मुंबई: महाराष्ट्र में शरद पवार के अप्रत्याशित फैसले को लेकर राजनीतिक हलके में चर्चा तेज हो गई है. माना जा रहा है कि शरद पवार ने एक तीर से दो शिकार किए हैं. पहले में उन्होंने भतीजे अजित पवार की महत्वाकांक्षा को बुरी तरह से कुचल डाला है, वहीं दूसरे में उन्होंने बेटी सुप्रिया सुले को पार्टी की कमान सौंपने का रास्ता साफ कर दिया है. हालांकि यह आशंका प्रबल हो गई है कि पार्टी प्रमुख के पद से हटते ही महाराष्ट्र में एनसीपी कमजोर पड़ सकती है.
ऐसे में खुद शरद पवार ने यह भी ऐलान कर दिया है कि वह पार्टी में मार्गदर्शक बने रहेंगे. दूसरी ओर, शरद पवार को अपना फैसला वापस लेने के लिए दबाव भी बढ़ गया है. तमाम पार्टी कार्यकर्ता फैसले पर पुर्नविचार करने का आग्रह कर रहे हैं. दूसरी ओर माना जा रहा है कि शरद पवार पार्टी अध्यक्ष छोड़ने के बाद भी पिछली सीट पर बैठकर पार्टी को ड्राइव करते रहेंगे. बावजूद इसके माना जा रहा है कि सुप्रिया सुले के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी राज्य में ध्रुवीकरण करने की स्थिति में नहीं होगी. उधर, शिवसेना (उद्धव ठाकरे) के नेता संजय राउत ने भी दावा किया कि शरद पवार राजनीति से सन्यास नहीं लेने जा रहे.
दरअसल, साल 2019 में जब अजित पवार ने बीजेपी के साथ मिलकर अल्पमत की सरकार बनाई थी, उस समय पार्टी के काफी विधायक उनके साथ थे. आज कहा जा रहा है है कि एनसीपी के कई नेता ईडी सीबीआई के रडार पर हैं. ऐसे में यह बड़ा सवाल यह है कि जब अजित पवार फिर से बीजेपी की ओर जा रहे थे तो ये विधायक पार्टी में कब तक ठहर पाएंगे. पहले ही पार्टी के कद्दावर नेता प्रफुल पटेल, रामराजे निंबालकर, छगन भुजबल और सुनील ठाकरे शरद पवार को अजित पवार के आइडिया पर विचार करने का आग्रह कर चुके हैं. इस आग्रह को शरद पवार ने उसी समय खारिज कर दिया था.
इस मुद्दे पर भले ही ना तो अजित पवार ने कोई बयान दिया और ना ही शरद पवार ने सार्वजनिक प्रतिक्रिया दी. बावजूद इसके पार्टी में हो रहे घटनाक्रम पूरी कहानी साफ बयां कर रहे हैं. उधर, लगातार बढ़ते दबाव के बीच पवार ने एक कमेटी का गठन कर दिया है. यह कमेटी ही तय करेगी कि पार्टी का अगला चीफ कौन होगा. उनके इस कदम की वजह से अजित पवार एवं अन्य वरिष्ठ नेताओं को बैकफुट पर ला दिया है. खासतौर पर बीजेपी के साथ जाने की मंशा पाले पार्टी नेताओं को बड़ा झटका लगा है और वह इस समय एकजुट होकर पवार को अपने पद पर बने रहने का प्रयास कर रहे हैं.
बता दें कि साल 2019 में शरद पवार और अजित पवार के बीच विवाद सामने आ चुका है. उस समय अजित पवार अपने बेटे के लिए लोकसभा का टिकट मांग रहे थे. इसके लिए ना चाहते हुए शरद पवार को उनकी बात माननी पड़ी थी. इसी प्रकार 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद भी उन्होंने शरद पवार की इच्छा के खिलाफ जाकर बीजेपी के साथ मिलकर अल्पमत की सरकार बनाई थी. अब फिर कहा जा रहा है कि अजित पवार बीजेपी के साथ जाने को तैयार हैं. माना जा रहा है कि राजनीति के दिग्गज शरद पवार ने भी विधानसभा चुनाव के बाद से ही प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल और सुप्रिया सुले की भूमिका बढ़ा दी थी. वहीं अजित पवार हासिए पर चलते गए. पार्टी के अंदर और बाहर भी इसे साफ महसूस किया गया.