पत्नी के कत्ल में सजायाफ्ता मुजरिम पति को सुप्रीम कोर्ट ने बाइज्जत बरी कर दिया. यह कहते हुए कि आरोपी को दोषी ठहरा दिया जाना न्याय का मजाक था. जिस दोषी को हाल ही में देश की सर्वोच्च न्यायालय ने बरी किया है, उसे अब से 22 साल पहले निचली अदालत ने पत्नी के कत्ल के आरोप में दोषी ठहरा दिया था. निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए हाईकोर्ट ने भी आंख मूंदकर उस पर अपनी मुहर लगा दी थी. दोनों ही निचली अदालतों के फैसले को अब सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया है. यह कहते हुए कि आरोपी को दोषी ठहरा दिया जाना, न्याय का मजाक था. हमारा (सुप्रीम कोर्ट) कर्तव्य है कि हम उसमें तुरंत सुधार करें
निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने कहा कि निचली अदालतों ने आरोपी को महज इस आधार पर दोषी करार दिया क्योंकि मौत से ठीक पहले पत्नी को आरोपी पति के साथ ही अंतिम बार देखा गया था. जबकि दोषी ठहराने वाली निचली अदालतें इस तथ्य को देखना ही भूल गईं कि मरने वाली महिला (पत्नी) के पिता ने बयान दिया था कि, जब उनकी बेटी गायब हो गई तो उसके ससुर (निचली अदालतों द्वारा गलत तरीके से दोषी करार दिए गए शख्स के पिता और मरने वाली महिला के ससुर) ने खुद ही आकर बताया कि दो दिन से बहू कहीं गायब हो गई है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट की पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले जस्टिस करोल ने कहा कि संदेह और भ्रम किसी आरोपित को दोषी ठहराने का आधार नहीं हो सकते हैं. साथ ही मुकदमे में आरोपित को अपराध से जोड़ने वाली परिस्थितियां भी सही साबित नहीं हो सकी हैं. सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला गुना महतो द्वारा दाखिल याचिका के निपटारे के वक्त सुनाया. याचिकाकर्ता ने झारखंड हाईकोर्ट द्वारा साल 2004 में निचली अदालत द्वारा सुनाए गए फैसले को बरकरार रखने के खिलाफ याचिका दायर की थी
HC ने उम्रकैद की सजा को रखा था बरकरार
हाईकोर्ट ने उसे दोषी मानते हुए साल 2001 में निचली अदालत द्वारा मुकर्रर की गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा था. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट और निचली कोर्ट का फैसला खारिज करते हुए न केवल, उनसे उम्रकैद की सजा पाए गुना महतो को 22 साल बाद उम्रकैद की सजा से बाइज्जत बरी कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि उसे दोषी करार दिया जाना ही न्याय का मजाक था.
सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह से पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के भी एक फैसले को खारिज करते हुए मुजरिम को 28 साल पुराने मुकदमे में बाइज्जत बरी कर दिया. यह मुकदमा अनवर उर्फ भुगरा से जुड़ा था. जिसमें निचली अदालत ने उसके खिलाफ तमंचा रखने और लूट करने का आरोप सिद्ध मान लिया था. हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले पर अपनी सहमति की मुहर लगा दी. जब मुकदमा सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो सर्वोच्च न्यायालय ने निचली अदालतों के फैसलों को खारिज कर दिया. साथ ही 28 साल बाद अब इस मुकदमे में निचली अदालत द्वारा मुजरिम करार दिए जा चुके आरोपी को भी बाइज्जत बरी कर दिया.