उत्तर प्रदेश की 10 राज्यसभा सीट पर 11 उम्मीदवार मैदान में हैं. राज्यसभा चुनाव के लिए मंगलवार को सुबह 9 बजे से मतदान शुरू होगा और शाम तक रिजल्ट घोषित कर दिए जाएंगे. बीजेपी के आठ और सपा के तीन उम्मीदवार मैदान में हैं. विधायकों की संख्या के आधार पर बीजेपी की सात और सपा की दो राज्यसभा सीट पर जीत तय है. इस तरह से दसवीं सीट के लिए बीजेपी और सपा के बीच मुकाबला है, जिसके लिए दोनों ही पार्टियों जोड़-तोड़ में जुटी है. लोकसभा चुनाव से पहले हो रहे राज्यसभा चुनाव के जरिए दोनों ही पार्टियां सियासी संदेश देने की कवायद में हैं.
राज्यसभा की 10वीं सीट के लिए सपा और बीजेपी दोनों ही गुणा-गणित बैठाने में जुटे हैं. सोमवार की रात सपा ने ‘डिनर डिप्लोमेसी’ के जरिए इस लक्ष्य को साधने में ताकत लगाई है ताकि अपनी तीसरी राज्यसभा सीट जीत सके, तो बीजेपी ने एनडीए विधायकों की बैठक कर अपनी आठवीं सीट जीतने का जतन किया. हालांकि, एनडीए की बैठक में सुभासपा के दो विधायक नहीं पहुंचे, तो सपा के डिनर में 8 विधायक नहीं शिरकत किया. इससे दोनों ही खेमे की टेंशन बढ़ गई है. बीजेपी को अपना आठवां और सपा को अपना तीसरा उम्मीदवार जिताने के लिए मशक्कत करनी पड़ेगी.
राज्यसभा चुनाव में सपा-बीजेपी कैंडिडेट
सपा से जया बच्चन, रामजीलाल सुमन और आलोक रंजन मैदान में हैं. वहीं, बीजेपी की ओर से आरपीएन सिंह, चौधरी तेजवीर सिंह, अमरपाल मौर्य, संगीता बलवंत, सुधांशु त्रिवेदी, साधना सिंह, नवीन जैन और संजय सेठ मैदान में हैं. वरीयता के आधार पर बीजेपी ने संजय सेठ को अपना आठवां उम्मीदवार बनाकर रखा है, लेकिन सपा ने अभी वरीयता के आधार पर तीसरे कैंडिडेट का नाम सार्वजनिक नहीं किया. वोटिंग से पहले विधानमंडल के कक्ष में होने वाली विधायकों की बैठक में अखिलेश यादव वरीयता के आधार पर राज्यसभा उम्मीदवारों के नाम बताएंगे.
सपा-बीजेपी को कितने वोट की जरूरत
राज्यसभा के एक उम्मीदवार को जीतने के लिए 37 विधायकों के प्राथमिक वोटों की जरूरत होगी. सपा के पास 108 विधायक हैं. पार्टी दो उम्मीदवारों को जिताने की स्थिति में है, जबकि तीसरे उम्मीदवार को जीतने के लिए तीन प्रथम वरीयता के वोटों की जरूरत है. बीजेपी अपने एनडीए के सहयोगियों के सहारे सात राज्यसभा सदस्यों को जिताने में कामयाब है, लेकिन आठवें उम्मीदवार के लिए पार्टी के पास प्रथम वरीयता के 29 वोट ही हैं. ऐसे में बीजेपी को अपने आठवें उम्मीदवार को जिताने के लिए प्रथम वरीयता के आठ वोट की जरूरत है.
राज्यसभा चुनाव का सियासी समीकरण
राज्यसभा चुनाव में वोटिंग का फॉर्मूला समझ लेते हैं. एक राज्यसभा सीट के लिए यूपी में 37 विधायकों के समर्थन की जरूरत है. यूपी में वैसे तो विधानसभा सीटों की संख्या 403 है, लेकिन मौजूदा समय में 4 सीटें खाली हैं. इस तरह से 399 विधायक हैं. सपा को अपने तीनों राज्यसभा सीटें जीतने के लिए 111 विधायक का समर्थन चाहिए, जबकि बीजेपी को 296 विधायक का वोट की जरूरत है. सपा और बीजेपी दोनों के पास ये नंबर गेम नहीं है, जिसके चलते दोनों की नजर एक दूसरे के विधायकों पर है.
