आमतौर पर गर्भवती महिलाओं को डायबिटीज हो जाती है. अब इसको लेकर एक स्टडी की गई है, जिसमें दावा किया गया है कि प्रेगनेंसी के दौरान डायबिटीज होने से बच्चे के फ्यूचर के लिए खतरा हो सकता है. द लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्राइनोलॉजी जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार, प्रेगनेंसी के दौरान डायबिटीज होने से बच्चे में ऑटिज्म जैसे न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर का खतरा बढ़ सकता है. स्टडी में पाया गया है कि प्रेगनेंसी के दौरान डायबिटीज होने से बच्चे में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर होने का जोखिम 25 प्रतिशत, अटेंशन-डिफिसिट की हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर का जोखिम 30 प्रतिशत और बौद्धिक विकलांगता का जोखिम 32 प्रतिशत अधिक होता है. वहीं, जिन महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान डायबिटीज नहीं होती है, उन बच्चों में यह जोखिम नहीं होता है.
बच्चों में सीखने की क्षमता हो जाती है कम
यह भी पाया गया कि मेटरनल डायबिटीज से बच्चों में संचार, सीखने और मोटर डिसऑर्डर का जोखिम बढ़ जाता है. हालांकि चीन के सेंट्रल साउथ यूनिवर्सिटी शोधकर्ताओं ने अध्ययन के परिणामों की सावधानीपूर्वक व्याख्या करने की अपील की है क्योंकि उनका कहना है कि मौजूदा समय में किसी कारण संबंध के बहुत कम सबूत हैं. इस समय टाइप 1 या टाइप 2 डायबिटीज के मामले दुनिया भर में तेजी से बढ़ रहे हैं.
56 मिलियन से अधिक मां-बच्चे के जोड़ों पर अध्ययन
मोटापा, गतिहीन जीवनशैली और मातृत्व की अधिक उम्र (35 वर्ष और उससे अधिक) जैसे कारकों को डायबिटीज के जोखिम को बढ़ाने वाला माना जाता है. पिछले अध्ययनों ने सुझाव दिया है कि मेटरनल डायबिटीज भ्रूण के मस्तिष्क के परिवर्तित विकास से जुड़ा हुआ है और बच्चों में ऑटिज्म और एडीएचडी जैसे दीर्घकालिक न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर से भी जुड़ा हो सकता है. हालांकि, शोधकर्ताओं ने कहा कि इस संबंध में सबूत अस्पष्ट हैं. स्टडी के लिए 200 से अधिक पूर्व प्रकाशित अध्ययनों से 56 मिलियन से अधिक मां-बच्चे के जोड़ों के डेटा का विश्लेषण किया, जिसमें बच्चों के न्यूरोडेवलपमेंट पर मेटरनल डायबिटीज के प्रभावों को देखा गया.
भारत में प्रगनेंसी के दौरान डायबिटीज एक बड़ी चिंता का विषय
भारत में प्रगनेंसी के दौरान डायबिटीज (जीडीएम) एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है, जिसकी दर 10-14.3 फीसदी अनुमानित है. ये आंकड़ा पश्चिमी देशों की तुलना में अधिक है. इस डायबिटीज के बिना निदान से गर्भवती मां और बच्चे दोनों के लिए जटिलताएं खड़ी हो सकती हैं. टाइप 2 मधुमेह और जीडीएम दोनों के उच्च प्रसार के कारण भारत को कभी-कभी “दुनिया की मधुमेह राजधानी” के रूप में जाना जाता है. अन्य क्षेत्रों की महिलाओं की तुलना में भारतीय महिलाओं में जीडीएम विकसित होने का जोखिम अधिक है.