जमीयत उलमा-ए-हिंद ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में तीन तालाक कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है। साथ ही इस कानून पर रोक लगाने की मांग की है। जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा कि महिला अधिकार संरक्षण कानून 2019 संविधान की मूलभावना के अनुरूप नहीं है और इस पर रोक लगाने के लिए एक दिशा निर्देश की मांग करता है।
इससे पहले जमीयत उलमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने तीन तलाक पर संसद में कानून पारित होने पर चिंता जताई थी। उन्होंने तीन तलाक बिल को मुस्लिम महिलाओं के साथ अन्याय करने वाला बताया था। राष्ट्रीय महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने इस पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इस बिल से मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं के साथ न्याय नहीं होगा।
मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि इस कानून के तहत पीड़ित महिला का भविष्य अंधकारमय हो जाएगी और उसके लिए दोबारा निकाह और नई जिंदगी शुरू करने का रास्ता बिल्कुल खत्म हो जाएगा। इस तरह तो तलाक का असल मकसद ही समाप्त हो जाएगा। साथ ही पुरुष को जेल जाने की सजा महिला और उसके बच्चों को भुगतनी पड़ेगी।
मौलाना मदनी ने कहा कि जिन लोगों के लिए यह कानून बनाया गया है उनके प्रतिनिधियों, धार्मिक चिंतकों, विभिन्न शरीयत के कानूनी विशेषज्ञों और मुस्लिम संगठनों से कोई सुझाव नहीं लिया गया। सरकार हठधर्मी रवैया अपनाते हुए इंसाफ और जनमत की राय को रौंदने पर आमादा नजर आती है, जो किसी भी लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है।
उन्होंने कहा कि हम मानते हैं कि इस कानून के पीछे मुसलमानों पर किसी न किसी तरह यूनिफार्म सिविल कोड थोपने का प्रयास किया जा रहा है और इसका उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं के इंसाफ के बजाए मुसलमानों के धार्मिक स्वतंत्रता से वंचित करना है।