केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने गुरुवार को कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पंजाब में पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए जैव-अपघटक का इस्तेमाल करने से औपचारिक रूप से मना कर दिया है. केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी के शासन वाले पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में वृद्धि के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था कि उसने किसानों को पराली नहीं जलाने के लिए नकद प्रोत्साहन राशि देने के अनुरोधों को खारिज कर दिया था.
केंद्रीय मंत्री ने मीडिया से कहा, दिल्ली के मुख्यमंत्री ने केंद्र को पत्र लिखकर कहा था कि दिल्ली में पूसा जैव-अपघटक का क्रियान्वयन सफल रहा है, लेकिन उन्होंने खुद आधिकारिक रूप से पंजाब में इसका इस्तेमाल करने से मना कर दिया. यहां भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार पूसा जैव-अपघटक जैविक घोल हैं जो धान के अवशेषों को 15 से 20 दिन में खाद में बदल देते हैं.
केंद्रीय मंत्री के दावे पर बिफरी आप
आम आदमी पार्टी ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव के बयान पर पलटवार करते हुए यादव से वह पत्र दिखाने को कहा है जहां केजरीवाल ने आधिकारिक तौर पर बायो-डीकंपोजर के इस्तेमाल से इनकार किया था.
5 हजार एकड़ जमीन पर प्रयोगिक आधार पर हो रहा है इसका इस्तेमाल
एक अधिकारी ने कहा कि मंत्रालय ने बार-बार पंजाब सरकार से जैव-अपघटक का इस्तेमाल बढ़ाने को कहा लेकिन वे केवल 5000 एकड़ जमीन पर प्रायोगिक आधार पर ऐसा कर रहे हैं. जब पूछा गया कि पंजाब इसका उपयोग क्यों नहीं कर रहा तो अधिकारी ने कहा, राज्य ने कहा है कि यह प्रभावी नहीं है. पंजाब में किसानों का कहना है कि जैव-अपघटक के इस्तेमाल के बिना भी पराली करीब 20 दिन में अपघटित हो सकती है.
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने आईएआरआई द्वारा 2020 और 2021 में तैयार एक जैव-अपघटक समेत ऐसे अनेक विलयनों पर परीक्षण किया था और रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी थी. उसने कहा था, पराली को खाद बनाने के समय में कोई विशेष कमी नहीं आई है.
हरियाणा और यूपी में हो रहा है बायो-डीकंपोजर का इस्तेमाल
अधिकारी ने यह भी कहा कि हरियाणा के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र वाले जिलों में पांच लाख एकड़ जमीन पर तथा उत्तर प्रदेश में चार लाख एकड़ क्षेत्र में जैव-अपघटक का इस्तेमाल किया जा रहा है. उन्होंने कहा, हरियाणा और उत्तर प्रदेश का अनुभव दिखाता है कि इसे लागू किया जाना चाहिए. फिलहाल हमारे पास गंभीर प्रयास किये बिना इसे खारिज करने की कोई वजह नहीं है.
दिल्ली में इस साल बासमती और गैर-बासमती चावल के 5 हजार एकड़ खेतों में इस घोल का इस्तेमाल किया जा रहा है. अधिकारियों के अनुसार जैव-अपघटक छिड़कने की लागत 30 रुपये प्रति एकड़ आती है