अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद की उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) में शुक्रवार को सातवें दिन की सुनवाई के दौरान रामलला विराजमान की ओर से दलील दी गई कि विवादित स्थल पर देवताओं की अनेक आकृतियां मिली हैं।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ से रामलला विराजमान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने अपनी दलीलों के समर्थन में विवादित स्थल का निरीक्षण करने के लिए अदालत द्वारा नियुक्त कमिश्नर की रिपोर्ट के अंश पढ़े।
रामलला के वकील वैद्यनाथन ने कहा कि अदालत के कमिश्नर ने 16 अप्रैल, 1950 को विवादित स्थल का निरीक्षण किया था और उन्होंने वहां भगवान शिव की आकृति वाले स्तंभों की उपस्थिति का वर्णन अपनी रिपोर्ट में किया था।
वैद्यनाथन ने कहा कि मस्जिद के खंबों पर नहीं, बल्कि मंदिरों के स्तंभों पर ही देवी देवताओं की आकृतियां मिलती हैं। उन्होंने 1950 की निरीक्षण रिपोर्ट के साथ स्तंभों पर उकेरी गयी आकृतियों के वर्णन के साथ अयोध्या में मिला एक नक्शा भी पीठ को सौंपा। उन्होंने कहा कि इन तथ्यों से पता चलता है कि यह हिन्दुओं के लिए धार्मिक रूप से एक पवित्र स्थल था।
वैद्यनाथन ने ढांचे के भीतर देवाताओं के तस्वीरों का एक एलबम भी पीठ को सौंपा और कहा कि मस्जिदों में इस तरह के चित्र नहीं होते हैं। उन्होंने आगे कहा कि सिर्फ नमाज अदा करने से वह जगह उनकी नहीं हो सकती जब तक वह आपकी संपत्ति न हो। नमाज सड़कों पर भी होती है इसका मतलब यह नहीं कि सड़क आपकी हो गई।
छठवें दिन की सुनवाई के दौरान हिंदू पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि है और वहां मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। लिहाजा शरीयत कानून के तहत यह मस्जिद वैध नहीं है। रामलला विराजमान की ओर से पेश वकील सीएस वैद्यनाथन ने पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष वेद-पुराणों और ऐतिहासिक यात्रा वृत्तांतों के जरिये अपनी दलीलों को सिद्ध करने की कोशिश की। यहां सवाल-जवाब के क्रम से समझिए आखिर सुनवाई के दौरान क्या कुछ हुआ।