दरअसल, विधानसभा में बीजेपी के 252 विधायक हैं. जबकि, बाकी 34 विधायक उसकी सहयोगी पार्टियों यानी एनडीए के हैं. दो विधायक राजा भैया की पार्टी जनसत्ता दल के भी हैं. इसके अलावा एक विधायक बसपा का है. अगर इन्हें जोड़ते हैं तो फिर बीजेपी के पास 289 विधायकों का समर्थन हो रहा है. बीजेपी को अपने आठवें प्रत्याशी को जिताने के लिए कुल 296 वोट चाहिए, जिसके चलते उनके पास 8 विधायक कम पड़ रहे हैं.
वहीं, सपा को अपने तीनों उम्मीदवार जिताने के लिए 111 वोटों की जरूरत है. सपा के पास अपने 108 विधायक हैं और कांग्रेस के 2 विधायक है. इस तरह से यह आंकड़ा 110 का पहुंचता है, लेकिन दिक्कत यह है कि इरफान सोलंकी और रमाकांत यादव जेल में होने के चलते वोटिंग में हिस्सा नहीं ले पाएंगे. इस तरह सपा के पास 108 विधायकों का समर्थन ही मिलता दिख रहा है, जिसके चलते उन्हें अपने तीसरे उम्मीदवार को जिताने के लिए तीन अतिरिक्त वोट चाहिए होंगे. सपा के एक विधायक इंद्रजीत सरोज बीमार है, जिसके चलते वो वोटिंग में हिस्सा लेंगे कि नहीं, इस पर भी संशय है.
सपा के साथ क्या चुनाव में खेला होगा
सपा की टेंशन तब और भी बढ़ गई, जब सोमवार रात अखिलेश यादव की डिनर में पार्टी के आठ विधायक नहीं पहुंचे. बैठक में सपा विधायक राकेश पांडेय, पूजा पाल, अभय सिंह, राकेश प्रताप सिंह, मनोज पांडेय, विनोद चतुर्वेदी, महाराजी प्रजापति और पल्लवी पटेल नहीं पहुंची. पल्लवी पटेल पहले ही कह चुकी थीं कि सपा के राज्यसभा प्रत्याशी पीडीए के अनुरूप नहीं हैं, जिसके चलते सपा प्रत्याशियों को वोट नहीं करेंगी. हालांकि, उन्हें बाद में मना लिया गया था, लेकिन बैठक में शिरकत न करके उन्होंने सपा की चिंता बढ़ा दी है. सपा पहले से ही तीन वोट की कमी को पूरा करने की जुगत में थी, लेकिन अब तक उसके कई विधायकों ने टेंशन बढ़ा दी है.
रितेश पांडेय बसपा छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं, जिसके चलते उनके पिता राकेश पांडेय पर संशय बना हुआ है. राकेश प्रताप सिंह और मनोज पांडेय सपा के विधायक होते हुए भी बीजेपी के सुर में सुर मिलाते हुए नजर आए हैं. सोमवार रात सपा की डिनर पार्टी में भी शामिल नहीं हुए हैं, जिसकी वजह से ही कशमकश की स्थिति बनी हुई है. अभय सिंह को राजा भैया का करीबी माना जाता है. राजा भैया खुलकर बीजेपी के साथ खड़े हैं, जिसके चलते अभय सिंह पर भी संशय बना हुआ है.
बीजेपी खेमे में भी क्या होगी सेंधमारी
बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए में भी सेंधमारी का खतरा बना हुआ है. सोमवार को बीजेपी ने एनडीए विधायकों की बैठक की थी, जिसमें ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा के दो विधायक शामिल नहीं हुए. इसके अलावा एक विधायक जेल में है. इसी तरह जयंत चौधरी के अब बीजेपी के समर्थन में उतरने से सपा का खेल जरूर बिगड़ा है, लेकिन आरएलडी के 9 विधायकों में से तीन सपा नेता हैं, जिन्होंने आरएलडी के सिंबल पर चुनाव लड़ा था. सपा इस उम्मीद में है कि वो राज्यसभा चुनाव में उन्हें वोटिंग करेंगे, लेकिन जयंत चौधरी उन्हें साधे रखने की हर संभव कोशिश में जुटे हैं. ऐसे में देखना है कि राज्यसभा चुनाव में सपा और बीजेपी के हो रहे शह मात के खेल में कौन बाजी मारता है?