क्या है लोकसभा में किसी सदस्य के भाषण के नियम,राहुल गांधी और ओम बिरला के बीच छिड़ी तीखी बहस; सदन में मचा हंगामा

बजट भाषण पर चर्चा के दौरान आज दोपहर जब नेता विपक्ष राहुल गांधी जब भाषण दे रहे थे, तब इसमें लगातार टोकाटोकी हो रही थी. यहां तक कि बीजेपी मंत्री किरण रिजिजू ने उनको संसद के नियमों को लेकर टोका, तो दोनों में हल्की नोंक-झोंक भी हुई. संसद में जब कोई भाषण दे रहा हो या उसकी कार्यवाही में मौजूद हो तो उसको किन बातों का पालन करना चाहिए. इसे लेकर कुछ नियम भी हैं.

किसी भी सदस्य के भाषण के दौरान उसमें बाधा नहीं डाली जानी चाहिए. वहीं लोकसभा सदस्यों को बोलते समय शिष्टाचार के कुछ नियमों का पालन करना चाहिए.
– लंबित मुद्दों से बचें, ऐसे मुद्दे न उठाएं जिन पर अध्यक्ष अभी विचार कर रहे हों
– निर्णयों का सम्मान करें. अध्यक्ष के निर्णयों की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आलोचना न करें.
– किसी बहस में भाग लेने वाले सदस्यों को मंत्री के जवाब में मौजूद रहना चाहिए.
– व्यक्तिगत हमलों से बचें. जब तक बहस में इसकी आवश्यकता न हो, अन्य सदस्यों के विरुद्ध व्यक्तिगत संदर्भ या आरोप न लगाएं.
– न्यायिक मामलों से बचें. ऐसे तथ्यों का उल्लेख न करें जो न्यायिक निर्णय के लिए लंबित हों.
– अपने मार्ग पर ध्यान रखें. अध्यक्ष और बोलने वाले सदस्य के बीच में न आएं. इसे शिष्टाचार का उल्लंघन माना जाता है.

क्या हैं नियम और उनके प्रावधान
अब आइए नियमों के हवाले से भी देखते हैं कि स्पीच से संबंधित 349, 352, 151, 102 नियम क्या हैं. इसमें नियम 349 का जिक्र बार बार होता है.
349 (1) – ये नियम कहता है कि किसी ऐसी किताब, अखबार, तस्वीर या पत्र को नहीं पढ़ा या दिखाया जाना चाहिए, जिसका सदन की कार्यवाही से कोई संबंध नहीं हो.
349(2) – भाषण के दौरान शोरशराबा या बाधा नहीं डालनी चाहिए
349(12) – कोई सदस्य कार्यवाही के दौरान स्पीकर की ओर पीठ करके ना तो बैठेगा और ना ही खड़ा होगा.
349(16) – सदन में झंडा, प्रतीक, चित्र का प्रदर्शन नहीं किया जाना चाहिए.

352 से जुड़े नियम बताते हैं कि बोलते समय क्या ध्यान रखना जरूरी है.
352(1) – किसी तथ्य या निर्देशों का जिक्र नहीं करना चाहिए, जो अदालत में लंबित हों
352(3) – किसी भी सदस्य पर पर्सनल अटैक नहीं करना चाहिए
352(6) – राष्ट्रपति के नाम का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. यहां तक कि किसी सरकारी अधिकारी का नाम भी नहीं लेना चाहिए, ना उसका नाम लेकर जिक्र जरूरी है.
352(11) – यहां तक अगर आप लिखित भाषण लेकर आ रहे हों और उसको पढ़ना चाहते हों तो ऐसा तब तक नहीं कर सकते जब तक कि इसकी अनुमति स्पीकर से नहीं मिल जाए.
353- कोई भी सदस्य स्पीकर की मंजूरी के बगैर किसी पर अपमानजनक टिप्पणी नहीं कर सकता
354 – राज्यसभा के भाषण का जिक्र लोकसभा में नहीं होना चाहिए.
355 – कोई भी सवाल स्पीकर के माध्यम से ही पूछा जाना चाहिए.
356 – अगर कोई सदस्य भाषण में बार बार असंगत बात कह रहा हो तो स्पीकर उसको भाषण बंद करने का निर्देश दे सकते हैं.

कौन पहला वक्ता होता है और कौन आखिरी
– सदन का नेता आमतौर पर प्रथम वक्ता होता है और विपक्ष का नेता आमतौर पर अंतिम वक्ता होता है, लेकिन वे अपना समय किसी और को दे सकते हैं। अध्यक्ष अन्य वक्ताओं का भी चयन करता है, तथा प्रत्येक वक्ता को बोलने के लिए अधिकतम दो मिनट का समय मिलता है.

शून्यकाल के दौरान सदस्य बिना लिखित सूचना के एजेंडा या राष्ट्रीय आपातस्थिति के बारे में प्रश्न उठा सकते हैं. सरकार को इन प्रश्नों का उत्तर देने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन उनसे बहस के दौरान इनका उत्तर देने की अपेक्षा की जाती है.

– यदि सांसदों को किसी प्रश्न के उत्तर के लिए अधिक स्पष्टीकरण की आवश्यकता हो तो वे आधे घंटे की चर्चा की मांग कर सकते हैं. उन्हें अध्यक्ष को तीन दिन पहले सूचना देनी होगी कि वे चर्चा क्यों चाहते हैं. अध्यक्ष अपने विवेकानुसार नोटिस की अनुमति दे सकते हैं. चर्चा के दौरान अधिकतम चार अन्य सांसद प्रश्न पूछ सकते हैं.

सदन में इन बातों का पालन भी अपेक्षित
– सदन में प्रवेश करते समय या बाहर जाते समय और अपने स्थान पर बैठते समय या वहां से उठते समय भी सभापीठ के प्रति नमन करेगा.
– जब सभापीठ या स्पीकर और कोई सदस्य भाषण दे रहा हो तो उसके बीच से नहीं गुजरेगा.
– जब सभापति या स्पीकर सदन को संबोधित कर रहे हों तो वहां से बाहर नहीं जाएगा.
– सदैव सभापीठ या स्पीकर को संबोधित करेगा.
– संबोधित करते समय अपने सामान्य स्थान पर ही रहेगा
संसद सदस्यों से आमतौर पर सदन की कार्यवाही के दौरान बेहतर आचरण की उम्मीद की जाती है, जिसके बारे में संसद की नियमावली में उल्लेख किया गया है लेकिन हाल के दशकों में आचरण के स्तर में लगातार गिरावट देखने को मिली है.

.आमतौर पर टूटते ही रहते हैं ये नियम
हालांकि ये नियम बने तो जरूर हैं लेकिन हम ये देखते हैं कि आमतौर पर सदन में कार्यवाही के दौरान इन सभी नियमों को तोड़ने की प्रथा सी ही बन गई है. अनुशासन की दृष्टि से अगर सदस्य ये नियम हल्के फुल्के तौर पर तोड़ते हैं तो नजर अंदाज ही किया जाता है, लेकिन ज्यादा हंगामा करने या तोड़फोड़ करने पर कार्रवाई की जाती है.

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