‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ यानी जहां स्त्रियों का सम्मान होता है वहां देवता भी वास करते हैं. इस परंपरा का पालन करते हुए भारत में महिलाओं को समान अधिकार दिए जाते हैं. लेकिन, हैरतअंजेग है कि आज भारत महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के देशों में, शीर्ष स्थानों में आता है. प्राथमिकता रखी जाती है कि महिलाएं सुरक्षित रहें, जिसके लिए कानून भी बनाए जाते हैं. लेकिन जब महिलाएं ही इसका गलत इस्तेमाल करें तो क्या?
विष्णु तिवारी, 23 साल के इस युवक को उम्रकैद की सजा होती है. आरोप था बलात्कार का. लेकिन 20 साल बाद कोर्ट ने यह मानते हुए विष्णु को बरी कर दिया कि उसपर झूठे रेप के आरोप लगाए गए. हिमाचल के रहने वाले योगेश कुमार पर एक महिला ने दुष्कर्म के झूठे आरोप लगाए. योगेश ने जहर खाकर अपनी जान दे दी. महाराष्ट्र के रहने वाले मनीष ने फेसबुक लाइव करके आत्महत्या कर ली. पुलिस ने बताया कि मनीष की 19 साल की गर्लफ्रेंड ने, अपने परिवार के साथ मिलकर उसे रेप के झूठे आरोप में फंसाने की कोशिश की.
क्या महिला पर लग सकता है रेप का आरोप?
ऐसे कई केस हर रोज सामने आते हैं जिसमें झूठे रेप के आरोपों के कारण कई जवान लड़के फंसाए जाते हैं. आखिर में वह न्याय की लड़ाई लड़ने के बजाए खुद को खत्म करने का फैसला लेते हैं. खुद सुप्रीम कोर्ट ने झूठे बलात्कार के आरोपों पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि यह आरोपी को समान रूप से परेशानी, अपमान और नुकसान पहुंचाने का टूल बनता जा रहा है.
बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट में एक मामला सामने आया जिसमें एक 61 वर्षीय महिला पर अपनी बहू से रेप करने के आरोप लगे थे. लेकिन, भारतीय कानून में ऐसा कोई भी सेक्शन नहीं है जो महिला के खिलाफ रेप से जुड़े अपराध में कार्रवाई कर सके. IPC की धारा 375 (बलात्कार)में सिर्फ महिलाओं के लिए प्रावधान लिखित हैं. वहीं, अगर कोई लड़का दूसरे लड़के का रेप करता है, तो धारा 377 (अन नैचुरल सेक्स) के तहत एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है. लेकिन अगर कोई लड़की रेप करती है तो उसके लिए कोई कानून ही नहीं है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस मामले पर सवाल खड़े किए हैं कि क्या रेप के आरोप में क्या किसी महिला को आरोपी बनाया जा सकता है.
विशेष जानकार से खास बातचीत
फेक रेप केस जैसे मुद्दों पर काम करने वाली, स्वतंत्र पत्रकार और फिल्ममेकर दीपिका नारायण भारद्वाज ने टीवी9 से विशेष बातचीत की. फेक रेप केस और कैसे कानून का गलत इस्तेमाल करके लड़कियां, लड़कों को जाल में फंसाती हैं. इस मुद्दे से जुड़े हमने कई सवाल उनसे किए. पढ़िए दीपिका भारद्वाज से हमारी बातचीत.
दीपिका कहती हैं कि फेक रेप से जुड़े मामले तकरीबन रोज उनके पास आते हैं. एक केस का जिक्र करते हुए वह बताती हैं, ‘आईआईटी का एक स्टूडेंट कई समय से लड़की के साथ रिलेशनशिप में था, लेकिन बाद में जब लड़के ने ब्रेकअप कर लिया तो लड़की ने उसके खिलाफ रेप का केस दर्ज करवा दिया. परिस्थितियां बेहद ही खराब हो गई हैं. एक और केस उनके पास आया जिसमें लड़के पर रेप का झूठा आरोप लगाया गया. इसके पीछे न सिर्फ एक लड़की बल्कि पूरा गैंग काम करता है. जिस लड़के पर आरोप लगाया गया है उसने महिला को देखा तक नहीं है, लेकिन फिर में उसपर रेप का केस दर्ज कर दिया गया’.
झूठे केस के कारण लड़के को चार महीने जेल में रखा गया. न सिर्फ जेल हुई बल्कि 33 लाख रुपये भी वसूले गए. दीपिका कहती हैं कि कई मामलों में पुलिस भी लापरवाही करती है जिसके कारण ऐसे मामले होते हैं. वहीं, जो कई सालों तक जेल में रहने के बाद बेगुनाह साबित होते हैं उन्हें एक रुपये का मुआवजा भी नहीं दिया जाता है.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी NCRB के अनुसार रेप के दायर कुल मामलों में 70 प्रतिशत ऐसे मामले हैं जिनमें आरोपी को अपराधी नहीं करार दिया जाता है. यह सत्तर प्रतिशत का आंकड़ा उन केसिस का है जिसमें पुलिस ने लड़के को आरोपी बनाकर उसके खिलाफ कोर्ट में ट्रायल करवाया है.
कोर्ट ने कहा ‘बन गया है ट्रेंड’
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी एक मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी, कि आज से समय में यह ट्रेंड हो गया है कि महिलाएं POCSO/SC-ST मामलों के तहत झूठे रेप केस दायर करती हैं. वह इसे ‘पैसे निकालवाने का एक टूल’ के तौर पर इस्तेमाल करती हैं.
सोशल मीडिया ऐप जैसे टिंडर-बंबल से भी फेक रेप केसिस को बढ़ावा मिल गया है. लड़कियां पहले इन प्लेटफॉर्म के माध्यम से लड़कों को बहकाती हैं, फिर अपने पूरे गिरोह के साथ रेप की झूठी धमकी देकर उन्हें फंसाती हैं. ऐसे मामले का सबसे प्रचलित केस जयपुर का टिंडर मर्डर केस माना जाता है. जिसमें दुष्यंत नाम के लड़कों को पहले प्रिया फंसाती है, फिर उसे किडनैप करके फिरौती मांगती है. बाद में वह दुष्यंत की हत्या भी कर देती है. कानून का दुरुपयोग
निश्चित तौर पर उन महिलाओं की जिंदगियां खराब हो गई जिन्होंने बलात्कार, उत्पीड़न और क्रूरता जैसे अपराधों का सामना किया. 2012 में हुए निर्भया रेप कांड के बाद पूरे देश ने एक आक्रोश देखा. जिसके बाद आनन-फानन में कानून भी लाए गए. मकसद था महिलाओं और लड़कियों के हो रहे बलात्कार के मामलों पर कंट्रोल पाना. लेकिन, शायद इसको इतना सशक्त कर दिया गया कि, अब उल्टा कानून के इस रुख का वह दुरुपयोग करने लगी हैं. शायद इसी कारण एनसीआरबी के आंकड़ों में फेक रेप केसिस के मामले बढ़ते जा रहे हैं.