हवा का रूख कैसा है, हम समझते हैं; जनकवि गोरख पांडे की लिखी बात याद आ रही है. खैर, इस चुनाव में ‘हवा का रूख’ ज्यादातर सर्वे एजेंसियां बीजेपी की तरफ झुकी हुई बता रही हैं. फिर भी एक धड़ा आखिर मौके पर उलटफेर की आस में मुब्तिला है. जीत-हार तो एक बात, मतदाता मुद्दों पर क्या सोचते हैं, इसी को समझने के लिए सीएसडीएस-लोकनीति ने एक सर्वे किया.
प्री-पोल सर्वे 28 मार्च से 8 अप्रैल के बीच किया गया जिसका सैंपल साइज 10,019 लोगों का रहा. 19 राज्यों के अंतर्गत आने वाली 100 लोकसभा सीटों के मतदाताओं से बातचीत के बाद सीएसडीएस ने 2024 चुनाव के प्रमुख मुद्दे, मोदी सरकार के पिछले 5 साल के कामकाज पर लोगों की राय, चुनाव आयोग पर आम-आवाम का भरोसा और ऐसे बहुतेरे विषयों का आकलन किया.
सर्वे की खास बातें इस प्रकार हैं:-
- सबसे बड़े मुद्दे, लोगों की चिंताएं:-
बेरोजगारी – सर्वे में शामिल 27 फीसदी लोगों का मानना था कि उनकी सबसे बड़ी चिंता आज के वक्त में बेरोजगारी है.
महंगाई – 23 फीसदी लोगों ने महंगाई को बड़ी समस्या माना.
विकास – 13 प्रतिशत लोगों का झुकाव विकास को लेकर था.
राम मंदिर – केवल 8 फीसदी लोग ही ऐसे थे जिनके लिए अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण अहम विषय रहा.
हिंदुत्त्व – सिर्फ 2 फीसदी सर्वे में शरीक हुए लोगों के लिए हिंदुत्त्व का मुद्दा प्रमुख रहा.
- बेरोजगारी, महंगाई किसके कारण बढ़ी?
बेरोजगारी – 62 फीसदी लोग इस मत के थे कि मोदी के दूसरे कार्यकाल में उनके लिए नौकरी पाना ज्यादा मुश्किल हो गया है.
रोजगार के अवसर सीमित करने का जिम्मेदार 17 फीसदी लोग राज्य सरकारों को, 21 फीसदी केंद्र जबकि 57 फीसदी दोनों को मानते हैं.
महंगाई – इस बार के सर्वेक्षण में 71 फीसदी का मत रहा कि महंगाई बढ़ी है. बढ़ती महंगाई के लिए 12 फीसदी लोग राज्य को, 26 फीसदी केंद्र और 56 फीसदी दोनों को जिम्मेदार मानते हैं.
विकास – सर्वे में हिस्सा लेने वाले करीब 48 फीसदी ऐसे लोग रहें जिनका मानना था कि पिछले 5 सालों के दौरान समावेशी (हर तरह का, सबके लिए) विकास हुआ है. वहीं, 32 फीसदी केवल अमीरों के डेवलपमेंट और 15 फीसदी ने बिल्कुल भी विकास न होने की बात की.
- अच्छे दिन आए क्या?
जिंदगी बेहतर हुई क्या – ये पूछे जाने पर कि क्या आपकी जिंदगी में कुछ खास सुधार आया है, 48 फीसदी लोगों ने बेहतरी की बात कुबूल की जबकि 14 फीसदी ने कहा कि मामला जस का तस है, कुछ नहीं बदला. वहीं, 35 प्रतिशत सर्वे में शामिल होने वाले लोगों ने जिंदगी और दुभर होने की बात की है.
बुनियादी जरूरियात, बचत – केवल 22 फीसदी लोग अपनी जरूरतों को पूरा करते हुए आय का कुछ हिस्सा बचा पा रहे हैं, वहीं 36 फीसदी बुनियादी चीजें तो जुटा पा रहे हैं लेकिन कुछ बचा पाना भविष्य के लिए उनके अख्तियार से बाहर की बात हैं.
23 फीसदी ऐसे भी हैं जिनके लिए मुलभूत चीजों को इकठ्ठा कर पाना मुश्किल हो रहा है और 12 फीसदी ने एकदम हाथ खड़ा कर दिया कि उनके पास जीवन जीने के जरूरी साधन जुटाने का माद्दा नहीं है.
अच्छे दिन – 16 फीसदी कहते हैं कि बहुत हद तक उनके अच्छे दिन आ गए जबकि 33 फीसदी कुछ हद तक अच्छे दिन आने की वकालत करते हैं. वहीं, 22 फीसदी ने अच्छे दिन आने की बात को सिरे से खारिज कर दिया.
