भारत में भले अल्टरनेटिव फ्यूल जैसे कि इलेक्ट्रिक या बायोडीजल को बढ़ावा देने के लिए कई कोशिशें की जा रही हों, लेकिन अब भी इकोनॉमी का पहिया पेट्रोल-डीजल पर ही घूमता है. देश में कार-बाइक-बस-ट्रैक्टर-रेल या जेनरेटर इत्यादि में जो कुल फ्यूल इस्तेमाल होता है, उसका 40 प्रतिशत सिर्फ डीजल ही है. लेकिन जून के महीने में इसकी डिमांड में जबरदस्त गिरावट देखी गई है, जबकि इसके उलट पेट्रोल की मांग बढ़ी है. इनके बीच का को-रिलेशन भी अनोखा है…
जून में डीजल की डिमांड पिछले साल के मुकाबले 3.7 प्रतिशत घटकर महज 71 लाख टन रह गई, जबकि पेट्रोल की डिमांड 3.4 प्रतिशत बढ़कर 29 लाख टन पर पहुंच गई है. महीने के हिसाब से देखें तो मई में डीजल की सेल 70.9 लाख टन रही, जबकि पेट्रोल की मांग लगभग जून के बराबर ही रही.
कार के AC ने बढ़ाई पेट्रोल की डिमांड
पेट्रोल की मांग में बढ़ोतरी का ट्रेंड अप्रैल-मई में दिखना शुरू हो गया था. जून में ये पीक पर पहुंच गया. जून में गर्मी और उमस बढ़ने से लोगों के कार में एसी का ज्यादा इस्तेमाल हुआ. इसकी वजह से वाहनों में पेट्रोल की खपत अधिक हुई है.
डीजल की डिमांड पहले बढ़ी, फिर गिरी
इसके उलट डीजल की डिमांड में मार्च महीने के आखिरी 15 दिन में बढ़ोतरी देखी गई. अप्रैल और मई में इसमें तेजी आई. अप्रैल में डीजल की डिमांड 6.7 प्रतिशत बढ़ी जबकि मई में ये 9.3 प्रतिशत बढ़ गई. इसकी प्रमुख वजह कृषि सेक्टर में डीजल की मांग बढ़ना रही.
फिर आया जून का महीना, देश में मानसून देरी से ही सही, लेकिन जून में पहुंच गया और कृषि सेक्टर में सिंचाई के इत्यादि के लिए जो डीजल जेनसेट का इस्तेमाल होता है, उसमें कमी आने लगी. नतीजा डीजल की डिमांड भी गिर गई.
पेट्रोल की खपत कोविड टाइम से भी ज्यादा
पेट्रोल और डीजल की खपत में ये बदलाव जून के महीने में काफी बड़े अंतर को दिखाता है. हालांकि पेट्रोल के मामले में देखा जाए तो जून 2023 में इसकी खपत कोविड काल यानी जून 2021 के मुकाबले 33.5 प्रतिशत अधिक रही है. जबकि कोविड से पहले वाले जून 2019 के मुकाबले भी 20.6 प्रतिशत अधिक रही है.
भारत के लिए पेट्रोल और डीजल की डिमांड में उतार-चढ़ाव काफी मायने रखता है, क्योंकि भारत अपनी जरूरत का अधिकतर कच्चा तेल इंपोर्ट करता है. वह दुनिया में क्रूड ऑयल का तीसरा सबसे बड़ा इंपोर्टर है और हर साल इस पर अरबों डॉलर खर्च करता है..