लखनऊ: निकाय चुनावों के खत्म होते ही भारतीय जनता पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश में सक्रिय हो चुकी है. पार्टी महा जन संपर्क अभियान के जरिए कार्यकर्ताओं को जन-जन तक भेज केंद्र सरकार की योजनाओं से राब्ता करा रही है. पार्टी ने सभी दिग्गज नेताओं को देश की सभी सीटों पर इस मुहिम को अमली जामा पहनाने के लिए भेजा है. लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की महत्वता इस बात से पता लगती है कि दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक दल ने अपनी इस मुहिम के आगाज के लिए अपने प्रमुख जेपी नड्डा को यूपी भेजा है.
सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले यूपी की सभी 80 सीटों पर बीजेपी का इरादा क्लीन स्वीप करने का है. नगर निगम चुनावों में क्लनी स्वीप वाले मिशन को अंजाम तक पहुंचाने के बाद बीजेपी को इस इरादे की हकीकत बनने की संभावनाएं दिखने लगी हैं. वहीं बात समाजवादी पार्टी की करें तो वो नगर निगम चुनावों में अपने बुरे प्रदर्शन को भले ही न सुधार पाई हो, लेकिन पार्टी के विस्तार के लिए लगातार प्रयासरत है. वहीं पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव भी विपक्षी दलों के साथ गठबंधन के जोड़-तोड़ का गणित बैठाते हुए लोकसभा में बीजेपी के रथ को रोकने की जुगाड़ में लगे हैं.
हालांकि एक दल जो कभी यूपी की सत्ता में काबिज हो कर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा तक हासिल कर चुका है, वो अब पूरी तरह से सुस्त दिखाई दे रहा है. ये दल है बहुजन समाज पार्टी. सालभर दूर बचे लोकसभा चुनावों को लेकर जहां सूबे के दोनों प्रमुख दलों के मुखिया लगातार व्यस्त कार्यक्रमों में उलझे हुए हैं तो वहीं बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख कहीं दिखाई नहीं दे रहीं. वो सिर्फ ट्विटर पर सक्रीय हैं और शायद ये सोच रही हैं कि यहां ट्वीट्स की श्रृंखलाओं में विपक्षी दलों को कोस-कोसकर ही वो फिर से राजनीतिक तौर पर मजबूत हो जाएंगी.
गोरिल्ला वॉर के जमाने में ट्विटर वॉर
बीजेपी के बढ़ते रुतबे और बसपा के पारंपरिक वोट में सेंध लगाने की कोशिश में जुटी समाजवादी पार्टी को रोकने के लिए जहां प्रचार-प्रसार और मुलाकातों के गोरिल्ला वॉर की जरूरत है, वहां मायावती का भरोसा ट्विटर वॉर पर है. हाल ही में निपटे नगर निगम चुनावों में भी मायावती का यही रवैया बहुजन समाज पार्टी की बुरी हालत का जिम्मेदार बना था. चुनावों के बावजूद वो यूपी में एक भी सभा या रैली के लिए नहीं निकलीं. नतीजा ये रहा कि कभी नगर निगमों में बीजेपी को क्लीन स्वीप से रोकने वाली बीएसपी इस बार एक सीट तक नहीं निकाल सकी.
इस हार के बाद बीएसपी सुप्रीमो ने समीक्षा बैठक बुलाई. इस बैठक के बाद उन्होंने समीक्षा का जो मसौदा मीडिया के सामने रखा उसमें शब्दशः उन्ही शब्दों का इस्तेमाल किया गया, जो वो इस बैठक के एक दिन पहले ही ट्वीट कर चुकी थीं. जो कुछ नया था, वहां विपक्षी दलों को कोसने का काम किया गया. अब भी जब तमाम राजनीतिक दल आगामी लोकसभा चुनावों की रणनीति को तैयार करते हुए ग्राउंड जीरो पर उतर गए हैं, तब भी मायावती धरातल से नदारद हैं.
जिस पार्टी के दम पर मायावती यूपी की चार बार मुख्यमंत्री बन चुकी हैं, वो पार्टी अब दम तोड़ते दिख रही है. लोकसभा में सपा के गठबंधन की मदद से 10 सीटें जीतने वाली बसपा विधानसभा चुनावों में 403 सदस्यों वाली विधानसभा में सिर्फ एक ही विधायक भेज सकी. नगर निकाय चुनाव के ऐन पहले चुनाव आयोग की घोषणा हुई और पार्टी का राष्ट्रीय दल का तमगा तक छिन गया. नगर निगम में तो बसपा खाता ही नहीं खोल सकी. इन सब के बीच बसपा के कोर वोट ग्रुप दलितों का भी बंटवारा होने लगा है. बीजेपी और सपा दोनों ही इसमें सेंध लगाकर एक दूजे को पटखनी देने की कोशिश में है. इस सेंध को धरातल पर उतर रोकने और फिर से बसपा के खोए रुतबे को हासिल करने की जगह मायावती गायब हैं. बस उनका ट्विटर हैंडल एक्टिव है.