते के हवाले कर रखा है.

अभी इस सेंटर के निर्माण को लेकर प्रदेश सरकार का कोई भी मंत्री और अधिकारी बोल नहीं रहा है. इसका निर्माण कार्य अब तक क्यों नहीं शुरू होगा? इस सवाल का जवाब सुरेश खन्ना नहीं देते. विधानसभा सचिवालय के अधिकारी भी इस बारे में बोलने से कतरा रहें है. अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री सचिवालय कैबिनेट से पास हो चुकी इस योजना पर कार्य शुरू करने का आदेश कब देता है.

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