केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग से जुड़े बिल को मंगलवार यानी आज लोकसभा में पेश करेंगे. बिल पेश करने के साथ-साथ अमित शाह सदन को यह भी बताएंगे कि सरकार को अध्यादेश लाने की जरूरत क्यों पड़ी? केंद्रीय कैबिनेट ने 25 जुलाई को इस अध्यादेश को मंजूरी दी थी. आम आदमी पार्टी समेत कई विपक्षी पार्टियां इस बिल के विरोध में हैं ऐसे में संसद में कल हंगामा भी देखने को मिल सकता है.
दरअसल, केंद्र सरकार ने दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर 19 मई को यह अध्यादेश जारी किया था. केंद्र सरकार अपने इस अध्यादेश के जरिए सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को पलट दिया था जिसमें अदालत ने दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार चुनी हुई सरकार को दो दिया था.
दिल्ली में केजरीवाल सरकार और उपराज्यपाल की लड़ाई जग जाहिर है. साल 2015 में केजरीवाल सरकार ने अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के अधिकार को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. हाई कोर्ट ने अगस्त 2016 में केजरीवाल सरकार को झटका देते हुए उपराज्यपाल के पक्ष में फैसला सुनाया था. इसके बाद केजरीवाल सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.
11 मई को सुप्रीम कोर्ट केजरीवाल के पक्ष में सुनाया फैसला
लंबी सुनवाई के बाद 11 मई को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने केजरीवाल के पक्ष में फैसला सुनाते हुए अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार चुनी हुई सरकार को दे दिया था. इसके बाद केंद्र सरकार की ओर से यह अध्यादेश लाया गया और कोर्ट के आदेश को पलटते हुए ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार उपराज्यपाल को दिया.
सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में विपक्ष
दूसरी ओर से विपक्षी गठबंधन INDIA संसद में अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार किए जाने के बाद भी सदन में बिल पास किए जाने और चर्चा के मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रहा है. सूत्रों के मुताबिक, विपक्षी गठबंधन ने इस संबंध में संविधान के कई जानकारों की राय ली है और अब वो अपने वकीलों से चर्चा कर रहे हैं. विपक्षी गठबंधन अदालत से यह मांग करेगा कि अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार किए जाने के बाद उस पर चर्चा और फैसला हुए बिना जो भी भी बिल संसद में पास हुए हैं उन्हें गैर-कानून ठहराए जाए.