दिल्ली में अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ा बिल आज लोकसभा में पेश किया जाएगा. बीते मंगलवार को प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने इस बिल पर अपनी मुहर लगा दी थी. इस मुद्दे पर एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच घमासान होना तय है. केजरीवाल ने तमाम बीजेपी विरोधियों से मिलकर संसद में इस बिल को गिराने की अपील की है और कहा कि अगर विपक्ष इस बिल को पारित होने से रोक पाता है तो यह सरकार की बड़ी हार होगी.
अगर बात लोकसभा की करें तो सरकार के पास बिल पास कराने के लिए पर्याप्त संख्याबल है. कुल 543 सीटों वाली लोकसभा में अकेले बीजेपी के 301 सांसद है, जबकि एनडीए के सांसदों को मिला ले तो यह संख्या 333 हो जाती है. इधर कांग्रेस की अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन में 142 सांसद है यानी लोकसभा में सरकार की राह आसान होगी. आम आदमी पार्टी का कहना है कि सरकार के खिलाफ विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव स्वीकृत हो चुका है, उसपर चर्चा होने से पहले इस विधेयक को संसद में लाना ही नियमों के खिलाफ है.
अध्यादेश पर आम आदमी पार्टी को विपक्ष की ज्यादातर पार्टियों का समर्थन हासिल हुआ है. कांग्रेस ने बेंगलुरु की बैठक से ठीक पहले अध्यादेश के विरोध का ऐलान करके केजरीवाल बड़ी राहत दी है. अब बड़ा सवाल यह है कि क्या केंद्र सरकार लोकसभा की तरह राज्यसभा में भी आसानी से इस बिल को पास करा लेगी या फिर विपक्ष राज्यसभा में इसको रोकने में कामयाब हो जाएगा.
क्या राज्यसभा में बिल पास करा लेगी सरकार
राज्यसभा में कुल सदस्यों की संख्या 237 है. ऐसे में यहां पर किसी भी अध्यादेश को पास कराने के लिए 119 सांसद चाहिए. यहां बीजेपी के सांसदों की संख्या 92 है, मनोनीत सांसदों को जोड़ ले तो यह संख्या 97 हो जाती है. इसके साथ ही अगर एनडीए में शामिल पार्टियों के सांसदों को मिला ले तो यह आंकड़ा 111 हो जाता है. सरकार के पास अध्यादेश पारित कराने के लिए अभी भी 8 सांसद कम हैं. जाहिर है, ऐसे में सरकार को एनडीए और इंडिया दोनों से दूरी बनाकर चल रही पार्टियों से समर्थन की दरकार होगी.
बीजेडी के राज्यसभा में 9, बीआरएस के 7 और वाईआरएस कांग्रेस के 9, जेडीएस, टीडीपी और बीएसपी के एक-एक सांसद है. एनडीए और इंडिया से दूरी बनाकर चल रहे इन दलों की राज्यसभा में संख्या 28 है. इन दलों को देखकर ऐसा लगता है कि सरकार को 8 सांसदों का समर्थन हासिल करना मुश्किल नहीं है.
केजरीवाल के पास क्या है आंकड़ा
अगर राज्यसभा में केजरीवाल को कांग्रेस के 30 सदस्यों का समर्थन हासिल हो भी गया तो इनकी संख्या कुल 98 ही होगी. ऐसे में राज्यसभा में इस अध्यादेश को वापस कराना केजरीवाल के लिए मुश्किल हो सकता है और उसको कांग्रेस का साथ मिलने से भी कोई राहत मिलती नजर नहीं आ रही है. जबकि लोकसभा में सिर्फ 142 सांसद होने की वजह से इंडिया गठबंधन सरकार को नहीं घेर पाएगा.
क्या है दिल्ली का अध्यादेश?
केंद्र सरकार ने नेशनल कैपिटल सर्विस अथॉरिटी बनाई है. इसके पास ही दिल्ली के अधिकारियों के ट्रांसफर करने के अधिकार हैं. इसमें 3 सदस्य रखे गए हैं, जिसमें मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और गृह सचिव शामिल हैं. इसके साथ ही यह अथॉरिटी बहुमत से फैसला करेगी. इन तीन लोगों में से दो लोग जिस बात पर सहमत होंगे, वह मान्य होगा. इसी को लेकर दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को लग रहा है कि उनके शक्तियां छीनीं जा रही है. इसके साथ ही अगर किसी बात पर असहमति होगी तो उपराज्यपाल की बात भी मानी जाएगी. इस अध्यादेश में धारा 45डी भी जुड़ी हुई है.
केंद्र और ‘आप’ सरकार में टकराव की असली वजह
केजरीवाल सरकार केंद्र सरकार के अध्यादेश का विरोध कर रही है, क्योंकि उसका मानना है कि यह अध्यादेश दिल्ली की चुनी हुई सरकार को कमजोर करने की कोशिश है. यह अध्यादेश केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त दिल्ली के उपराज्यपाल को दिल्ली में आईएएस और दानिक्स अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग पर नियंत्रण देता है. इसका मतलब यह है कि इन महत्वपूर्ण पदों पर किसे नियुक्त किया जाए, इस पर अब दिल्ली की चुनी हुई सरकार का अंतिम अधिकार नहीं होगा.
केजरीवाल सरकार का तर्क है कि अध्यादेश असंवैधानिक है, क्योंकि यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन करता है. भारत का संविधान दिल्ली की चुनी हुई सरकार को दिल्ली के प्रशासन को नियंत्रित करने की शक्ति देता है. अध्यादेश इस शक्ति को छीन लेता है और इसे शनल कैपिटल सर्विस अथॉरिटी और उपराज्यपाल को दे देता है, जो निर्वाचित अधिकारी नहीं है.
केजरीवाल सरकार का यह भी तर्क है कि यह अध्यादेश अलोकतांत्रिक है. दिल्ली की जनता ने दिल्ली पर शासन करने के लिए आम आदमी पार्टी को चुना. यह अध्यादेश केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल को दिल्ली के प्रशासन पर नियंत्रण देकर लोगों की इच्छा को कमजोर करता है.