- भ्रष्टाचार कम हुई या बढ़ गई?
लोकनीति प्री-पोल सर्वे 2019 में 40 फीसदी लोग ऐसे मिले थे जिनका मानना था कि भ्रष्टाचार बढ़ा है परंतु इस दफा ऐसे लोगों की संख्या 55 फीसदी तक पहुंच गई है.
साथ ही, कहां तो पांच साल पहले केवल 37 फीसदी लोग करप्शन के कम होने की बात करते थे, अब ऐसे लोगों की तादाद घटकर 19 फीसदी पर आ पहुंची है.
भ्रष्टाचार के लिए 25 फीसदी केंद्र सरकार, 16 फीसदी राज्य सरकार जबकि 56 प्रतिशत दोनो को जिम्मेदार मानते हैं.
- किसानों का प्रदर्शन क्या जायज?
तीन कृषि कानूनों को लेकर या फिर बाद में न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग करते हुए दिल्ली कूच करने वाले किसानों को लेकर बड़ी बंटी हुई राय दिखी.
लोकनीति-सीएसडीएस ने जब अपने सर्वे में किसानों के देश भर में हुए प्रदर्शन पर सवाल किया तो 59 फीसदी लोगों ने उनकी मांगों को सही माना और कहा उनको प्रदर्शन का हक है. 16 फीसदी किसानों के प्रदर्शन को सरकार के खिलाफ साजिश मानते हैं.
- 370, G20, UCC
G20, अंतरराष्ट्रीय छवि – भारत की जी20 अध्यक्षता और विश्व के बड़े नेताओं की दिल्ली में मेजबानी बहुत से मतदाताओं को रास आई है और लोग इसको अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की बदलती और निखरती छवि से जोड़ कर देख रहे हैं.
अव्वल तो सर्वे में शामिल करीब दो-तिहाई लोगों को जी-20 शिखर सम्मेलन के बारे में जानकारी ही नहीं थी पर जिन्हें मालूम था उनमें से 30 फीसदी इसे दुनिया में भारत की मजबूत होती स्थिति, 23 फीसदी अर्थव्यवस्था और विदेशी व्यापार में बढ़ोतरी की संभावना से जोड़कर देखते हैं.
16 फीसदी जी-20 की मेजबानी को मोदी सरकार के विदेश नीति की उपलब्धता मानते हैं तो 22 फीसदी लोग इसे या तो पैसे की बर्बादी या फिर राजनीतिक इवेंट के तौर पर मानते हैं.
अनुच्छेद 370 – अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी (आमतौर पर कहें तो 370 को खत्म करना) किए जाने वाले मोदी सरकार के फैसले को 34 फीसदी लोग अच्छा कदम मानते हैं. वहीं, 16 फीसदी इसे किए जाने के तरीके को लेकर सहमत नहीं हैं.
दिलचस्प है ये जानना कि सर्वे में शामिल 20 फीसदी लोगों को अनुच्छेद 370 के बारे में मालूम ही नहीं था जबकि केवल 8 फीसदी लोगों ने अनुच्छेद 370 की समाप्ति को एक गलत फैसला माना.
UCC – सर्वे में शामिल 26 फीसदी लोगों को यूनिफॉर्म सिविल कोड बोले तो सामान नागरिक संहिता के बारे में नहीं मालूम था. 29 फीसदी यूसीसी लागू करने को महिलाओं के सशक्तिकरण से जोड़कर देखते हैं तो 19 फीसदी इसे धार्मिक परंपराओं में दखल मानते हैं.
- चुनाव आयोग और EVM
चुनाव आयोग – 2019 के तुलना में चुनाव आयोग पर लोगों का भरोसा कम हुआ है. 2019 के चुनाव बाद हुए लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे में 51 फीसदी लोगों ने बहुत हद तक चुनाव आयोग पर अपना भरोसा माना था पर इस दफा ये प्रतिशत लुढ़क कर 28 फीसदी पर चला आया है.
पांच साल पहले इलेक्शन कमीशन पर बिल्कुल भी भरोसा न करने वालों की तादाद केवल 5 फीसदी थी पर अब वह लगभग दोगुनी हो गई है. वहीं, 2019 में कुछ हद तक चुनाव आयोग पर भरोसा करने वाले 27 फीसदी लोग थे जो इस दफा 30 फीसदी को पहुंच गए हैं.
EVM – ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की जा सकती है क्या, चुनाव में धांधली के आरोप रह-रहकर मीडिया के चले आते हैं. जब सर्वे में आवाम से इस पर राय ली गई तो पता चला कि 45 फीसदी लोग ऐसे थे जिनका मानना है कि वोटिंग मशीन के साथ सत्ताधारी पार्टी गड़बड़ी कर सकती है.
