हिजाब की चर्चा इन दिनों खूब हो रही है. हालांकि इस बार चर्चा भारत की वजह से नहीं है, बल्कि ईरान की वजह से है. ईरान में 22 साल की महिला माहसा अमीनी (Mahsa Amini) की मौत के बाद हिजाब विवाद (Hijab Row) ने तूल पकड़ लिया है. दरअसल, अमीनी को हिजाब न पहनने पर पुलिस ने कुछ समय पहले हिरासत में लिया था. आरोप है कि पुलिस ने हिरासत में टॉर्चर किया, जिससे उनकी हालत बिगड़ी और उनकी मौत हो गई. माहसा अमीनी की मौत के बाद ईरान में महिलाओं ने हिजाब को लेकर आंदोलन कर दिया है. वे हिजाब उतारकर उन्हें जला रही हैं, बालों को काट रही हैं. आज हम आपको बताने जा रहे हैं इसी हिजाब की कहानी जिसको लेकर विवाद हो रहा है. आखिर कहां से आय़ा हिजाब, कैसे हुई इसकी शुरुआत और कैसे यह कुछ मुस्लिम देशों में अनिवार्य हो गया.
क्या है हिजाब
हिजाब एक स्कार्फ जैसा चौकोर कपड़ा होता है. मुस्लिम महिलाएं इसका इस्तेमाल अपने बालों, सिर और गर्दन को ढकने के लिए करती हैं, ताकि सार्वजनिक स्थानों या घर पर भी असंबंधित या अनजान पुरुषों से विनम्रता और गोपनीयता बनाए रखी जा सके.
ऐसे शुरू हुआ सफर
सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, हिजाब की शुरुआत धर्म नहीं, बल्कि महिलाओं की जरूरत के हिसाब से हुई थी. इसका यूज मैसापोटामिया सभ्यता के लोगों ने शुरू किया था. तब तेज धूप, धूल और बारिश से सिर को बचाने के लिए लिनेन के कपड़े का इस्तेमाल होता था. इसे सिर पर बांधा जाता था. अगर आप 13वीं शताब्दी में लिखे गए प्राचीन एसिरियन लेख को देखेंगे तो आपको उसमें भी इसका जिक्र मिल जाएगा. इसके अलावा लेखक फेगेह शिराजी ने अपनी किताब ‘द वेल अनइविल्डे: द हिजाब इन मॉडर्न कल्चहर’ में लिखा है कि सऊदी अरब में वहां की जलवायु की वजह से इस्लारम आने से पहले ही महिलाओं में सिर को ढकने का चलन था. महिलाएं तेज गर्मी से बचने के लिए इसका यूज करती थीं.
इन महिलाओं के इस्तेमाल पर थी रोक
बेशक उस वक्त कुछ महिलाओं ने हिजाब का इस्तेमाल खुद को धूप, धूल से बचाने के लिए करना शुरू कर दिया था, लेकिन यह यूज कुछ खास वर्ग तक के लिए ही था. गरीब महिलाओं और वेश्याओं के लिए इसके इस्तेमाल पर पाबंदी थी. अगर इस कैटेगरी की कोई महिला हिजाब में दिखती थी तो उसे सजा मिलती थी.
इस तरह हिजाब पर चढ़ा धर्म का रंग
धीरे-धीरे हिजाब स्टाइलिश होता गया. इसके नए नए डिजाइन की वजह से इसका इस्तेमाल उन देशों में भी होने लगा जहां यह यूज नहीं होता था. अब फैशन से आगे निकलकर धीरे-धीरे जब इसका इस्तेमाल बढ़ा तो यह धर्म से जुड़ता गया और कई देशों में इसे महिलाओं, बच्चियों और विधवाओं के लिए पहनना जरूरी कर दिया गया.