अमित शाह के दौरे के बाद रविवार को बिहार की राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है. अमित शाह नीतीश और लालू प्रसाद के खिलाफ आक्रामक नजर आए, लेकिन बिहार की सियासत में बीजेपी का जेडीयू के प्रति प्रेम पूरी तरह खत्म हो चुका है ऐसा बीजेपी सहित उसके घटक दल भी दबी जुबान में मानने को तैयार नहीं हैं. ये आलम आरजेडी और जेडीयू में भी है. आरजेडी का एक धड़ा जहां नीतीश कुमार पर पूरा भरोसा करने को तैयार नहीं है तो वहीं जेडीयू के विधायक और पार्षद भी जेडीयू की भविष्य की राजनीति को लेकर पशोपेश में दिखाई पड़ते हैं.
जाहिर है अमित शाह भले ही वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए हुंकार भर आए हों लेकिन नीतीश कुमार को लेकर बीजेपी का दरवाजा पूरी तरह बंद हो चुका है ऐसा मानने के लिए कोई भी दल पूर्ण रूप से तैयार नहीं हैं. इसकी एक बड़ी वजह ये है कि अभी भी नीतीश कुमार का पीएम मोदी के प्रति लगाव झलकता है. इसके अलावा वे पीएम मोदी सहित शीर्ष नेताओं पर हमले से बचते हैं.
बीजेपी की क्या है खास रणनीति?
अमित शाह बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने के लिए बिहार के दौरे लगातार कर रहे हैं. अमित शाह के भाषणों में यादव और मुसलमान की संख्या को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की बात करना इन दो जातियों के खिलाफ तमाम जातियों की गोलबंदी का प्रयास माना जा रहा है जो जातीय सर्वे के बाद अपनी कम संख्या प्रदर्शित करने को लेकर सवाल उठाते रहे हैं.
जाहिर है ईबीसी सहित गैर यादवों को बीजेपी इस मुद्दे के सहारे इकट्ठा करने के प्रयास में जुटी है. इसीलिए जंगलराज, जातीय सर्वे में लालू प्रसाद के दबाव की वजह से यादव और मुसलमान को ज्यादा संख्या में गिनने का आरोप लगाकर अमित शाह ने नीतीश कुमार को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया है.
अमित शाह हर हाल में 40 लोकसभा सीटों में 30 लोकसभा सीटें जीतने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. इसलिए जातीय गोलबंदी को आधार बनाकर वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से नीतीश और लालू प्रसाद दोनों पर कड़े प्रहार कर रहे हैं.
खेल पलट सकता है नीतीश को लेकर पीएम मोदी का लगाव
सूत्रों के मुताबिक अमित शाह की तल्खी कार्यकर्ताओं की भावनाओं के अनुरूप है लेकिन नीतीश कुमार को लेकर पीएम मोदी का विशेष लगाव कभी भी सारा खेल पलट सकता है और इस बात की चर्चा समय समय पर बीजेपी सहित घटक दलों में होती रहती है. ज़ाहिर है बीजेपी के नेता मानते हैं कि नीतीश की अति सक्रियता और शिक्षकों को नियुक्ति पत्र बांटने के दरमियान खुद क्रेडिट लेने की होड़ इस बात की बानगी है कि नीतीश अपने खोए हुए सियासी जनाधार को वापस पाने की जुगत में हैं. इसलिए नौकरी देने का सवाल हो या फिर जातीय सर्वे कराकर नीतीश बिहार की राजनीति में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखना चाह रहे हैं. इसलिए जातीय सर्वे हो या फिर नौकरी देने की बात इसका पूरा श्रेय नीतीश खुद लेना चाह रहे हैं जो उनके बयानों और गांधी मैदान के बाहर लगे होर्डिंग में सिर्फ और सिर्फ उनकी लगी तस्वीरों ने साफ कर दिया है.
बीजेपी के एक नेता के मुताबिक नीतीश का वर्तमान रवैया और कई मसलों पर अति सक्रियता कई ओर इशारा कर रहा है लेकिन इतना तो तय है कि नीतीश लोकसभा चुनाव के बाद करें या पहले वो एक बाजी और खेलने के मूड में हैं जिससे बिहार में एक बार फिर राजनीतिक उलटफेर की पूरी संभावना बनी हुई है.
पीएम मोदी और नीतीश एक दूसरे पर सीधे हमले से क्यों बच रहे?
बीजेपी के साथ नीतीश कुमार जिस तरह से साल 2017 में आए थे उसके बाद आरजेडी का एक धड़ा नीतीश कुमार और जेडीयू को विश्वस्त घटक दल के तौर पर कतई भरोसा करने को तैयार नहीं है. आरजेडी के एक नेता के मुताबिक आरजेडी और जेडीयू दोनों सुविधा के हिसाब से एक दूसरे के साथ हैं लेकिन आरजेडी नीतीश पर पूरा भरोसा करने का जोखिम उठाने वाली नहीं है.