- भाई-भतीजावाद, दलबदल
भाई-भतीजावाद – ये पूछे जाने पर कि भाजपा और कांग्रेस में ज्यादा भाई-भतीजावाद किस पार्टी में है, 25 फीसदी इस मत के थे कि बीजेपी, कांग्रेस की तुलना में कम भाई-भतीजावाद करती है.
वहीं, इस के लगभग बराबर 24 फीसदी भाजपा को भी कांग्रेस ही के बराबर भाई-भतीजवाद वाली पार्टी मानते हैं. केवल 15 फीसदी ऐसे लोग रहे जिनका मानना था बीजेपी ‘परिवारवाद’ नहीं करती.
दलबदल – विपक्षी दलों के नेता बीजेपी में क्यों शामिल हो रहे हैं. इस पर 46 फीसदी सर्वे में शरीक हुए लोगों का मानना था कि ऐसा कर के वे खुबीद को सीबीआई और ईडी से बचा रहे हैं जबकि 27 फीसदी ने इसे उन नेताओं का बीजेपी के प्रति झुकाव वजह माना.
- राम मंदिर, अनेकता में एकता
राम मंदिर – 48 फीसदी लोगों की राय थी कि राम मंदिर के निर्माण से हिंदूओं की पहचान निखर कर आएगी. ये पूछे जाने पर कि क्या राम मंदिर से हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दूरी बढ़ेगी, 27 फीसदी लोगों ने माना ऐसा नहीं है बल्कि इससे और सद्भाव दोनों धर्मों के बीच कायम होगा. वहीं, 24 फीसदी लोगों ने कलह बढ़ने और 26 फीसदी ने कोई अंतर नहीं पड़ने की बात की.
अनेकता में एकता – एक सवाल हाल के वक्त में सामाजिक-राजनीतिक बहस के बीचोंबीच आ खड़ा हो गया है. सवाल है कि ये देश किसका है, क्या केवल हिंदुओं का या सबका. लोकनीति-सीएसडीएस का सर्वे अनेकता में एकता की भारतीय समझ पर नए सिरे से मुहर लगाता है.
सर्वेक्षण में शामिल होने वाले 79 फीसदी लोगों का मानना है ये देश जितना हिंदुओं का है, उतना ही मुसलमानों और दूसरे धर्म के लोगों का भी है. केवल 11 फीसदी लोग ऐसे थे जो भारत को केवल हिंदूओं का देश मानते हैं.
ऐसा लगता है कवि और राजनेता उदय प्रताप सिहं के बात से लोग सौ फीसदी सहमत हैं कि – न मेरा है न तेरा है ये हिन्दुस्तान सबका है, नहीं समझी गई ये बात तो नुकसान सबका है.
- मोदी सरकार फिर एक बार?
PM की पहली पसंद – 48 फीसदी के करीब सर्वे में शामिल लोगों की प्रधानमंत्री की पहली पसंद नरेंद्र मोदी जबकि 27 प्रतिशत की पसंद राहुल गांधी नजर आए.
आज चुनाव हुए तो – सर्वे करते हुए लोगों से पूछा गया कि आज चुनाव हुए तो किसे वोट देंगे. 34 फीसदी लोगों की पसंद कांग्रेस या फिर उसके सहयोगी दल थे जबकि 46 फीसदी लोगों ने भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों को वोट देने की बात की.
मोदी सरकार –
पसंदीदा काम – अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण को लोग नरेंद्र मोदी सरकार का सबसे पसंद किया जाने वाला काम मानते हैं. ऐसे लोगों की संख्या सर्वे में 23 फीसदी निकल कर आई.
वहीं दूसरा सबसे लोकप्रिय फैसला रोजगार को लेकर काम (9 फीसदी) और गरीबी खत्म करने को लेकर फैसले और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की बदलती छवि को 8-8 फीसदी लोग सरकार का अच्छा काम मानते हैं.
जो पसंद नहीं – ये पूछे जाने पर कि क्या आपको मोदी सरकार के कामकाज में पसंद नहीं आया, लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे में शामिल लोगों का मानना था कि बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी इस सरकार के अंतर्गत सबसे अनचाहे काम रहे.
महंगाई और नौकरी के मोर्चे पर मोदी सरकार का काम 24-24 फीसदी लोगों को, कुल मिलाकर कहें तो 48 फीसदी को रास नहीं आया.
निष्कर्ष – लोकनीति-सीएसडीएस के प्री-पोल सर्वे का मोटामाटी निचोड़ है कि बेरोजगारी और महंगाई का सवाल भारतीय मतदाताओं की सबसे बड़ी और प्रमुख चिंताओं में शुमार है पर नरेंद्र मोदी का मजबूत नेतृत्व, उनकी पार्टी का हिंदुत्त्व