‘हेलो…आपका बेटा रेप केस में फंसा है. हमने उसे अरेस्ट कर लिया है और जेल भेज रहे हैं. यदि उसे छुड़ाना है तो तुरंत इस नंबर पर बात कर लीजिए.’ क्या इस तरह के फोन कॉल आपको भी तो नहीं आ रहे? यदि आ रहे हों तो आपको सावधान हो जाने की जरूरत है. यदि आपने फोन करने वाले की बात मान ली तो आपका एकाउंट तो खाली हो ही जाएगा, बहुत संभव है कि आपको कर्ज भी मांगने की जरूरत पड़ जाए. जी हां, इस तरह से ठगी की घटनाएं देश में खूब हो रही हैं. केवल गांव देहात ही नहीं, दिल्ली एनसीआर और देश के अन्य तमाम बड़े शहरों में भी रोज इस तरह के दर्जनों मामले दर्ज हो रहे हैं.
इन वारदातों में सबकुछ लुटाने के बाद पीड़ित पुलिस के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन पुलिस भी मुकदमा दर्ज करने के अलावा कुछ नहीं कर पा रही है. ताजा मामला उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ का है. दो दिन पहले यहां सिधारी थाना क्षेत्र में रहने वाली एक महिला को किसी जालसाज ने उनके बेटे के मोबाइल नंबर से फोन किया था. उसने खुद को लखनऊ पुलिस से बताया. कहा कि उनका बेटा लखनऊ में एक लड़की के साथ रेप के मामले में पकड़ा गया है और उसे जेल भेजा जा रहा है. इतना सुनते ही महिला डर गई. इसके बाद जालसाज ने महिला को एक मोबाइल नंबर बताते हुए कहा कि घबराने की बात नहीं है. यह डीएसपी साहब का नंबर पर है, इस पर बात करके लड़के को छुड़वा सकते हैं.
डीएसपी बनकर ठग लिए 80 हजार रुपये
पीड़ित महिला ने जब उस नंबर पर बात किया तो उससे 80 हजार रुपये की मांग की गई. महिला ने तुरंत अपने खाते से आरोपी को 80 हजार रुपये ट्रांसफर कर दिए. इस दौरान महिला को शक तो हुआ, उसने अपने बेटे के मोबाइल नंबर पर फोन भी किया, लेकिन फोन नहीं लगा. इससे महिला को आरोपी के ऊपर विश्वास हो गया. इतने में आरोपी ने दोबारा फोन किया. बताया कि वह तो उनके बेटे को छोड़ना चाहते हैं, लेकिन लड़की के घर वाले हंगामा कर रहे हैं. उन्हें मुआवजा देना होगा. इस प्रकार जालसाजों ने पहले सात लाख और फिर दो लाख रुपये और ले लिए.
मीडिया मैनेज करने के नाम पर भी लिए 3 लाख रुपये
इधर, पीड़ित महिला को उम्मीद थी कि अब उनका बेटा छूट जाएगा, लेकिन जालसाज ने फिर उन्हें फोन कर दिया. इस बार कहा कि मीडिया वाले इस मामले को उछाल रहे हैं. यदि उनका मुंह बंद नहीं किया तो पुलिस भी कुछ नहीं कर पाएगी. इस प्रकार मीडिया को मैनेज करने के नाम पर जालसाजों ने तीन लाख और ले लिए. इतने में पीड़ित महिला की बात उसके बेटे के साथ हो गई. पता चला कि उसका मोबाइल फोन हैक हो गया था. सारा माजरा समझने के बाद पीड़िता ने पुलिस में शिकायत दी, लेकिन पुलिस भी पहले इधर से उधर, टरकाने की कोशिश की. बाद में एसपी आजमगढ़ के हस्तक्षेप से मामला दर्ज कर जांच शुरू किया जा सका है.
उत्तर प्रदेश में रोज आ रहे हैं 146 केस
इस तरह से ठगी का आजमगढ़ में यह कोई इकलौता मामला नहीं है. जिले में रोज इस तरह की दो चार शिकायतें पुलिस के पास आ रहीं हैं. वहीं उत्तर प्रदेश में रोज दर्ज हो रही इस तरह की शिकायतों की संख्या औसतन 146 है. कुछ यही स्थिति हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र आदि राज्यों की भी है. पुलिस इन शिकायतों को दर्ज तो कर रही है, लेकिन जालसाजों की गिरफ्तारी और ठगी गई रकम की रिकवरी का औसत नगण्य है.
सीमा विवाद में उलझी पुलिस
इस तरह के मामलों में पुलिस अक्सर विफल साबित हो रही है. इसकी मुख्य वजह सीमा विवाद है. किसी भी थाने की पुलिस को अपनी सीमा से बाहर जाने के लिए संबंधित जिले के एसपी की अनुमति की जरूरत होती है. इसी प्रकार जिले की सीमा से बाहर जाने के लिए आईजी की और राज्य की सीमा से बाहर जाने के लिए प्रदेश स्तर पर अनुमति लेने की जरूरत होती है. ऐसे में किसी तरह के पचड़े से बचने के लिए पुलिस पहले तो इस तरह के मामलों को टरकाने की कोशिश करती है. कहीं से दबाव आने पर पुलिस मुकदमा दर्ज भी करती है तो कार्रवाई के नाम पर पीड़ित को इतना भर बता दिया जाता है कि ठगी किसी राज्य में बैठकर की गई है..
