नजूल भूमि विधेयक में क्या था ऐसा? जिसे लेकर चौतरफा घिरी यूपी सरकार

नजूल संपत्ति विधेयक को लेकर यूपी में सियासी घमासान मचा है. बीजेपी के अंदर भी बेचैनी है. बीजेपी के सहयोगी दल भी इस मुद्दे पर योगी सरकार के खिलाफ हैं. बीजेपी विधायकों के विरोध के बीच विधेयक को सेलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया गया है. पर अब बीजेपी के सहयोगी नेताओं अनुप्रिया पटेल, ओमप्रकाश राजभर और संजय निषाद ने इसे वापस लेने की मांग की है. अखिलेश यादव भी यही चाहते हैं. उन्होंने तो बीजेपी को चुनौती देते हुए इसे पूरे देश में लागू करने की मांग की है. महीने भर में योगी सरकार को तीसरी बार अपने फैसले से पीछे हटना पडा है.

नजूल की जमीन को लेकर इतनी हाय तौबा क्यों मची है. जब ये विधेयक कैबिनेट की बैठक में आया तब कोई विवाद नहीं था. जैसे ही इसे विधानसभा में रखा गया हंगामा मच गया. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के विरोध में ही थी. पर बीजेपी के विधायकों ने भी आसमान सर पे उठा लिया. शुरूआत बीजेपी नेता सिद्धार्थनाथ सिंह ने की. सिद्धार्थनाथ इलाहाबाद पश्चिम सीट से विधायक हैं.

इसी साल मार्च महीने में आया था अध्यादेश
नजूल की जमीन को लेकर इसी साल मार्च महीने में योगी सरकार अध्यादेश लेकर आई थी. इसे कानून बनाने के लिए विधानसभा में पास कराना जरूरी था. नजूल संपत्ति लोक प्रयोजनार्थ विधेयक 31 जुलाई को सत्ता पक्ष और विपक्ष के विरोध के बीच पास हो गया. फिर नाराज विधायकों ने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की. अगले दिन सवेरे ही विधानसभा में बीजेपी के चार बड़े नेताओं के बीच बैठक हुई. सीएम योगी, दोनों डिप्टी सीएम केशव मौर्य, ब्रजेश पाठक और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी की मीटिंग में बिल रोकने पर सहमति बनी.

बीजेपी की सहयोगी पार्टियों ने भी नजूल के मुद्दे पर योगी सरकार को घेर लिया. बिल वापस लेने की मांग की गई है. अपना दल अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने तो इसे बनाने वाले अफसरों पर भी एक्शन की मांग की है. सुहेलदेव समाज पार्टी के ओम प्रकाश राजभर और निषाद पार्टी के संजय निषाद की भी यही राय है.

समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव का आरोप है कि नजूल बिल की आड़ में बीजेपी नेता अपना फायदा ढूंढ रहे हैं. उन्होंने योगी सरकार से पूछा है कि गरीबों का घर उजाड़ कर क्या मिलेगा. अखिलेश यादव ने बीजेपी को इसे पूरे देश में लागू करने की चुनौती दी है. कांग्रेस कह रही है कि आपसी झगड़े निपटाने के लिए बीजेपी नजूल वाला बिल लेकर आ गई.

बिल में आखिर ऐसा क्या, जिसका हो रहा विरोध?
आइये अब समझते हैं कि इस नजूल जमीन वाले बिल में ऐसा क्या है कि बवाल थम नहीं रहा. ब्रिटिश राज में अंग्रेजों ने राज घरानों से ज़मीन छीना. वो नजूल ज़मीन हुआ. अंग्रेजों के खिलाफ जिन लोगों ने लड़ाई लड़ी उनकी जमीन ज़ब्त कर ली गई. ये जमीन भी नजूल जमीन हुआ. कुल मिला कर जिस जमीन का मालिकाना हक किसी के पास नहीं है वो नजूल जमीन माना जाता है. दो तरह की ये जमीन होती है. ग्रामीण इलाकों में और शहरी इलाकों में. ये जमीन 15 सालों से लेकर 99 साल तक की लीज पर देने का नियम रहा है.

लीज के बदले में लोग तय किराया देते रहे हैं. प्रयागराज से लेकर लखनऊ और मेरठ तक में नजूल की हजारों एकड़ जमीन हैं. लोग सालों से घर बना कर रहते हैं. खेती भी करते हैं. राजस्व विभाग, वन विभाग और सिंचाई विभाग की जमीन को नजूल के दायरे से बाहर रखा गया है. केंद्र सरकार के रक्षा, डाक, रेलवे और टेलिग्राफ विभाग की जमीन को भी नजूल के दायरे से बाहर रखा गया है. मायावती के मुख्यमंत्री रहते हुए नजूल के कुछ प्लाटस फ्री होल्ड किए गए थे.

नजूल पर नया कानून बन जाने के बाद लीज का नवीनीकरण नहीं होता. लीज की अवधि खत्म होने के बाद उन्हें जमीन से हटना पड़ता. भले ही वे सालों से वहां क्यों न रह रहे हो, या फिर दशकों से खेती क्यों न करते हों. नजूल की जमीन किसी व्यक्ति या संस्था को लीज पर देने की व्यवस्था बंद हो जाती. इनका उपयोग सरकारी काम के लिए ही हो सकता. जिन लोगों ने नजूल की जमीन के पट्टे के नवीनीकरण के लिए पैसा दे रखा है उन्हें ब्याज समेत पैसा वापस करने की व्यवस्था नए अधिनियम में हैं. नया कानून बनने के बाद लाखों लोग बेघर हो जाते. अयोध्या जैसे शहर में हजारों लोग नजूल की जमीन पर रहते हैं या फिर दुकान चलाते हैं. ऐसे ही प्रयागराज में इलाहाबाद हाई कोर्ट से लेकर राज्य लोक सेवा आयोग की बिल्डिंग तक नजूल लैंड पर बनी है.

आर्थिक के साथ साथ मामला राजनीतिक
मतलब वोटों के हिसाब किताब का भी है. इसीलिए तो विधानसभा में बीजेपी के विधायक ने कहा पीएम मोदी आवास दे रहे हैं तो हम घर कैसे उजाड़ सकते है. नजूल की जमीन से जिन्हें बेदखल किया जाता वे बीजेपी के खिलाफ जाते. क्योंकि यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार है. बुलडोजर चलता तो फिर बीजेपी को बड़ा नुकसान भी हो सकता था. सबको चिंता 2027 के विधानसभा चुनाव की है. लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी से पिछड़ चुकी बीजेपी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है.

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