उत्तर प्रदेश में आए लोकसभा के चुनावी नतीजों ने सपा को एक नई सियासी उम्मीद दिखा दिया है. सूबे की 80 लोकसभा सीटों में से बीजेपी 33 और सपा 37 सीटें जीतने में कामयाब रही. ऐसे में कन्नौज से लोकसभा सांसद चुने जाने के बाद अखिलेश यादव ने लखनऊ के बजाय दिल्ली को सियासी मैदान चुन लिया है. उनके इस्तीफे के बाद करहल विधानसभा सीट खाली हो गई है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि करहल विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में अखिलेश यादव का सियासी ‘भरत’ सपा में कौन होगा?
अखिलेश यादव 2022 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा था. मैनपुरी की करहल सीट से विधायक चुने गए थे, लेकिन अब कन्नौज से सांसद बनने के बाद उन्होंने विधानसभा सीट छोड़ दी है. अखिलेश के इस्तीफे के बाद करहल विधानसभा उपचुनाव में सपा के उम्मीदवारों की दावेदारी भी तेज हो गई है. जातिगत गणित से हर बार करहल की सियासत सपा के अनुकूल रही. इसी के चलते ही अखिलेश यादव ने 2022 में अपने लिए यह सीट चुनी थी और अब उनके बाद करहल उपचुनाव के लिए सपा उम्मीदवार को लेकर कयास लगाए जाने लगे हैं.
यादव बहुल है करहल विधानसभा सीट
मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा सीट यादव बहुल है. यहां सर्वाधिक सवा लाख यादव मतदाता हैं. ऐसे में यहां सपा हमेशा जातिगत कार्ड ही खेलती रही. यादव उम्मीदवार को करहल के सियासी मैदान में उतारकर सपा यहां जीत हासिल करती रही. ऐसे में एक बात साफतौर पर तय है कि अखिलेश यादव अपनी जगह किसी न किसी यादव समुदाय के नेता को ही करहल सीट से प्रत्याशी बनाने का दांव चलेंगे. करहल उपचुनाव के लिए सपा उम्मीदवारी के लिए रेस में कई नाम शामिल हैं.
कन्नौज लोकसभा सीट से इस बार अखिलेश यादव के प्रत्याशी बनने से पहले सपा ने मैनपुरी के पूर्व सांसद तेज प्रताप यादव को प्रत्याशी बनाया था. तेज प्रताप उनके चचेरे भतीजे हैं और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के दमाद हैं. लोकसभा चुनाव में कन्नौज सीट से तेज प्रताप की जगह अखिलेश खुद मैदान में उतर गए थे. ऐसे में मैनपुरी के पूर्व सांसद तेज प्रताप यादव को करहल से प्रत्याशी बनाने का दांव सपा चल सकती है.
तेज प्रताप यादव के अलावा करहल से उपचुनाव लड़ने वालों के दावेदारों में पूर्व विधायक सोबरन यादव का नाम भी शामिल है. 2022 के चुनाव में सोबरन यादव ने अखिलेश यादव के चुनाव लड़ने के लिए करहल सीट सीट छोड़ दी थी. 2002 से लेकर 2022 तक सोबरन यादव करहल विधानसभा सीट से विधायक रहे हैं. 2002 में सोबरन ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़कर विधायक बने थे और सपा को हराया था, लेकिन बाद में सपा का दामन थाम लिया. इसीलिए अब अखिलेश यादव ने करहल सीट छोड़ी है तो उनके उपचुनाव लड़ने के कयास लगाए जाने लगे हैं.
उपचुनाव के ट्रेंड बढ़ा सकते हैं सपा के टेशन
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने सियासी इतिहास में तीन बार लोकसभा सीट से इस्तीफा दिया है और एक बार विधानसभा सीट छोड़ी है. साल 2000 में अखिलेश ने कन्नौज लोकसभा सीट पर उपचुनाव के जरिए अपनी सियासी सफर की शुरुआत की थी. 2009 में कन्नौज और फिरोजाबाद दो लोकसभा सीट से अखिलेश यादव ने चुनाव लड़ा था और दोनों सीटों से जीतने में सफल रहे. इसके बाद उन्होंने फिरोजाबाद सीट से छोड़ी थी, जहां से डिंपल यादव उपचुनाव लड़ी थी. कांग्रेस के राज बब्बर से डिंपल यादव उपचुनाव हार गई थी.