साइबर क्राइम कंट्रोल रूम भी कारगर नहीं
इस तरह के मामलों से निपटने के लिए पांच साल पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नेशनल स्तर पर साइबर क्राइम कंट्रोल रूम 1930 का गठन किया गया था. व्यवस्था दी गई कि इस नंबर पर फोन कर सभी तरह के साइबर क्राइम रिपोर्ट किए जा सकेंगे. इसके बाद जिस थाना क्षेत्र में वारदात हुई है वहां की पुलिस और जिस जगह से वारदात हुई है, वहां की पुलिस मिलकर मामले का निस्तारण करेगी. लेकिन इसमें भी दिक्कत यह है कि 20 बार फोन करने पर एक बार नंबर कनेक्ट होता है और उसमें भी कई तरह की औपचारिकता बता दी जाती है. यदि पीड़ित सभी औपचारिकता पूरी भी कर लेता है तो समन्वय की कमी की वजह से इस तरह के मामले सालो साल लटके रह जाते हैं.
क्या कहते हैं अफसर
ताजा मामले में TV9 भारतवर्ष ने आजमगढ़ पुलिस के एसपी अनुराग आर्य IPS से बात की. उन्होंने कहा कि इस तरह की शिकायतों के निस्तारण के लिए जिला स्तर पर साइबर सेल गठित किया गया है. शिकायत मिलने पर यहां तत्काल मामला दर्ज करने और साइबर क्राइम कंट्रोल रूम की मदद से मामले को ट्रैस करने की कोशिश की जाती है. इस मामले में भी इसी प्रक्रिया को अपनाया जा रहा है. आईपीएस अनुराग आर्य के मुताबिक गोल्डन टाइम में सूचना मिलने पर पीड़ितों के पैसे वापस भी कराए जा रहे हैं.
अनपढ़ कर रहे पढ़े-लिखों से ठगी
साइबर क्राइम के मामले देख रहे पुलिस अफसरों के मुताबिक इस तरह की वारदातों को अंजाम दे रहे ज्यादातर आरोपी या तो अनपढ़ हैं या मुश्किल से 10वीं तक की पढ़ाई की है. पिछले दिनों हुए खुलासे के दौरान पता चला था कि इस तरह की वारदात करने वालों में नाबालिग लड़कों की तादात बहुत ज्यादा है. पुलिस अधिकारियों के मुताबिक इस तरह की ठगी की वारदात झारखंड के जामताड़ा, हरियाणा और राजस्थान के मेवात के अलावा बिहार के कई इलाकों में रह रहे जालसाज कर रहे हैं.
एक सिम से एक ठगी
जालसाज एक मोबाइल नंबर का इस्तेमाल एक वारदात के लिए करते हैं. हालांकि इस नंबर से वह रैंडम तरीके से कॉल करते हैं और जैसे ही कोई व्यक्ति उनके झांसे में आ जाता तो ये ठगी की वारदात को अंजाम देने के बाद सिमकार्ड को तोड़ कर फेंक देते हैं. इसके बाद अगले शिकार की तलाश और ठगी की वारदात के लिए वह दूसरे सिमकार्ड का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे हालात में पुलिस उनकी सही लोकेशन को जल्दी से ट्रैस नहीं कर पाती. जालसाज सिमकार्ड हासिल करने के लिए फर्जी पहचान पत्रों का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में जब कभी लोकेशन ट्रैस हो भी जाती है तो पुलिस आरोपियों तक नहीं पहुंच पाती.
क्या ना करें
अननोन नंबर से वाट्सऐप कॉल रिसीव ना करें
वाट्सऐप पर किसी अपरिचित से बात ना करें
किसी भी अपरिचित व्यक्ति द्वारा फोन पर बताई जानकारी पर भरोसा ना करें
किसी अपरिचित व्यक्ति के कहने पर रुपयों का ट्रांजेक्शन ना करें
अपने बैंक या यूपीआई आईडी को हमेशा मजबूत पासवर्ड से लॉक करें
अपना पासवर्ड अपने परिजनों के साथ भी शेयर ना करें
क्या करें
इस तरह का फोन कॉल आने पर तत्काल पुलिस कंट्रोल रूम 112 या साइबर क्राइम कंट्रोल रूम 1930 पर सूचित करें
यदि आप घर से बाहर रहते हैं तो अपने दो-तीन मित्रों के नंबर इमरजेंसी के लिए परिजनों को जरूर लिखाएं
यदि कोई अपरिचित व्यक्ति इस तरह की जानकारी देता है तो पहले उसका सत्यापन करें
यदि आप जालसाजों के झांसे में आकर गलती से पैसा ट्रांसफर भी कर दिए तो घबराएं नहीं, तत्काल पुलिस को सूचित करें
3 घंटे के अंदर पुलिस को सूचना देने पर रकम सुरक्षित होने के चांस 80 से 100 फीसदी तक होता है.
3 घंटे से 12 घंटे के अंदर पुलिस को सूचना देने पर रकम वापसी के चांस घटकर 30 फीसदी रह जाते हैं.
12 घंटे के बाद पुलिस को सूचित करने से रकम वापसी की संभावना ना के बराबर होती है.
देश में तीन साल के साइबर क्राइम के आंकड़े