मुंबई: महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने तीन दिनों पहले एक टीवी इंटरव्यू में शरद पवार के बारे में यह खुलासा किया कि, 2019 में उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने में अपनी सहमति दर्शाई थी. फिर दो दिन पहले वे मुकर गए. अजित पवार पेशोपेश में पड़ गए और उनके पास वापस लौटने का कोई रास्ता नहीं था. इसलिए अजित दादा ने बीजेपी के साथ सरकार बनाई. शरद पवार के पलटने की वजह से ही वो सरकार दो दिनों में ही गिर गई. इस खुलासे के बाद एनसीपी प्रमुख पर कटाक्ष करते हुए कई नेताओं के बयान आए.
तब शरद पवार की बेटी, एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने कहा कि, लोग पत्थर आम के पेड़ पर ही मारते हैं, बबूल के पेड़ पर नहीं. उन्होंने गलत कहा था. अजित पवार की ओर से एनसीपी के नेताओं को लेकर शिंदे सरकार में शामिल होने के बाद तो यही लगता है कि सही होता जो वो यह कहतीं- बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय! शरद पवार ने आज तक अपनी राजनीति में जो बोया है, अब वही काट रहे हैं.
तब गुरु की पार्टी शरद पवार ने छोड़ी, अब चाचा का साथ अजित पवार ने छोड़ा
बात 1977 की है. इमरजेंसी लगाए जाने की वजह से इंदिरा गांधी की लोकप्रियता धूल में मिल गई थी. ऐसे में शरद पवार कांग्रेस (इंदिरा) को छोड़ कर अपने मेंटर यशवंतराव चव्हाण के साथ कर्नाटक के डी. देवराज उर्स की कांग्रेस (यू) में चले गए. चुनाव के बाद जनता पार्टी को रोकने के लिए दोनों कांग्रेस ने गठबंधन किया. थोड़े दिन साथ चला फिर अचानक कांग्रेस यू के देवराज जनता पार्टी में चले गए. यहां शरद पवार के गुरु यशवंत राव चव्हाण कांग्रेस (आई) में लौटे. लेकिन शरद पवार ने मुख्यमंत्री बनने का मौका देखा और गुरु को पीछे मुड़ कर नहीं देखा. जनता पार्टी का साथ पाकर वे 38 साल में महाराष्ट्र के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बैठे.
जिधर की सत्ता, उधर की NCP; शरद पवार की इस नीति की नींव तभी पड़ चुकी
अजित पवार ने ठीक अपने चाचा शरद पवार के नक्शे कदम पर चल कर दिखाया. 2014 के चुनाव के बाद मोदी लहर को देखते हुए शरद पवार ने खुद बीजेपी का समर्थन करने का उद्धव ठाकरे से भी पहले ऐलान कर दिया. उद्धव ठाकरे तो बीजेपी से बारगेनिंग के मूड में दिखाई दे रहे थे. शरद पवार ने उन्हें लाचार और हैरान कर दिया. पांच साल बाद उन्होंने बीजेपी के साथ मीटिंगें की और फिर बीजेपी को टंगड़ी मार दी और उद्धव ठाकरे के साथ महाविकास आघाड़ी बनाने का ऐलान कर दिया. इस बार बीजेपी को हैरान कर दिया. शरद पवार ने खुद अपनी इमेज मौके पर चौका मारने वाले पलटीमार नेता की बनाई है.
महाजनो येन गत: स पंन्था: – ‘बड़े जिन रास्तों से चले, उन्हीं रास्तों पे चलें’
अजित पवार ने क्या अलग किया? वही तो किया जो चाचा शरद पवार ने किया. इधर दांव, उधर पेंच, जिधर आग, उधर सेंक! मौकापरस्ती की सीख शरद पवार ने ही दी है. सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने की राह चाचा ने ही बताई है. अजित पवार को वे सारे सबक याद रहे. शरद पवार यह भूल गए कि गुरु तो गुड़ होता है, चेला चीनी निकल जाता है. शरद पवार ने इस्तीफा देकर वापस लेने का नाटक खेला. फिर महिला आरक्षण, महिला मुख्यमंत्री, महिला सशक्तिकरण का नारा छेड़ा और सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष बना कर भतीजे को पीछे धकेला. लेकिन भतीजा भी निकला अलबेला, कर दिया खेला! गोटियां बिछा दीं, क्या गुलाम, क्या सिपाही पूरी पार्टी ही उड़ा दी!
सता की डगर पर भतीजे दिखाओ चल के, ये दल है तुम्हारा, नेता तुम्हीं हो कल के
अब अजित पवार ने ठीक एकनाथ शिंदे की तरह यह दावा कर दिया है कि उनके साथ दिखाई देने वाली शक्ति ही रियल एनसीपी है. अगर उद्धव की शिवसेना के साथ सरकार बनाई जा सकती है तो बीजेपी के साथ क्यों नहीं, यह उनका सवाल और एजेंडा है, दावा है कि उनके पीछे ही एनसीपी का झंडा है. अब शरद पवार कह रहे कि अजित के दावा करने से क्या होता है, हम जनता के पास जाएंगे.
आखिर में एक बात पवार ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में सबसे अहम कह दी- कोर्ट नहीं जाएंगे, जनता के पास जाएंगे. यानी उद्धव ठाकरे वाली नीति नहीं दोहराएंगे. क्योंकि, उन्होंने यह भी कहा कि, 2024 का चुनाव आने वाला है. चुनाव तक तो उद्धव ठाकरे से बगावत कर शिवसेना से अलग हुए विधायकों को अयोग्य साबित करने से जुड़ा फैसला नहीं आने वाला है.