राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत का बड़ा बयान सामने आया है. उन्होंने कहा कि धर्म के दो मार्ग है, धर्म यानी पूजा नहीं, धर्म समाज को जोड़ कर रखने वाला, अच्छा रखने वाला, उन्नति करने वाला, जो अनुशासन है उसको धर्म कहते हैं. संघ प्रमुख ने कहा कि धर्म दो मार्ग से होकर गुजरता है. इसमें पहला प्रवृत्ति और दूसरा निवृत्ति है. संघ प्रमुख मोहन भागवत शुक्रवार को मुंबई में स्वरस्वामिनी आशा नामक पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने कहा कि अनुशासन को धर्म कहते हैं. धर्म उसे कहते हैं तो जो समाज को जोड़कर और लोगों को अच्छा रखता है. धर्म का मतलब पूजा नहीं होता है. इससे पहले चुनाव को लेकर की थी टिप्पणी इससे पहले जून की शुरुआत में आरएसएस कार्यकर्ता विकास वर्ग-द्वितीय समापन समारोह में भागवत ने आम चुनाव को लेकर कई बातें कही थीं. नागपुर के कार्यक्रम में संघ प्रमुख ने कहा था कि ये (चुनाव) देश के प्रजातंत्र में हर 5 साल में होने वाली घटना है. अपने देश के संचालन के लिए कुछ निर्धारण करने वाला महत्वपूर्ण प्रसंग है. मगर उस पर ही चर्चा करते रहें, इतना महत्वपूर्ण क्यों है. समाज ने अपना मत दे दिया है. उसके हिसाब से सब कुछ होगा. क्यों और कैसे हुआ? हम संघ के लोग इसमें नहीं पड़ते. सहमति बने इसलिए संसद बनती है: भागवत मोहन भागवत ने आगे कहा था कि संसद क्यों है और उसमें दो पक्ष क्यों हैं? ये इसलिए हैं क्योंकि एक सिक्के के दो पहलू होते हैं. सहमति बने इसलिए संसद बनती है. चुनाव में जिस तरह से एक-दूसरे को लताड़ा गया और लोग बटेंगे, इसका भी ख्याल नहीं रखा गया. बेवजह संघ जैसे संगठन को घसीटा गया. टेक्नोलॉजी का सहारा लेकर चुनाव में झूठी बातें परोसी गई.