अखिलेश यादव ने 2012 में यूपी के मुख्यमंत्री बनने के बाद कन्नौज लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद डिंपल यादव उपचुनाव में निर्विरोध निर्वाचित हुई थीं. अखिलेश यादव ने तीसरी बार इस्तीफा 2022 के चुनाव के बाद आजमगढ़ लोकसभा सीट से दिया था. 2019 में अखिलेश आजमगढ़ लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे, लेकिन 2022 में करहल से विधायक बनने के बाद लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद आजमगढ़ से उपचुनाव में सपा के टिकट पर धर्मेंद्र यादव चुनाव लड़े थे, लेकिन बीजेपी के दिनेश लाल निरहुआ के हाथों हार गए थे. अब चौथी बार अखिलेश ने करहल सीट से इस्तीफा दिया है.
सपा प्रमुख अखिलेश यादल के तीन बार सीट छोड़ने के बाद एक बार ही सपा जीत सकी है और उसे दो हार मूंह देखना पड़ा है. सपा को जीत 2012 में मिली है, उस समय अखिलेश यादव यूप के मुख्यमंत्री थे. सपा जब सत्ता में नहीं थी और अखिलेश ने सीट छोड़ी तो उनके सियासी वारिस के तौर पर उपचुनाव लड़ने वाले कैंडिडेट को मात मिली है. यह ट्रेंड सपा के लिए टेंशन जरूर बढ़ा रहे हैं, लेकिन करहल के सियासी समीकरण उसके पक्ष में माने जा रहे हैं.
जानें, करहल का सियासी समीकरण
करहल विधानसभा सीट पर करीब तीन लाख मतदाता है, जिसमें सबसे बड़ी यादव समुदाय की है. सवा लाख के करीब यादव हैं और उसके बाद शाक्य समुदाय के वोटर 35 हजार है. इसके बाद पाल और ठाकुर समुदाय के 30-30 हजार वोट हैं. दलित समुदाय करीब 40 हजार है तो मुस्लिम 20 हजार, ब्राह्मण 15 हजार, लोध और वैश्य 15-15 हजार हैं.
2022 के विधानसबा चुनाव में करहल के सियासी समीकरण को देखते हुए बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को अखिलेश यादव के खिलाफ उतारा था. एसपी सिंह बघेल को 67 हजार 504 मतों से हराया था. इस सीट पर बसपा के उम्मीदवार कुलदीप नारायण को 15 हजार 701 मत मिले थे. अखिलेश ने 1 लाख 48 हजार 196 वोट हासिल कर के जीत दर्ज की थी.
करहल में दूसरे स्थान पर शाक्य मतदाता हैं तो वहीं बघेल और क्षत्रिय तीसरे स्थान पर हैं. शाक्य और क्षत्रिय मतदाता हमेशा से ही भाजपा का कोर वोटर माना जाता रहा है जबकि बघेल प्रत्याशी आने से बघेल मतदाताओं पर भी भाजपा की पकड़ बढ़ने की संभावना थी. इसके साथ ही ब्राह्मण और लोधी मतदाताओं का समर्थन भी भाजपा जुटाने की कोशिश की थी, लेकिन कामयाब नहीं रही. सपा 1993 से लगातार यह सीट जीतती रही है, लेकिन 2002 में बीजेपी के टिकट पर सोबरन यादव के उतरने के बाद मात मिली थी. हालांकि, उसके बाद में वह सपा में शामिल हो गए, तब से सपा का ही कब्जा है.
1956 में अस्तित्व में आई थी करहल विधानसभा सीट
साल 1956 के परिसीमन के बाद करहल विधानसभा सीट बनी थी. 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के पहलवान नत्थू सिंह यादव पहले विधायक बने थे. उसके बाद 1962, 1967 और 1969 में स्वतंत्र पाटी, 1974 में भारतीय क्रांति दल और 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर नत्थू सिंह, 1980 में कांग्रेस के शिवमंगल सिंह ने जीत हासिल की थी. सियासी समीकरण के चलते 1985 से 1996 तक बाबूराम यादव ने इस सीट से चुनाव जीता था
बाबूराम यादव ने तीन चुनाव जनता दल के टिकट से जीते थे, लेकिन 1993 में वह सपा में शामिल हो गए थे. उसके बाद वह दो बार विधायक रहे, लेकिन 2002 में उन्हें भाजपा के सोबरन सिंह से हार का सामना करना पड़ा था. सोबरन यादव ने 2002 से लेकर 2017 तक लगातार विधानसभा का चुनाव जीतते रहे और 2022 में अखिलेश यादव ने सीट छोड़ दी. अखिलेश यादव विधायक बने और अब उनके सीट छोड़ने के बाद होने वाले उपचुनाव में सियासी वारिस की तलाश शुरू हो गई है?