कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की वापसी की चर्चा छिड़ते ही कुछ चुनिंदा लोग अचानक वादी के माहौल को खराब करने की कोशिश में जुट गए हैं. सोमवार को श्रीनगर के लाल चौक पर जहां सीआरपीएफ के जवानों पर हमला किया गया, वहीं पुलवामा में बिहारी मज़दूरों को निशाना बनाया गया और शोपियां में एक कश्मीरी पंडित पर गोली चलाकर घायल कर दिया गया. इन घटनाओं से माना जा रहा है कि कश्मीरी पंडितों और सेना के रिटायर्ड जवानों को कश्मीर में बसाने की सरकार की कोशिश के खिलाफ मैसेज देने के लिए इस तरह की हरकत की जा रही है. ऐसे में शोपियां के उस छोटीगाम नाम के गांव का दौरा किया जहां सोमवार शाम को फायरिंग कर बालकृष्ण उर्फ सोनू कुमार नाम के कश्मीरी पंडित पर गोली चलाई गई.
आतंकी गतिविधियों के लिए बदनाम शोपियां जिले के छोटीगाम नाम के गांव में सोमवार शाम करीब 7.15 बजे मेडिकल स्टोर चलाने वाले बालकृष्ण उर्फ सोनू कुमार पर फायरिंग कर उन्हें घायल कर दिया गया. बालकृष्ण के परिजनों के मुताबिक उनकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. परिजनों का कहना है कि सोमवार शाम को एक बाइक पर 3 लोग आए. एक शख्स गांव के मोड़ पर उतर गया जबकि 2 सोनू की मेडिकल स्टोर पर आए. एक शख्स बाइक से उतरा और बिना किसी बात के सोनू कुमार पर गोलियां चला दी और तीनों फरार हो गए. सोनू को फिलहाल श्रीनगर के अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
बालकृष्ण की दुकान में गोलियों के निशान दिखाई दे रहे हैं. हमलावर ने फायरिंग की तो बचने की कोशिश में 2 गोली सिर की जगह हाथ में लग गई. इसके बाद एक गोली पेट में और एक गोली पैर में लगी. दुकान में दवा के डब्बों को छेदते हुए गोली दीवार में घुस गई. फायरिंग के बाद हमलावर मौके से फरार हो गए तो बालकृष्ण के भाई और पड़ोसियों ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया. इसके बाद प्रशासन ने उन्हें श्रीनगर के अस्पताल में भर्ती करा दिया है
वहीं घटना की इतर क्या वाकई कश्मीरी लोग बचे खुचे कश्मीरी पंडितों को भी बाहर करना चाहते हैं, इस सवाल को हमने छोटीगाम गांव के मुस्लिम समुदाय के लोगों से पूछा गया. जिस पर हर शख्स का मानना है कि कल हुई घटना माहौल खराब करने के लिए की गई है. छोटीगाम गांव के लोगों ने बताया कि सोनू छोटी-मोटी बीमारियों का इलाज करने कर साथ-साथ हर ग्रामीण से अच्छे रिश्ते रखता रहा है. ग्रामीणों ने खुलकर कश्मीरी पंडितों को वापस कश्मीर में बसाने के सरकार के प्रयासों का समर्थन करते हुए विस्थापित कश्मीरियों का स्वागत किया.
शोपियां के छोटीगाम गांव में रहने वाले बालकृष्ण के भाई अनिल भट्ट एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए भावुक हो गए. उनका कहना है कि 1990 में जब कश्मीरी पंडितों के पलायन हो रहा था तब अपने गांव की संपत्ति बचाने के लिए उनके पिता ने गांव न छोड़ने का फ़ैसला किया. संघर्षों के बावजूद उनका परिवार घर छोड़कर नहीं गया लेकिन अनिल का कहना है कि आज महसूस हो रहा है कि उन्होंने 32 साल पहले कश्मीर न छोड़ने का जो फ़ैसला लिया वो गलत था.
अनिल का तर्क है कि सरकार विस्थापित कश्मीरी पंडितों को अगर मदद कर सकती है तो जो कश्मीरी पंडित यहां रह गए उनकी मदद क्यों नहीं की जाती. अनिल ने ये भी कहा कि वो सरकार की कोशिशों का समर्थन करते हैं लेकिन जिस तरह उनके भाई पर हमला किया गया उससे वो बेहद डर भी गए हैं.
कश्मीरी पंडितों के प्लायन के वक़्त कश्मीर न छोड़ने का फ़ैसला करने वाले बालकृष्ण के पिता जानकीनाथ भी डरे हुए हैं. उन्होंने बताया कि 1990 में जब सब कश्मीर छोड़कर भाग रहे थे, तब हिम्मत करके वो गांव में अपना परिवार लेकर रहे. तीन साल तक अपने खेतों में खेती नहीं कर पाए लेकिन धीरे-धीरे अपने घर और खेत बचाने में कामयाब हो गए. उन्होंने बताया कि गांववाले हमेशा मिलकर रहते हैं. हिन्दू मुस्लिम की भावनाओं से उठकर सब मिलकर रहते हैं लेकिन कल की घटना ने उन्हें डरा दिया है. जानकीनाथ को लगता है कि कल हुई फायरिंग सिर्फ हिन्दू मुस्लिमों को लड़ाने की कोशिश है.
कश्मीर के बेहद संवेदशील शोपियां जिले में आम मुस्लिमों ने सरकार की कश्मीरी पंडितों की वापसी कराने के फैसले का समर्थन करते हुए हिंसा करने वालों के खिलाफ बयान दिया है. सभी ने ये माना कि श्रीनगर, पुलवामा या शोपियां की घटना सिर्फ माहौल को खराब करके हिन्दू मुस्लिमों को बांटने की कोशिश है. जाहिर है कश्मीर ने 5 अगस्त 2019 के बाद विकास की लहर भी देखी है और माहौल को बदलता हुआ महसूस भी किया है. अब बदले हुए माहौल में आम कश्मीरी अमन चाहता है जो कुछ मुट्ठी भर लोगों को रास नहीं आ रहा है.