सुप्रीम कोर्ट ने 25 साल की एक महिला के माता-पिता को निर्देश दिया कि उसे तुरंत आजाद किया जाए. दरअसल, बताया गया है कि उसके माता-पिता ने कथित तौर पर हिरासत में ले रखा है क्योंकि वह उनकी इच्छाओं के खिलाफ जाकर रिश्ते में है. जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने इस मसले से निपटने के तरीके को लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट की भी आलोचना की.
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि जब किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल शामिल होता है, तो एक दिन की देरी भी मायने रखती है. शीर्ष अदालत दुबई स्थित केविन जॉय वर्गीस की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. वर्गीस ने आरोप लगाया है कि मीरा चिदंबरम के माता-पिता उसे दुबई से ले गए और बेंगलुरु में उसके चाचा के घर पर अवैध रूप से हिरासत में रखा हुआ है.
हिरासत में रखना गैरकानूनी- सुप्रीम कोर्ट
पीठ ने कहा कि महिला को उसके माता-पिता द्वारा लगातार हिरासत में रखना गैरकानूनी है और कहा कि वे उसे तुरंत रिहा करें और महिला को अपनी इच्छा के अनुसार आगे बढ़ने की अनुमति दी जाएगी. कोर्ट ने माता-पिता से 48 घंटे के भीतर उसके पासपोर्ट और अन्य दस्तावेज उसे वापस करने को भी कहा है.
वर्गीस ने पहले कर्नाटक हाईकोर्ट के सामने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी, जिसने 27 सितंबर 2023 को उसका बयान दर्ज किया गया था. महिला ने अपने बयान में स्पष्ट रूप से कहा था कि उसे उसके दादा की बीमारी के बहाने दुबई से जबरन बुलाया गया और उसे अरेंज मैरिज करने के लिए मजबूर किया जा रहा है. वर्गीस ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मामले में सुनवाई की अस्थायी तारीख 10 अप्रैल 2024 रखी गई. इस पर आपत्ति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने हाईकोर्ट द्वारा मामले को निपटाने के तरीके पर अपनी नाराजगी व्यक्त की.
कर्नाटक हाईकोर्ट की ओर से दिखी संवेदनशीलता की कमी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में मीरा चिदंबरम ने हाईकोर्ट के सामने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि वह अपना करियर बनाने के लिए दुबई वापस जाना चाहती है, तो हाईकोर्ट को उसे तत्काल प्रभाव से मुक्त करने का आदेश पारित करना चाहिए था. मामले को 14 बार स्थगित करना, अब इसे अनिश्चित काल के लिए स्थगित करना और इसे वर्ष 2025 में पोस्ट करना हाईकोर्ट की ओर से संवेदनशीलता की कमी को दर्शाता है.