गंगा नदी में वाराणसी सहित इन 12 जिलों में छोड़ी जाएंगी 15 लाख मछलियां, जानिए क्यों?

लखनऊ. नमामि गंगे योजना (Namami Gange Project) के तहत गंगा नदी (Ganga River) को प्रदूषण मुक्त करने के लिए योगी सरकार (Yogi Government) अब रिवर रांचिंग (River Ranching) की मदद लेने जा रही है. नदियों की पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने और गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए योगी सरकार गंगा में 15 लाख मछलियां छोड़ेगी. मत्स्य विभाग द्वारा गंगा में विभिन्न प्रजाति की मछलियों को छोड़ने की योजना बनाई गई है. प्रदेश के 12 जिलों में ये मछलियां छोड़ी जाएंगी. दावा है कि ये मछलियां नाइट्रोजन की अधिकता बढ़ाने वाले कारकों को नष्ट करेंगी.

बता दें गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए नमामि गंगे प्लान के तहत गंगा में मल-जल जाने से रोकने के लिए एसटीपी का निर्माण किया जा रहा है. गंगा टास्क फोर्स के गठन समेत गंगा को अविरल और निर्मल करने के लिए सभी जतन कर रही है. जिसमें योगी सरकार को तेजी से सफलता भी मिल रही है. अब यूपी की योगी सरकार ने गंगा के इको सिस्टम को बरकरार रखते हुए गंगा को साफ़ रखने के लिए रिवर रांचिंग प्रक्रिया से मछलियों का इस्तमाल करेगी. सरकार 12 जिलों में 15 लाख मछलियां नदियों में छोड़ेगी.

वाराणसी और गाजीपुर में छोड़ी जाएंगी 1.5-1.5 लाख मछलियां
इन जिलों में प्रमुख हैं- गाजीपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, प्रयागराज, कौशाम्बी, प्रतापगढ़, कानपुर, हरदोई, बहराइच, बुलंदशहर, अमरोहा, बिजनौर. पूर्वांचल में वाराणसी और गाजीपुर में 1.5-1.5 लाख मछलियां गंगा में छोड़ी जाएंगी.

मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में प्रमुख सचिव नमामि गंगे अनुराग श्रीवास्तव ने बताया कि गंगा की स्वच्छता और भूगर्भ जल के संरक्षण के लिए समग्र प्रयास किए जा रहे हैं. ये भी उसी का एक हिस्सा है. वही मत्स्य विभाग के उपनिदेशक एनएस रहमानी ने बताया कि गंगा में प्रदूषण को नियंत्रित करने और नदी का इको सिस्टम बरकरार रखने के लिए रिवर रांचिंग प्रोसेस का भी प्रयोग किया जाता है. इस प्रक्रिया में गंगा में अलग-अलग प्रजाति की मछलियां छोड़ी जाती हैं. यह मछलियां नाइट्रोजन की अधिकता बढ़ाने वाले कारकों को नष्ट करती हैं. ये मछलियां गंगा की गंदगी को तो समाप्त करती हैं. साथ ही जलीय जंतुओं के लिए भी हितकारी होती हैं.

उन्होंने बताया कि गंगा में अधिक मछली पकड़ने व प्रदूषण से गंगा में मछलियां कम होती जा रही हैं. 20 सालों से लगातार नदियों में मछलियां घट रही हैं, जो अब 20 प्रतिशत रह गई हैं.

निर्णय के पीछे ये है अहम कारण

एन.एस. रहमानी ने कहा कि 4 हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में मौजूद लगभग 1500 किलो मछलियां 1 मिलीग्राम प्रति लीटर नाइट्रोजन वेस्ट को नियंत्रित करती हैं इसलिए सरकार ने गंगा में भी लगभग 15 लाख मछलियों को प्रवाहित करने का निर्णय लिया है. हर दिन गंगा में काफी संख्या में नाइट्रोजन गिरता है यदि नाइट्रोजन 100 मिलीग्राम प्रति लीटर या इससे अधिक हो जाता है तो यह जीवन के अलग-अलग हिस्सों को प्रभावित करता है. इसके बढ़ने से मछलियों की प्रजनन नहीं हो पाती और वह अंडे नहीं दे पाती हैं. इससे इनकी प्राकृतिक क्षमता भी प्रभावित होती है.

इस योजना के तहत सरकार की कोशिश है कि मछलियों के जरिए नदियों में प्राकृतिक जनन का कार्य शुरू किया जाए, क्योंकि इससे मछलियां संरक्षित होंगी और मछलियों के बढ़ने से अन्य जलीय जीवों में बढ़ोतरी होगी और प्राकृतिक प्रजनन ज्यादा होगा, जिससे नदी का प्रदूषण भी कम होगा.

रोहू, कतला और मृगला प्रजातियां छोड़ी जाएंगी

उन्होंने बताया कि सितंबर में रोहू, कतला व मृगला (नैना) नस्ल की मछलियां गंगा में डाली जाएंगी. इसके लिए 70 एमएम के बच्चे को भी तैयार किया गया है. खास बात यह है कि यह मछलियों के बच्चे गंगा में रहने वाले मछलियों के ही है क्योंकि यदि मछलियों का प्राकृतिक वातावरण बदलेगा तो इससे उनका जीवन भी प्रभावित होगा इसलिए पहले गंगा नदी से ही मछलियों को चुनकर हैचरी में रखा गया, वहां उनके प्रजनन हुआ और 70 एमएम का बच्चा तैयार किया गया.

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