कोरोना का डेल्टा वेरिएंट बेहद खतरनाक, वैक्सीन-इम्यूनिटी दोनों को दे सकता है चकमा- रिसर्च

भारत में पहली बार मिला कोविड -19 का अत्यधिक संक्रामक डेल्टा वेरिएंट (B.1.617.2) इंफेक्शन इम्यूनिटी और वैक्सीन को भी चकमा देने में सक्षम है. जिस से ये कोरोना मरीज में बार बार इंफेक्शन भी पैदा करने की श्रमता रखता है. विशेषज्ञों के अनुसार डेल्टा वेरिएंट लगातार अपना रूप बदल रहा है और इसके म्यूटेशन बेहद संक्रामक हैं. ये लोगों में बेहद अधिक संख्या में वायरल इंफेक्शन पैदा करता है और तेजी से फैलता है.

इंस्टिट्यूट ऑफ जिनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (IGIB) ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की गुप्ता लैब के साथ मिलकर ये स्टडी तैयार की है. देश के तीन शहरों में हेल्थकेयर वर्कर्स में इस डेल्टा वेरिएंट के संक्रमण के फैलने का क्या पैटर्न था और ये एंटीबॉडी के खिलाफ किस तरह रिऐक्ट करता है इस आधार पर ये स्टडी तैयार की गई है. साथ ही ह्यूमन सेल खासकर की फेफड़ों पर इस वायरस के असर को भी इस का आधार बनाया गया है. इस से पहले स्कॉटलैंड में कोरोना वायरस पर हुई एक रिसर्च में दावा किया गया था कि भारत में संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान डेल्टा वेरिएंट ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया.

डेल्टा वेरिएंट में इम्यून सिस्टम को चकमा देने की अत्यधिक क्षमता

IGIB के निदेशक डॉक्टर राजेश पांडेय ने बताया कि, “लैब में हुई रीसर्च से पता चलता है कि डेल्टा वेरिएंट के अंदर इम्यून सिस्टम को चकमा देने की अत्यधिक क्षमता है. ये बहुत तेजी से फैलता है और हेल्थकेयर वर्कर्स में वैक्सीन की दोनों डोज लगने के बाद भी इंफेक्शन होने का मुख्य कारण है.” साथ ही उन्होंने कहा, “हमें इसको लेकर बेहद सतर्क रहने के जरुरत है खासकर की वर्तमान में जब इसके दूसरे रूप डेल्टा प्लस के मामलें भी तेजी से सामने आ रहे हैं. हालांकि ये इम्यूनिटी को किस हद तक चकमा देने में सक्षम है इसको लेकर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता.”

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की गुप्ता लैब के अनुसार, “अपनी रीसर्च में हमें पता चला है कि कोरोना का डेल्टा वेरिएंट ज्यादा तेजी से फैलता है साथ ही शरीर में पहले के इंफेक्शन के बाद बनी इम्यूनिटी को भी चकमा देने की अधिक श्रमता रखता है. हम अभी स्पष्ट आंकडें तो नहीं दे सकते लेकिन मुंबई में दूसरी लहर के दौरान डेल्टा वेरिएंट कोरोना के पिछले वेरिएंट के मुकाबले 10 से 40 प्रतिशत तक ज्यादा तेजी से फैला. साथ ही यहां 20 से 55 प्रतिशत मामलों में अन्य वायरस के बाद बनी एंटीबॉडी भी इसके सामने बेअसर साबित हुई है.”

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