आगामी 17 सितंबर को केंद्र सरकार समाज के कई अहम क्षेत्रों में पारंपरिक शिल्प कार्यों में जुड़े कारीगरों को बड़ी सौगात देने जा रही है. जनकल्याण के लिए पीएम मोदी के जन्मदिन और विश्वकर्मा जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक नई योजना का ऐलान करने वाले हैं. इस योजना का नाम पीएम विश्वकर्मा है. 17 सितंबर को सुबह 11 बजे प्रधानमंत्री इस योजना का शुभारंभ दिल्ली के द्वारका स्थित इंडिया इंटरेनशनल कॉन्वेंशन एंड एक्सपो सेंटर में करेंगे.
पीएम विश्वकर्मा योजना की घोषणा केंद्रीय बजट 2023-24 में की गई थी. इसे देश भर में लागू किया जाना है. जानकारी के मुताबिक इस योजना का सारा खर्च केंद्र सरकार की तरफ से किया जाएगा. पारंपरिक शिल्प के काम में जुटे कारीगरों की मदद के लिए इस योजना का बजट 13,000 करोड़ तय किया गया है. इससे समाज के हरेक क्षेत्र में परंपरागत कार्यों से जुड़े कारीगरों को प्रोत्साहित करने का लक्ष्य है.
क्या है इस योजना का मकसद?
प्रधानमंत्री मोदी की इस पहल का मकसद परंपरागत कारीगरों और शिल्पकारों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाना है. साथ ही स्थानीय उत्पादों, कला और शिल्प की सदियों पुरानी परंपरा, संस्कृति और विविध विरासत को जीवित और समृद्ध बनाए रखना है. इस योजना में बायोमीट्रिक आधारित पीएम विश्वकर्मा पोर्टल पर मुफ्त पंजीकरण किया जाएगा. इसके माध्यम से कारीगरों को पीएम विश्वकर्मा प्रमाणपत्र और पहचान पत्र प्रदान किए जाएंगे. कारीगरों के आधुनिक ट्रेनिंग और कौशल विकास के लिए आर्थिक सहायता का भी प्रावधान है.
इसके तहत लाभार्थियों को 15,000 का टूलकिट प्रोत्साहन मिलेगा. साथ ही 5 फीसदी रियायती ब्याज के साथ 1 लाख (पहली किस्त) और 2 लाख (दूसरी किस्त) का लोन प्रदान किया जाएगा.
गुरु-शिष्य परंपरा और परिवार को मिलेगी मदद
इस योजना का एक और मकसद गुरु-शिष्य परंपरा को मजबूती देना और अपने हाथों या औजारों से काम करने वाले विश्वकर्माओं की हौसलाअफजाई करना है. इसके अलावा जिन परिवारों में जो शिल्प कला पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है, उसे आर्थिक सुरक्षा और सहयोग देना है.
इस लिहाज से पीएम विश्वकर्मा का मुख्य फोकस कारीगरों और शिल्पकारों के उत्पादों और जन सेवाओं की क्वालिटी में सुधार लाना और उन्हें आगे बढ़ने का अवसर देना है.
योजना में कुल 18 तरह के कार्यों का जिक्र
पीएम विश्वकर्मा योजना का लक्ष्य देश भर के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के कारीगरों और शिल्पकारों को सहायता प्रदान करना है. इस योजना में अठारह क्षेत्रों के पारंपरिक कार्यों को शामिल किया जाना है. मसलन – (1) बढ़ई, (2) नाव निर्माता, (3) कवचधारी, (4) लोहार, (5) हथौड़ा और टूल किट बनाने वाले, (6) ताला बनाने वाले, (7) सुनार, (8) कुम्हार, (9) मूर्तिकार या पत्थर तोड़ने वाले, (10) जूता कारीगर, (11) राजमिस्त्री, (12) टोकरी/चटाई बुनकर, (13) गुड़िया और खिलौने बनाने वाले, (14) नाई, (15) माला बनाने वाले, (16) धोबी, (17) दर्जी, और (18) मछली पकड़ने की जाल बनाने वाले.