छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार जोरों पर चला रहा है. एक-एक सीट के लिए सभी पार्टियों ने पूरी ताकत लगा रखी है. राज्य में बिलासपुर विधानसभा सीट कांग्रेस और भाजपा के लिए सबसे अहम है. छत्तीसगढ़ बनने के पहले तक 9 बार कांग्रेस ने इस सीट पर जीत दर्ज की है. वहीं छत्तीसगढ़ बनने के बाद यह सीट भाजपा के कब्जे में थी, लेकिन 2018 में कांग्रेस के शैलेश पांडे ने अमर अग्रवाल को 11 हजार 221 वोट से हराकर जीत दर्ज की.
राज्य में कांग्रेस की सरकार है. ऐसे में वह किसी भी हाल में हार का सामना नहीं करना चाहेगी. वहीं भाजपा हर हाल में राज्य में सरकार बनाना चाहेगी. ऐसे में दोनों ही पार्टियां मतदाताओं को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं.
जातिगत आधार पर होता है चुनाव
बिलासपुर विधानसभा में चुनाव जातिगत आधार पर होता है. जाति की रणनीति ही चुनाव में हार जीत तय करती है. यहां मुस्लिम, ब्राह्मण, एससी और सिंधी व पंजाबी समाज के मतदाता अधिक है. इन पांच वर्गों के पास कुल वोटों का आधा से ज्यादा हिस्सा है. बाकी वोट अन्य 12 वर्गो के पास है, जिनमें महार, गुजराती, बंगाली, साहू, मारवाड़ी, यादव, क्रिश्चियन आदि शामिल हैं. चुनाव जीतने के लिए हर समाज-वर्ग का समर्थन और वोट जरूरी है. यही वजह है कि राजनीति के विशेषज्ञ जातिगत समीकरणों पर विशेष ध्यान दे रहे हैं.
कैसा रहा राजनीतिक इतिहास
इस सीट पर 9 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है. 1957 में यहां से पहली बार कांग्रेस से शिव दुलारे मिश्र विधायक बने थे. जिन्होंने जनसंघ के प्रत्याशी मदनलाल शुक्ल को 1018 हराया था. वहीं 1962 और 1967 में कांग्रेस से प्रत्याशी राम चरण राय जनसंघ के प्रत्याशी मदन लाल शुक्ला और जमुना प्रसाद वर्मा को हराकर जीत दर्ज की की थी. इसके बाद 1972 में श्रीधर मिश्र ने जनसंघ के बबन राव शेष को 1082 वोट से हराया.
बना कांग्रेस का गढ़
कांग्रेस का गढ़ बन चुके बिलासपुर विधानसभा में अविभाजित मध्य प्रदेश के समय पत्रकारिता से राजनीति में आए कद्दावर नेता बीआर यादव ने 1977- 80, 1980- 85, 1985- 89 और 1993- 98 तक यहां से विधायक रहे. 1977 में कांग्रेस विरोधी लहर के बावजूद बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र के चुनाव में जीत हासिल कर उन्होंने अपनी लोकप्रियता की मिसाल पेश की. वह मध्यप्रदेश सरकार में 14 वर्षों से अधिक समय तक मंत्री रहे. इस बीच 1990 में भाजपा ने मूलचंद खंडेलवाल को अपना प्रत्याशी बनाया और उन्होंने जीत दर्ज की.
1998 से 2013 तक भाजपा के कद्दावर नेता अमर अग्रवाल यहां से विधायक बनें. 1998 से लेकर 2008 के चुनाव में चौंकाने वाली बात यह थी कि कांग्रेस से 2 बार 2003 और 2008 में लगातार अनिल टाह मौका दिया गया, लेकिन वह हार गए. वहीं कांग्रेस ने 2013 में वाणी राव को मौका दिया गया जो की अमर अग्रवाल से 15599 वोट से हार गए.
महंगी पड़ी थी ब्राह्मण वर्ग की नाराजगी
2018 चुनाव में ब्राह्मण वर्ग के नाराजगी भाजपा के प्रत्याशी अमर अग्रवाल को झेलनी पड़ी थी और ब्राह्मण वर्ग जो की बिलासपुर में एक लीडिंग पोजीशन में है उसने कांग्रेस के प्रत्याशी शैलेश पांडे को अपना समर्थन दिया और उन्होंने 15 साल के भाजपा कार्यकाल में मंत्री रहे कद्दावर नेता अमर अग्रवाल को हरा दिया एक बार फिर दोनों आमने-सामने हैं और 2023 के विधानसभा चुनाव में पुरी ताकत झोंकने में लगे हुए हैं.