सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम मामले में फैसला सुनाया है. आत्महत्या के लिए उकसाने से जुड़ा यह मामला था. कोर्ट ने इस मामले में कहा है कि किसी व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी तभी ठहराया जा सकता है जब उकसावा ऐसा हो कि पीड़ित के पास कोई दूसरा रास्ता ही न बचे और उकसावे की घटना के फौरन बाद ही उस शख्स ने आत्महत्या कर लिया हो. कोर्ट ने पहले कहा था कि सिर्फ चुभने वाली भाषा को आधार बनाकर आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी नहीं माना जा सकता.
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ इस मामले को सुन रही थी. ये मामला अशोक कुमार की पत्नी से जुड़ा था जो अब दुनिया में नहीं हैं. अशोक की पत्नी ने 40 हजार के करीब रुपये संदीप बंसल नाम के शख़्स से उधार लिया था. पैसा न चुका पाने की सूरत में अशोक ने संदीप से समय मांगा. कहते हैं जिसने कर्ज दिया था, उस संदीप ने अशोक के साथ बुरा बर्ताव किया. बाद में अशोक की पत्नी ने अपनी जान ले ली.
15 दिनों के बाद महिला ने की थी आत्महत्या
सवाल था कि इसे आत्महत्या के लिए उकसाना माना जाएगा या नहीं? कोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि मृतक महिला की ओर से कर्ज नहीं चुकाये जाने पर उसके पति के साथ जो मारपीट हुई और धमकी दी गई, उसके करीब 15 दिनों के बाद महिला ने आत्महत्या का कदम उठाया था.
आत्महत्या के अक दूसरे मामले में कोर्ट का तर्क
कोटा सुसाइड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अभी हाल ही में कहा था कि इसके लिए बच्चों के माता पिता जिम्मेदार हैं. उस समय कोर्ट ने कोचिंग सेंटर्स पर लगाम लगाने से इनकार करते हुए पैरेंट्स ही से इसकी जिम्मेदारी तय करने की बात की थी. कोटा में अकेले इस साल कम से कम 24 बच्चे आत्महत्या कर चुके हैं.