आप भी बिना पढ़े फॉरवर्ड करते हैं सोशल मीडिया मैसेज? तो हो जाएं सावधान, हाई कोर्ट ने कही ये बात

सोशल मीडिया के इस दौर में फर्जी खबरें इस तरह घर कर गई हैं कि हम इसके प्रभाव की परवाह किए बगैर ही फॉरवर्ड कर देते हैं. एक ऐसे ही मामले में मद्रास हाई कोर्ट ने नाराजगी जताई. कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया मैसेज फॉरवर्ड करने वाले लोग ही इसके कंटेंट के जिम्मेदार होंगे. आसान भाषा में कहें तो आपके द्वारा शेयर किए गए मैसेज से होने वाला प्रभाव के लिए आप ही जिम्मेदार होंगे.

मद्रास हाई कोर्ट के जज जस्टिस आनंद वेंकटेश ने कहा कि सोशल मीडिया के सभी यूजर को मैसेज भेजने और शेयर करते समय बहुत ही सावधान रहने की जरूरत है. हम वर्चुअल इन्फोर्मेशन डायरिया से जूझ रहे हैं जहां हर कोई संदेशों की बमबारी करता है. सोशल मीडिया पर संदेशों के रूप में जो बातें की जाती है उसका बहुत कम समय में बहुत बड़ा प्रभाव हो सकता है.

मैसेज फॉरवर्ड करने वाले भी जिम्मेदार

हाईकोर्ट ने कहा कि हर एक यूजर को संदेश भेजने और शेयर करते समय अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का ध्यान रखना चाहिए. समाज में पॉपुलर लोगों की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है. सोशल मीडिया पर शेयर किए जाने वाले संदेश स्थायी साक्ष्य बन जाते हैं, लोग उससे प्रभावित होते हैं, और ऐसे में इससे पड़ने वाले प्रभाव से बचना लगभग नामुमकिन हो जाता है.

कोर्ट ने कहा कि संदेश शेयर करने वाले लोगों को संदेश की सच्चाई का पता लगाना चाहिए. होता क्या है कि जब एक यूजर के पास कुछ मैसेज आता है, तो वह चाहता है कि इसके बारे में दूसरों को भी पता होना चाहिए. इस क्रम में वह संदेश की बिना जांच-पड़ताल किए आगे फॉरवर्ड कर देते हैं. याद रखिए अगर कोई संदेश अपमानजनक है तो उसको फॉरवर्ड करने वाले लोग भी उतना ही जिम्मेदार होंगे, जितना उसे क्रिएट करने वाले.

क्या है पूरा मामला?

मामला साल 2018 का है, जब बीजेपी नेता एस वे शेखर ने महिला पत्रकार पर भद्दी टिप्पणी की थी. उन्होंने कहा था कि मीडिया में शिक्षण संस्थानों से कहीं ज्यादा यौन शोषण होता है. बिना सीनियर के साथ सोए कोई भी रिपोर्टर या एंकर नहीं बन सकती. तमिलनाडु मीडिया में लगभग लोग ब्लैकमेलर और चीप हैं. वरिष्ठ महिला पत्रकार ने उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई. वह जमानत पर बाहर थे. वह आपराधिक मामलों को खत्म करने की मांग के साथ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया.

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