अटक गई सांसे ! दिखने लगा मौत का मंजर, परमाणु बम लेकर जा रहा विमान हवा में ही हुआ क्रैश

अमेरिका : दुनिया ने जापान (Japan) के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर हुए परमाणु हमलों (Nuclear Attack) का दंश देखा है. जब करीब दो लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. इसके अलावा, यहां रहने वाले लोग अभी भी परमाणु बम (Nuclear Radiation) के रेडिएशन के प्रभाव का सामना कर रहे हैं. लेकिन 1960 के दशक में एक मौका ऐसा भी आया, जब ऐसा लगा कि कहीं दूसरा परमाणु हमला अमेरिका (America) पर ही ना हो जाए. जापान पर अमेरिका ने परमाणु हमला किया था, लेकिन इस बार ऐसा लगा कि अमेरिका खुद पर ही ये हमला कर बैठेगा. दरअसल, 1961 में परमाणु बम लेकर जा रहा अमेरिकी विमान हवा में ही क्रैश हो गया था. इस दौरान डर के मारे लोगों की सांसें अटक गई थी. ऐसे में आइए जाना जाए, इस दिन क्या हुआ…

आज से 60 साल पहले अटलांटिक महासागर के ऊपर रात के समय एक B-52 स्ट्रैटोफोर्ट्रेस बॉम्बर विमान (B-52 Stratofortress bomber Plane) गश्त लगा रहा था. जॉन एफ कैनेडी को अमेरिका का राष्ट्रपति बने अभी सिर्फ तीन दिन हुए थे. शीतयुद्ध के मद्देनजर अमेरिकी सीमा की रक्षा के लिए बमवर्षक विमान 3.8 मेगाटन मार्क 39 हाइड्रोजन बम के एक जोड़े को लेकर हवा में उड़ान भर रहा था. B-52 स्ट्रैटोफोर्ट्रेस बॉम्बर विमान ने उत्तरी कैरोलिना के गोल्ड्सबोरो के पास सीमोर जॉनसन एयरफोर्स बेस से उड़ान भरी थी. उड़ान के कुछ घंटे बाद ही विमान का ईंधन लीक होने लगा. 19 टन ईंधन सिर्फ दो मिनट में गायब हो गया. पायलट ने जब बेस की तरफ जाने के लिए विमान को मोड़ा, तो इसका एक विंग टूट गया. विमान चक्कर खाने लगा और नीचे की तरफ गिरने लगा.

विमान से गिरने लगे परमाणु बम
विमान में सवार छह से आठ लोगों ने खुद को इजेक्ट कर लिया और नीचे उतरने लगे. लेकिन सिर्फ पांच ही सुरक्षित बच पाए, बाकी के लोग मारे गए. बिना पायलट के अब विमान तेजी से जमीन से टकराने की तरफ बढ़ रहा था. इसी दौरान विमान में तैनात दोनों परमाणु बम ढीले होकर इससे निकलना शुरू हो गए और जमीन पर गिए गए. लेकिन इनके फटने की संभावना नहीं थी, क्योंकि जब तक कमांड नहीं दिया जाता, इनमें विस्फोट नहीं हो सकता था.

एक बम फटने को तैयार था
हालांकि, जब गोल्ड्सबोरो से 15 मील दूर विमान और क्रू मेंबर की तलाश में बचाव दल पहुंचा, तो वो देखकर हैरान था कि इन परमाणु बमों में से एक बम का पैराशूट खुल चुका था और वो एक पेड़ से अटका हुआ था. यानी की ये बम लगभग फटने की अवस्था में था. वहीं, दूसरे बम की सॉफ्ट लैंडिंग हुई थी. गनीमत ये रही कि लगभग 700 मील प्रति घंटे की रफ्तार से जमीन पर वार करने के बाद यह फटे नहीं थे. इन बमों की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक बम की क्षमता हिरोशिमा पर गिराए गए बम से 260 गुना ज्यादा थी. अगर ऐसे में इनमें से एक बम भी फट गया होता, तो अमेरिका में भारी तबाही मच सकती थी.

अगर फटता तो इतना होता नुकसान
अगर इनमें से एक भी बम फटा होता, तो 8.5 मील की परिधि में किसी भी इंसान, जीव-जंतु या पेड़-पौधों का नामो-निशान मिट गया होता. इसके फटने के बाद रेडिएशन का स्तर इतना होता कि ये अटलांटिक तक फैल जाता और न्यूयॉर्क शहर को अपनी चपेट में ले लेता. इस विस्फोट के बाद होने वाले नुकसान को दुनिया सैकड़ों सालों तक याद रखती. इसके अलावा रेडिएशन का प्रभाव सालों तक रहता. हालांकि, ऐसा नहीं हुआ और अमेरिका सुरक्षित बच गया.

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