सुप्रीम कोर्ट ने एक रेप पीड़िता को अबॉर्शन की इजाजत दे दी है. बड़ी बात यह है कि पीड़िता 27 हफ्ते की गर्भवती थी. सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता को यह कहकर अबॉर्शन कराने की इजाजत कि वह इस प्रक्रिया के लिए मेडिकली फिट है. साथ ही इससे उसके गर्भधारण करने की क्षमता पर कोई साइड इफेक्ट नहीं होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में गर्भधारण सेपीड़ितों को आघात भी हो सकता है. वह तनाव का शिकार भी हो जाती हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय समाज में जब कोई शादीशुदा महिला गर्भ धारण करती है तो परिवार और दोस्तों के लिए यह बड़ा खुशी का पल होता है, लेकिन इसके विपरीत जब यौन उत्पीड़न के मामलों में गर्भधारण होता है तो इससे गर्भवती महिलाओं का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बुरी तरह से प्रभावित हो सकता है, क्योंकि तब गर्भधार स्वैच्छा के आधार पर नहीं होता है.
मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर मिली ऑबर्शन की इजाजत
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि चर्चा और मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर हम रेप पीड़िता को अबॉर्शन कराने की इजाजत देते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि वह कल अस्पताल में मौजूद रहे ताकि अबॉर्शन की प्रक्रिया शुरू की जा सके.
अगर भ्रूण जिंदा मिलता है तो…
गौर करने वाली बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर भ्रूण जिंदा मिलता है तो अस्पताल यह सुनिश्चित करे कि भ्रूण को जीवित रखने के लिए पीड़िता को जरूरी मदद दी जाए. बच्चा अगर जिंदा रहता है तो राज्य यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए कि बच्चे को कानून के मुताबिक गोद लिया जाए.
क्या है MTP अधिनियम?
बता दें कि गर्भ का चिकित्सकीय समापन (MTP) अधिनियम के तहत, शादीशुदा महिलाओं और रेप पीड़िताओं सहित विशेष श्रेणियों, दिव्यांग और नाबालिगों के लिए अबॉर्शन की ऊपरी सीमा 24 सप्ताह है. स्पेशल मामलों में अदालतें मेडिकल आधार पर फैसला सुनाती हैं.