यूपी में 10 सीटों पर होने वाले राज्यसभा चुनावों पर सबकी नजर है. इसकी वजह है वो रोमांच जो लाने का काम किया है जयंत चौधरी और उनकी पार्टी आरएलडी ने. जो अब सपा से दूर हैं और NDA के कुनबे में तकरीबन शामिल हो चुके हैं. आप कहेंगे ऐसा हो भी जाता है तो उससे राज्यसभा चुनाव पर क्या फर्क पड़ जाएगा?
जवाब है पड़ जाएगा. क्योंकि आरएलडी के पास 9 विधायक हैं. जो पहले सपा के खाते में जाने थे, लेकिन अब जाएंगे एनडीए के खाते में. राज्यसभा चुनाव में एक-एक वोट महत्वपूर्ण होता है. आप कहेंगे समझ नहीं आया. आसान भाषा में समझाओ. तो चलिए समझाते हैं आपको एक-एक वोट का पूरा गणित.
कैसे होता है राज्यसभा चुनाव?
गणित तो पढ़ी ही होगी. उसमें एक शब्द था जिसने कई लोगों की जान खा रखी थी. फॉर्मूला. तो राज्यसभा चुनाव के लिए भी कैंडिडेट एक फॉर्मूले के तहत चुने जाते हैं.
क्या है फॉर्मूला?
विधानसभा के कुल विधायकों की संख्या x 100/(राज्यसभा की सीटें+1)= +1
यूपी में विधानसभा सीटों की संख्या 403 है, लेकिन कुछ सीटें खाली होने के चलते वर्तमान में विधानसभा सदस्यों की संख्या 399 है. तो इस फॉर्मूले के मुताबिक गणित लगाते हैं.
399 x 100 / 10+ 1 = 36 + 1
यानि नतीजा आया 37. इसका मतलब हुआ यूपी से राज्यसभा जाने के इच्छुक एक उम्मीदवार के पास कम से कम 37 वोट होने चाहिए. मैजिकल नंबर 37 होने की स्थिति में जो आसान हिसाब बैठता है, उसके मुताबिक भाजपा गठबंधन 7 और सपा गठबंधन 3 सीटें जीत सकती हैं. क्योंकि एनडीए के पास इस समय सहयोगियों को मिलाकर 277 वोट हैं. ऐसे में 37 का कोटा सबको आवंटित करने के बाद उसके पास 18 वोट बचेंगे. राजा भैया की पार्टी जनसत्ता दल उच्च सदन के चुनाव में अब तक भाजपा के ही साथ रही है. इसलिए, इनके 2 वोट भी सत्ता पक्ष के साथ जाने तय माने जा रहे हैं. ऐसे में भाजपा के पास 20 अतिरिक्त वोट होंगे. वहीं, विपक्षी गठबंधन के पास मौजूदा संख्या 119 विधायकों की है. कोटा आवंटित करने के बाद उनके पास 6 अतिरिक्त विधायक बचेंगे.
यहीं शुरू होता है खेल
यह आंकड़ा तब है जब आरएलडी के वोट सपा के साथ जोड़े जाएं, RLD अब एनडीए के साथ आ रही है, ऐसे में सपा गठबंधन की सीटें घटकर 110 हो जाएंगी. तीन राज्यसभा सदस्यों को जिताने के लिए 37 से गुणा करने पर अखिलेश यादव को सीटें चाहिए 111, ऐसे में सपा के पास पहले ही एक वोट कम है.
अब आरएलडी के एनडीए के साथ आने के बाद एनडीए घठबंधन के पास वोटों की संख्या 286 हो जाती है. ऐसे में 37 का कोटा सबको आवंटित करने के बाद उसके पास 27 वोट अतिरिक्त बचेंगे. राजा भैया की पार्टी जनसत्ता दल उच्च सदन के चुनाव में अब तक भाजपा के ही साथ रही है. इसलिए, इनके 2 वोट भी सत्ता पक्ष के साथ जाने तय माने जा रहे हैं. ऐसे में भाजपा के पास 29 अतिरिक्त वोट होंगे.
सपा के 110 वोटों में से एक पेच सपा के विधायक इरफान सोलंकी जेल में होने का भी है, ये देखने वाली बात होगी कि कोर्ट उन्हें वोट डालने की अनुमति देता है या नहीं. ये सवाल इसलिए है, क्योंकि 2018 के राज्यसभा चुनाव के वक्त बीएसपी के मुख़्तार अंसारी और सपा विधायक हरिओम हाईकोर्ट के निर्देश के चलते वोट नहीं दे पाए थे. इससे नुकसान बसपा-सपा गठबंधन को हुआ था.