आरजेडी का एक धड़ा मानता है कि कांग्रेस के रवैये को मुद्दा बनाकर नीतीश कई वैसे नेताओं को एकजुट कर सकते हैं जो एंटी बीजेपी और एंटी कांग्रेस स्टैंड अपनाने को लेकर काम करने को तैयार हों. जाहिर है आरजेडी में सुधाकर सिंह हों या जगदानंद सिंह सरीखे नेता वो आरजेडी और जेडीयू के विलय की बात को स्वीकार नहीं करते हैं. आरजेडी के कई नेता मानते हैं कि नीतीश कुमार को अगर राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया तो कभी भी पार्टी के पुराने स्टैंड के खिलाफ उनके द्वारा लिया जाने वाला फैसला आरजेडी की पूरी राजनीतिक पूंजी को मटियामेट कर सकता है.
इसलिए नीतीश कुमार द्वारा सीधा पीएम मोदी का नाम न लेकर हमले करना या फिर दिल्ली की ओर इशारा कर बयानवाजी करना एक संभावनाओं को खुले रखने की ओर इशारा करता है. यही वजह है कि प्रशांत किशोर सरीखे नेता नीतीश कुमार द्वारा रोशनदान और खिड़की खोले रखने की बात कह एक बार और नीतीश कुमार के पलटने की बात करना नीतीश की अगली राजनीति की ओर इशारा है जिसे नीतीश अभी तक आजमाते रहे हैं.
नीतीश सवालों के घेरे में क्यों बने हुए हैं ?
कई जानकार मानते हैं कि नीतीश कुमार इंजीनियर हैं, इसलिए गणित की तरह राजनीति में प्रोमोटेशन और कॉम्बिनेशन का बेहतर इस्तेमाल करते रहे हैं. इसलिए नीतीश इतनी आसानी से अपनी पूरी राजनीतिक पूंजी तेजस्वी यादव को थामने नहीं जा रहे हैं जिसकी बात आरजेडी का एक धड़ा समाजवादियों को एकजुट करने के नाम पर करता हुआ सुनाई पड़ता है.
इंडिया गठबंधन में कांग्रेस का आरजेडी के प्रति विशेष प्रेम वहीं नीतीश कुमार को कुछ नहीं ऑफर करना नीतीश कुमार को नागवार गुजर रहा है. नीतीश कुमार साल 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद साल 2025 में सत्ता तेजस्वी को सौंप देंगे इसको लेकर आरजेडी के भीतर भी विश्वास की कमी है. जाहिर है नीतीश जब भी तेजस्वी को भविष्य बताने का प्रयास करते हैं तो आरजेडी के कई नेता इसे छलावा के अलावा कुछ और नहीं मानते हैं.
ग्रेसफुल एग्जिट का भी सवाल
सवाल नीतीश कुमार के ग्रेसफुल एग्जिट का भी है और नीतीश कुमार द्वारा मनमाफिक केन्द्र में रोल नहीं मिलने पर वो सत्ता छोड़ने को तैयार होंगे इसको लेकर राजनीति के जानकार कतई भरोसा करने को तैयार नहीं हैं. बिहार की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले विश्लेषक डॉ संजय कुमार कहते हैं कि नीतीश कुमार का अचानक पार्टी ऑफिस जाने से लेकर किसी मंत्री के घर चले जाना उनके छटपटाहट का परिचायक है. जाहिर है नीतीश एक दांव और खेलने की फिराक में हैं जो लोकसभा चुनाव के परिणाम पर निर्भर करता है.
जेडीयू द्वारा इजराइल और हमास की लड़ाई का मुद्दा हो या फिर हिंदु ग्रंथों पर आरजेडी के कुछ नेताओं द्वारा की जाने वाली तीखी दिप्पणियां, ऐसे मसलों पर जेडीयू की अलग राय इस बात का परिचायक है कि नीतीश अपनी प्रासंगिकता और पहचान आरजेडी से अलग बनाए रखना चाह रहे हैं. ऐसे में नीतीश कुमार का अगला राजनीतिक फैसला क्या होगा इसको लेकर आरजेडी,बीजेपी सहित जेडीयू के नेताओं में भी लगातार संशय की स्थिती बनी रहती है.
जी-20 की मीटिंग में पीएम का सीएम नीतीश के प्रति विशेष प्रेम का इजहार और नीतीश कुमार द्वारा इसे स्वीकार करने के पीछे इसे नए संभावनाओं का द्वार माना जा रहा है. नीतीश कुमार ने राष्ट्रपति के बिहार दौरे के दरमियान बीजेपी नेताओं के साथ हमेशा चलने वाले रिश्ते की बात कह आरजेडी को पशोपेश में डाल दिया था वहीं कांग्रेस नेताओं द्वारा विश्विद्यालय नहीं देने की बात कह आरजेडी को उनके बयान के विरोध में बोलने के लिए मजबूर कर दिया था. इन्ही वजहों से नीतीश कुमार लगातार संशय के घेरे में हैं और वो कभी आरजेडी को टाटा बाय बाय कह सकते हैं इसको राजनीति पंडित इन्कार नहीं कर पाते हैं