ये कैसी आजादी है जो अभी तक भेदभाव से नहीं उबर पाई है. देश आजादी का 75 वां जश्न मनाने जा रहा है और इसी देश के एक सूबे में दलित ग्राम प्रधान को राष्ट्रीय ध्वज फहराने का हक नहीं और तो और बैठने के लिए कुर्सी तक नसीब नहीं है. कहीं दूर की बात नहीं ये दक्षिणी राज्य तमिलनाडु (Tamil Nadu) की कहानी है. तमिलनाडु अस्पृश्यता उन्मूलन मोर्चा-टीएनयूईएफ (Tamil Nadu Untouchability Eradication Front-TNUEF) के एक सर्वेक्षण में अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) समुदायों के पंचायत अध्यक्षों के खिलाफ कई तरह के भेदभाव होने का खुलासा हुआ है.
तमिलनाडु के सबसे प्रगतिशील राज्यों में से एक होने और सामाजिक न्याय की भूमि होने का दावा हाल ही के इस सर्वेक्षण के साथ सवालों के घेरे में आ गया है, जिसमें पाया गया है कि राज्य के अधिकांश हिस्सों में स्थानीय निकायों में दलित प्रतिनिधियों के साथ भेदभाव किया जाता है, यहां तक कि 386 में से 22 दलित पंचायत अध्यक्षों के पास कार्यालय में बैठने के लिए कुर्सी तक मुहैया नहीं कराई गई है.
इस सर्वे के खुलासे से एक अच्छी बात हुई कि शुक्रवार को ही मीडिया रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए सूबे के मुख्य सचिव वी इराई अंबू (V Irai Anbu) ने जिला कलेक्टरों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि पंचायत अध्यक्ष, महापौर और ऐसे अन्य स्थानीय निकाय के प्रमुख 75 वें स्वतंत्रता दिवस (75th Independence Day) पर अपनी जाति के बावजूद राष्ट्रीय ध्वज फहराएं.
राष्ट्रीय त्योहारों पर झंडा फहराने का हक नहीं
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक कई दलित अध्यक्षों के पास अपने कार्यालयों में बैठने के लिए कुर्सियां तक नहीं है. तमिलनाडु अस्पृश्यता उन्मूलन मोर्चा- टीएनयूईएफ सर्वे के आधार पर उन्होंने ये रिपोर्ट लिखी है. टीएनयूईएफ सर्वे में पाया गया कि दलित पंचायत प्रमुखों को लगभग 17 तरह के भेदभावों का सामना करना पड़ता हैं. हालात ये हैं कि कई दलित गांव के प्रधानों को गणतंत्र दिवस (Republic Day) और स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) पर तिरंगा फहराने के अधिकार से भी वंचित कर दिया जाता है. दलित ग्राम प्रधान होने के नाते कई को तो स्थानीय निकाय कार्यालय में तक नहीं घुसने दिया जाता है. कई ग्राम पंचायतों में दलित ग्राम प्रधान ग्राम पंचायत के ऑफिस के फर्श के किसी कोने में जगह पाते हैं, जबकि उनके शोषक आरामदेह कुर्सियों में बैठते हैं.
क्या है टीएनयूईएफ
तमिलनाडु अस्पृश्यता उन्मूलन मोर्चा-टीएनयूईएफ (Tamil Nadu Untouchability Eradication Front-TNUEF) एक गैर सरकारी संगठन (NGO) है. इस संगठन के लगभग 400 स्वयंसेवकों ने तमिलनाडु के 24 जिलों में सर्वेक्षण किया. सर्वेक्षण में एनजीओ के तहत आने वाले गांवों में दलित पंचायत अध्यक्षों के खिलाफ 17 तरह के भेदभाव सामने आए हैं. सर्वे में पाया गया कि 386 में से 22 दलित पंचायत अध्यक्षों के पास कार्यालय में बैठने के लिए कुर्सी तक नहीं है. इसी सर्वेक्षण में ये चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. गुरुवार को चेन्नई में सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी करने के बाद टीएनयूईएफ के के सैमुवेल राज ने कहा, “सर्वेक्षण का नतीजा चौंकाने वाला है क्योंकि पंचायत अध्यक्षों को 20 पंचायतों में राष्ट्रीय ध्वज फहराने की इजाजत नहीं है, जब राष्ट्र अपनी आजादी की 75 वीं वर्षगांठ मनाने के लिए तैयार है.”
मीडिया रिपोर्ट के बाद झंडा फहराने को लेकर दिए निर्देश
तमिलनाडु के मुख्य सचिव वी इराई अंबू (V Irai Anbu) ने शुक्रवार को जिला कलेक्टरों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि पंचायत अध्यक्ष, महापौर और ऐसे अन्य स्थानीय निकाय के प्रमुख 75 वें स्वतंत्रता दिवस (75th Independence Day) पर अपनी जाति के बावजूद राष्ट्रीय ध्वज फहराएं. जाति-आधारित भेदभाव पर एक मीडिया रिपोर्ट की ओर इशारा करते हुए स्थानीय निकायों के निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ उन्होंने कहा कि छूआछूत (Untouchability) एक अपराध है.