माने सपा को अपना तीसरा उम्मीदवार जिताने के लिए 1 नहीं, दो और विधायकों की जरूरत होगी. यह कमी पूरी करना सपा के लिए आसान नहीं होगा.वहीं, 29 अतिरिक्त वोट वाली BJP अब अगर अपना आठवां उम्मीदवार उतारती है तो फैसला दूसरी वरीयता के वोटों से होगा, जिसमें सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए संभावनाएं बढ़ जाएंगी. इसकी उम्मीद इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि भाजपा ने राज्यसभा चुनाव के लिए 10 पर्चे खरीदे हैं.
समझें क्या है सीटों का गणित?
NDA : 288 भाजपा : 252 अपना दल (एस) : 13 निषाद पार्टी : 06 सुभासपा : 06 आरएलडी : 9 जनसत्ता दल लोकतांत्रिक : 2 (राजा भैया की पार्टी एनडीए का हिस्सा नहीं है मगर कयास हैं कि वोट बीजेपी को जाएगा)
INDIA : 110 सपा: 108 कांग्रेस : 02
क्या सपा जुगाड़ कर पाएगी?
अगर इरफान सोलंकी वोट नहीं डाल पाते हैं तो समाजवादी पार्टी दो वोट कहां से लाएगी, ये बड़ा सवाल है. जुगाड़ कहां से होगा के सवाल पर पहली नजर जाती है आरएलडी पर. राजनीतिक जानकार कहते हैं कि 2022 के चुनाव में कई सपा समर्थक आरएलडी के टिकट पर चुनाव लड़े थे. मसलन रालोद के विधायक गुलाम मोहम्मद 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा के ही टिकट पर चौधरी अजित सिंह के खिलाफ बागपत से लड़े थे. गुलाम दूसरे नंबर पर रहे थे जबकि अजित तीसरे नंबर पर. सपा से ताल्लुक रखने वाले यही गुलाम 2022 के चुनाव में आरएलडी के टिकट पर लड़े थे और जीते थे. राजनीतिक जानकार मानते हैं ऐसे में गुलाम मोहम्मद खेल कर सकते हैं. आरएलडी के वोटों पर ऐसे में चुनाव के दौरान सबकी नजर रहेगी. एक जुगाड़ सुभासपा से हो सकता था, वो हैं अब्बास अंसारी का मगर वो जेल में हैं. ऐसे में कोर्ट से उनको भी परमिशन मिलना मुश्किल है.
व्हिप और ओपन बैलट पर भी संकट!
तो कुल मिलाकर सपा के लिए राह आसान नहीं होने वाली है. क्रॉस वोटिंग कराना भी सपा के लिए आसान नहीं होगा. वो इसलिए क्योंकि राज्यसभा चुनाव ओपन बैलट से होता है. यानी पार्टी का सचेतक मतदान के पहले बैलट देखकर यह सुनिश्चित कर सकता है कि उसकी पार्टी के विधायक ने किसे वोट दिया है. माने जो पार्टी बदलेगा, उसकी पहचान तय है. और इस तरह पार्टी व्हिप के उल्लंघन के तहत दलबदल कानून के तहत कार्रवाई भी होगी. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि सत्ता पक्ष का कोई विधायक ऐसी रिस्क नहीं ही लेना चाहेगा.
बीजेपी 2018 में कर चुकी है खेल!
अब सारी बात यहां आकर अटक जाती है कि क्या बीजेपी अपना आठवां प्रत्याशी उतारेगी? क्योंकि अब तक तो प्रत्याशी घोषित हुआ नहीं है. हालांकि 2018 में हुए राज्यसभा चुनाव में बीजेपी ऐसा कर चुकी है. तब अनिल अग्रवाल ने निर्दलीय नामांकन किया था. बीजेपी ने उनका समर्थन कर दिया था. तब बसपा उम्मीदवार भीमराव आंबेडकर चुनाव हार गए थे. उन्हें पहली वरीयता के 33 वोट ही मिले थे जबकि जीत के लिए 37 चाहिए थे. दूसरी तरफ पहली वरीयता के मात्र 22 वोट पाने वाले अनिल अग्रवाल दूसरी वरीयता के वोटों के आधार पर चुनाव जीत गए थे. इस बार राज्यसभा के चुनाव 27 फरवरी को होने हैं. नामांकन की प्रक्रिया 15 फरवरी तक चलेगी. तो तब तक ही साफ होगा कि बीजेपी का कोई आठवां खिलाड़ी होगा या नहीं.