दिल्ली के शराब घोटाला मामले में मनी लॉन्ड्रिंग की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशायल (ED) ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को एक बार फिर से नोटिस भेजा है. ईडी ने केजरीवाल को 21 दिसंबर को जांच अधिकारी के सामने पेश होने के लिए कहा है. इससे पहले 2 नवंबर को भी ईडी ने केजरीवाल को नोटिस भेजकर पूछताछ के लिए बुलाया था, लेकिन वो जांच अधिकारी के सामने पेश नहीं हुए थे.
शराब घोटाला मामले में आम आदमी पार्टी के कई बड़े नेता सलाखों के पीछे हैं. इन नेताओं में दिल्ली के डिप्टी सीएम रह चुके मनीष सिसोदिया के साथ-साथ पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह भी फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं. इन दोनों नेताओं को कोर्ट से भी राहत नहीं मिल पाई है. इस मामले में अब तक 22 से अधिक गिरफ्तारियां हो चुकी हैं जबकि 3 आरोपी सरकार गवाह बन चुके हैं.
दिल्ली में पिछले साल यानी 2022 के जुलाई महीने में शराब घोटाला उजागर हुआ था. दिल्ली की नई आबकारी नीति में यह घोटाला उस समय सामने आया जब दिल्ली के चीफ सेक्रेटरी नरेश कुमार ने अपनी जांच रिपोर्ट उपराज्यपाल वीके सक्सेना को सौंपी थी. चीफ सेक्रेटरी की रिपोर्ट के बाद उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश की. जांच शुरू होते ही घोटाले की परतें खुलनी शुरू हो गई.
हो सकती हैं कुछ और गिरफ्तारियां
सीबीआई के साथ-साथ जांच में ईडी की भी एंट्री हो गई और वो मनी लॉन्ड्रिंग की जांच करने लगी. माना जा रहा है कि ईडी इस मामले में कुछ और गिरफ्तारियां भी कर सकती है. हालांकि, यह देखना हो कि ईडी की ओर से दोबारा नोटिस भेजे जाने के बाद अरविंद केजरीवाल जांच एजेंसी के सामने पेश होते हैं या नहीं.
आम आदमी पार्टी ने बीजेपी पर बोला हमला
ईडी की ओर से अरविंद केजरीवाल को नोटिस भेजे जाने पर आप सांसद संदीप पाठक ने बीजेपी पर हमला बोला है. उन्होंने कहा कि बीजेपी अरविंद केजरीवाल से डरती है. ये केस पूरी तरह से फर्जी है. इस केस में कुछ भी नहीं है. पीएम मोदी से जब कोई सवाल करता है तो तो वो उसे गिरफ्तार करवाते हैं. इसलिए उन्हें अरविंद केजरीवाल से सबसे ज्यादा डर लगता है. अगर कोई उनके सामने सरेंडर कर देता है तो फिर वो उसे क्लीन चिट दे देते हैं. उन्होंने कहा कि केजरीवाल मंगलवार को इंडिया गठबंधन की होने वाली बैठक में भी शामिल होंगे.
क्या है शराब घोटाला?
दरअसल, दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने 2021 के नवंबर महीने में राज्य में नई शराब नीति लागू की थी. नीति के तहत दिल्ली को 32 जोन में बाटा गया था. नियम के मुताबिक हर जोन में शराब की 27 दुकाने खोली जानी थी. इसके साथ-साथ सरकार ने अपनी नीति के अनुसार सभी शराब दुकानों को प्राइवेट कर दिया था.
केजरीवाल सरकार ने इसके पीछे तर्क दिया था कि दुकानों को प्राइवेट करने से दिल्ली को तकरीबन 3500 करोड़ रुपए का फायदा होगा, लेकिन सरकार का दांव उस समय उल्टा पड़ गया जब शराब की बिक्री बढ़ने के बाद भी राजस्व का नुकसान हुआ. इसके बाद नीति पर सवाल उठने लगे और धीरे-धीरे जांच के दायरे में आ गई.