राजनीतिक महत्व के हिसाब से देश का ‘बाहुबली सूबा’ उत्तर प्रदेश हाल ही में उत्सव कर के निपटा है. लोकतांत्रिक उत्सव, गांव, शहर और नगर की सरकार चुनने का. जनता ने वोट दिया, अलग-अलग दलों के प्रत्याशी जीते-हारे और चुनाव खत्म. ये प्रक्रिया जनता के लिए होती है. राजनीतिक दलों के लिए नहीं. राजनीतिक दल हमेशा चुनावी मोड में ही रहते हैं. या सियासी सफलता के लिए उन्हें चुनावी मोड में रहना भी चाहिए.
भारतीय जनता पार्टी यूपी के निकाय चुनाव में सबसे सफल रही. 17 के 17 नगर निगमों पर विपक्षियों का सूपड़ा साफ कर दिया. आज चुनाव खत्म हुए और कल से फिर पार्टी आने वाले चुनावों की तैयारी में जुट गई. पदाधिकारियों की बैठकें हुईं. जिन सीटों पर प्रदर्शन खराब रहा या सुधारने की दरकार थी, उनकी समीक्षा की गई. बैठक में सभी पदाधिकारियों को टास्क दिए गए. ये तय किया गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व हर महीने यूपी का दौरा करेगा. वोटर्स के जिन समूह तक पार्टी नहीं पहुंच सकी, वहां तक पहुंच बनाने के प्लान तैयार किए गए. लेकिन इसी बीच बहुजन समाज पार्टी का हाथी मदमस्त है और पार्टी की मुखिया मायावती सुस्त.
कभी हाथी ने कुचला था कमल!
यूपी की चार बार सीएम रहने वाली मायावती की BSP वो पार्टी थी, जो कभी सूबे की सियासत पर काबिज थी. नगर निगमों में बीजेपी के खिलते कमल को BSP के हाथी ने ही पिछले निकाय चुनावों में दो सीटों पर कुचला था. इस बार के निकाय चुनाव में भी BSP का हाथी चला, लेकिन रुझानों के बाद बैठ गया. बैठा तो वो दो सीटें भी उसकी पीठ से खिसक गईं, जिनपर पिछली बार उसका कब्जा हुआ करता था. पार्टी का प्रदर्शन खराब हुआ तो समीक्षा के लिए बैठक बुलाई गई.
बैठक में हार की क्या समीक्षा की गई और पार्टी की आगे की रणनीति क्या होगी इसको लेकर पार्टी ने प्रेस रिलीज जारी की. हैरानी की बात है कि इस प्रेस रिलीज में न ही हार की कोई समीक्षा दिखाई दी और न ही उस रास्ते पर कोई रोशनी डाली गई, जिसके बूते BSP का हाथी यूपी की सत्ता में अपने पुराने रसूख को वापस ला सके. पूरी रिलीज में बीजेपी और समाजवादी पार्टी को बीएसपी कोसती दिखाई दी. न कि आगामी रणनीति बताते.
प्रेस रिलीज की शुरुआत हुई बीजेपी को कोसने के साथ. बीएसपी ने आरोप लगाया कि सत्ताधारी दल का सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करना चिंताजनक है. इस चुनौती के खिलाफ बैठक में बनाई गई रणनीति बताने की जगह पार्टी की तरफ से ‘हमेशा ही इसी तरह की चुनौतियों का सामना करने’ की बात कहते हुए रोना सा रोया गया. यहां ये भी कहा जा सकता है कि बीएसपी की समीक्षा बैठक के बाद जारी प्रेस रिलीज की शुरुआत में जो पंक्तियां हैं वो हू-ब-हू बैठक के ठीक पहले 17 मई को मायावती द्वारा ट्वीट की जा चुकी थीं. समीक्षा में हार के बाद समीक्षा के लिए नए अल्फाज भी न मिलें, ये तो पार्टी के लिए भी चिंता की बात होनी चाहिए.
अपनी मुखिया के ट्वीट को दोहराने के बाद BSP की रिलीज में बीजेपी के साथ सपा को भी कोसा गया. उनपर साम, दाम, दंड, भेद के हथकंडे अपनाने का आरोप लगाया गया. वोटर लिस्ट में गड़बड़ी की बात उठाई गई. इसी क्रम में आगे पार्टी ने खुद को सत्ता परिवर्तन का सही विकल्प तो बताया, लेकिन न ही उनके आरोपों में दम था और न ही कोई पुख्ता सबूत. आरोपों को दिखाकर जो डर बनाया गया उसको मिटाने के लिए पार्टी ने वोटरों को जाकरुक करने का आइडिया दिया, धर्म का राजनीति में बड़ते प्रभाव पर रोक लगाने का विचार दिया, लेकिन अगली ही लाइन में इसकी अपील भी चुनाव आयोग से ही कर डाली.
बीएसपी ने इस समीक्षा में पार्टी के भीतर की गुटबाजी, रंजिश, मनमुटाव और चुनाव में टिकट न मिल पाने से हालात खराब होने की बात तो कही, लेकिन इसका तोड़ या उपचार पर कहीं कोई बात नहीं दिखी. चुनाव में बीएसपी को मिलने वाले समर्थन के लिए पार्टी की तरफ से लोगों को शुक्रिया कहा गया और कार्यकर्ताओं को तन मन धन से काम करने के निर्देश दिए. यहां तन और मन से कैसा काम करना है ये तो नहीं बताया गया, लेकिन धन को लेकर थोड़ी जानकारी विस्तृत की गई है. रिलीज में मायावती ने पार्टी को मजबूत करने के लिए लोगों से आहवान किया कि वो देश में पार्टी, संगठन और कार्यालयों को सुचारू रूप से चलाने और चुनावी खर्च के लिए पार्टी को आर्थिक रूप से मजबूत रखने की कोशिश करें.
पहले लोकसभा, फिर विधानसभा में गिरता प्रदर्शन. फिर लंबे अर्से बाद राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिनना. अब निकाय चुनाव में करारी हार. ये सभी चीजें देश के एक बड़े समुदाय का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाली बहुजन समाज पार्टी के सिकुड़ते जनाधार का प्रतिबिंब हैं. लेकिन इसके बाद भी मायावती का सक्रिय न होना और पार्टी का आत्मचिंतन कर नई रणनीति न बनाना इस दल को भविष्य में यूपी के प्रमुख राजनीतिक दलों की सूची से हटाने में अहम आधार बन सकते हैं.