प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिका दौर पर हैं. अमेरिका के साथ प्रधानमंत्री के इस दौर पर देश की निगाहें दो बड़ी डिफेंस डील पर ही टिकी हैं. जो देश की डिफेंस की गति और दिशा दोनों बदल कर रख देगी. इसमें 3 बिलियन डॉलर का अमेरिकी प्रीडेटर ड्रोन सौदा भारत के लिए बेहद अहम है. इसमें नौसेना के लिये 15 और थल और वायुसेना के लिये 8-8 ड्रोन लिये जाएंगे. वहीं अमेरिका भी भारत के साथ ये डील करने के लिये कहीं ज़्यादा उत्सुक है.
ये ड्रोन 1200 किलोमीटर दूर से ही यह दुश्मन पर हमला कर उसे तबाह कर सकता है. हिंद महासागर में नेवी के लिये निगरानी और टारगेट किलिंग का अचूक हथियार और चीन से लगी सीमा पर नजर रखने के लिये नौसेना और थल सेना को ऐसे ड्रोन की जरुरत काफी समय से है.
30 घंटे उड़ सकता है प्रीडेटर ड्रोन
दुनिया का सबसे घातक यह ड्रोन बिना रुके 30 घंटे उड़ सकता है. यानी हर तरह की स्थिति से निपटने के लिये घण्टों इस ड्रोन का इस्तेमाल कठिन से कठिन ऑपेरशन के लिए किया जा सकता है. इराक और अफगानिस्तान में अमेरिका इस ड्रोेन का बखूबी इस्तेमाल कर चुका है. मानवरहित ड्रोन की सबसे बड़ी खासियत है कि दुश्मन को इसके आने जाने की भनक तक नही लगती. और ये दबे पांव आकर दुश्मन के परखच्चे उड़ा सकने में सक्षम है.
जेट इंजन की तकनीक से तेजस को मिलेगी मजबूती
अपने देसी लड़ाकू विमान तेजस के लिये हिंदुस्तान एरोनेटिक्स लिमिटेड को इंजन की जरुरत है. खासकर तेजस मार्क-2 के लिये ऐसे इंजन की जरुरत है. सूत्रों से खबर है कि अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक जेट इंजन की तकनीक भारत को देने पर सहमत हो गया है. 80 फिसदी तकनीक का हस्तांरण एचएचएल को होगा.
जेट प्लेन में भारत का अपना इंजन
यदि ये समझौता हो जाता है यह जेट इंजन भारत में ही बनने लगेगा. और जिस तरह देश में तमाम एयरक्राफ्ट का निर्माण किया जा रहा है, उन पर भारत का अपना इंजन लगेगा. हालांकि अभी भी तेजस में अमेरिकी जीई का ही कम शक्ति का इंजन लगता है
एचएएल को नहीं मिली सफलता
इससे पहले भारत में एचएएल ने कावेरी नाम का जेट इंजन बनाने की कोशिश की पर उसे सफलता नही मिली. अमेरिका अपने लड़ाकू विमान में इसी इंजन का इस्तेमाल करता है. अगर यह भारत में बनने लगेगा कि देश के एवियशन इंडस्ट्री के लिये बहुत फायदे मंद साबित होगा. वहीं सालों से मिग सीरीज़ के एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल कर रहे भारत मे पुराने हो चले मिग युग का अंत होगा.